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ब्लॉग: बाढ़ से पानी में डूबा आधा पाकिस्तान, भारत से मदद की दरकार

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: August 30, 2022 08:34 IST

आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की मुश्किलें इन दिनों और बढ़ गई है. पाकिस्तान में बाढ़ से एक हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई है. उसे दुनिया भर से मदद की जरूरत है.

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पाकिस्तान में पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकट गहराया हुआ है. अब प्राकृतिक संकट ने उसका दम फुला दिया है. घनघोर बरसात और बाढ़ के कारण लगभग आधा पाकिस्तान पानी में डूब गया है. 2010 में भी लगभग ऐसा ही भयंकर दृश्य पाकिस्तान में उपस्थित हुआ था लेकिन इस बार जो महाविनाश हो रहा है, उसके बारे में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा है कि ऐसा दृश्य उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा.  

इस साल पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान में हर साल के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा पानी बरसा है. कुछ गांवों और शहरों में इस बार 8-10 गुना पानी ने खेत-खलिहान और बस्तियों को पूरी तरह डुबा दिया है. पाकिस्तान के 150 जिलों में से 110 जिले इस वक्त आधे या पूरे डूबे हुए हैं. यदि प्रकृति का प्रकोप इसी तरह कुछ दिन और चलता रहा तो पाकिस्तान की हालत अफगानिस्तान और यूक्रेन से भी बदतर हो सकती है. उसके नेता अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और कई मुस्लिम राष्ट्रों से मदद की गुहार लगा रहे हैं. 

संयुक्त राष्ट्र ने राष्ट्रों के नाम अपील जारी करके पाकिस्तान के लिए मदद मांगी है. ब्रिटेन ने 15 लाख पौंड भिजवाए हैं. ईरान, यूएई और सऊदी अरब भी जल्दी ही मदद भिजवानेवाले हैं. यूएई 3000 टन अनाज और दवाइयां भी भिजवा रहा है लेकिन पाकिस्तान के कई पत्रकारों और नेताओं ने मुझसे फोन पर कहा है कि यदि इस मौके पर भारत भी मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो कमाल हो जाएगा. हमने श्रीलंका, अफगानिस्तान और यूक्रेन को आड़े वक्त में मदद करके जो सद्भावना अर्जित की है, वह अमूल्य है. 

जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, शाहबाज शरीफ ने भारत के साथ आपसी रिश्ते सुधारने की बात पिछले हफ्ते ही कही थी. यों भी पाकिस्तान के सिंध, पख्तूनख्वाह और बलूच इलाके इस वक्त सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. 

यदि नरेंद्र मोदी सरकार इस वक्त मदद की पहल करे तो उससे दो लक्ष्य पूरे होंगे. एक तो दक्षिण एशिया का वरिष्ठ राष्ट्र होने का दायित्व हम निभाएंगे. दूसरा, भारत की मदद से पाकिस्तान की आम जनता इतनी प्रभावित होगी कि उसका असर उसकी फौज पर भी पड़ेगा, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से लड़ना ही रहा है. 

यह भी संभव है कि इस पहल से दक्षेस (सार्क) के जो दरवाजे सात-आठ साल से बंद हैं, वे खुल जाएं. हम न भूलें कि 1947 में विभाजन की दीवारें हमारे बीच जरूर खिंच गई हैं लेकिन हमारे पहाड़, नदियां, जंगल, मैदान और मौसम एक-दूसरे से अलग नहीं हैं.

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