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Five Eyes Summit: भारत से संबंधित नहीं था ‘फाइव आइज’ का सम्मेलन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 26, 2023 14:19 IST

2019 में हमारे कुछ अखबारों ने लिखा कि इंटेलिजेंस पर अमेरिकी कांग्रेस की उपसमिति ने सिफारिश की थी कि भारत को इस समूह में शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है। अब ऐसा होने की दूर-दूर तक संभावना नहीं है।

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वप्पाला बालाचंद्रन का ब्लॉग

19 अक्तूबर को कैलिफोर्निया में ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा खुफिया संगठन (एएसआईओ) के प्रमुख माइक बर्गेस द्वारा ‘फाइव आइज सम्मेलन’ के दौरान हरदीप सिंह निज्जर की मौत पर दिए गए एक बयान से यह आभास हो सकता है कि यह बैठक विशेष रूप से भारत और कनाडा के बीच विवादास्पद मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन यह सही नहीं है।

वास्तव में, यह बैठक 17 अक्तूबर को हूवर इंस्टीट्यूशन, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, पालो अल्टो में एफबीआई निदेशक क्रिस्टोफर रे द्वारा आयोजित एक ‘अभूतपूर्व’ तकनीकी सम्मेलन था। हालांकि एफबीआई ने शुरू में इसे ‘फाइव आइज समिट’ कहा था, लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर ‘द फर्स्ट इमर्जिंग टेक्नोलॉजी एंड सिक्योरिंग इनोवेशन सिक्योरिटी समिट’ कर दिया गया। 

यह एक आधिकारिक ‘फाइव आइज समिट’ नहीं हो सकता था क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए), जो एक महत्वपूर्ण सदस्य है, का प्रतिनिधित्व नहीं था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट और ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल के बीच द्वितीय विश्व युद्ध के बीच अटलांटिक चार्टर (1941) से ‘फाइव-आइज’ समझौता हुआ था।

बाद में तकनीकी खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान के लिए अमेरिकी युद्ध विभाग और ब्रिटिश कोड और साइफर स्कूल के बीच सहयोग के लिए 1943 में गुप्त बीआरयूएसए (ब्रिटिश-यूएस संचार) समझौते के माध्यम से इसे बहुत कनिष्ठ स्तर पर औपचारिक रूप दिया गया। 1946 में यह यूकेयूएसए समझौता बन गया। इस पर 5 मार्च 1946 को कर्नल पैट्रिक मैर-जॉनसन, जिन्होंने युद्ध के दौरान नई दिल्ली में ‘वायरलेस एक्सपेरिमेंटल सेंटर’ का नेतृत्व किया था, और यूएस ट्राई-सर्विस कम्यूनिकेशन इंटेलिजेंस के जनरल होयट वैंडेनबर्ग द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।

दिलचस्प बात यह है कि ‘वायरलेस एक्सपेरिमेंटल सेंटर’ दिल्ली में स्थित था, जो बाद में हमारे इंटेलिजेंस ब्यूरो को विरासत में मिला। कनाडा 1948-49 में बीआरयूएसए में शामिल हुआ, जबकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड 1956 में इसके सदस्य बने। इन समझौतों को 25 जून 2010 तक आधिकारिक तौर पर गुप्त रखा गया था, जब कुछ दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए गए थे, लेकिन यह ‘टाइम’ मैगजीन को 1976 में इसके बारे में रिपोर्ट करने से नहीं रोक पाया था।

2019 में हमारे कुछ अखबारों ने लिखा कि इंटेलिजेंस पर अमेरिकी कांग्रेस की उपसमिति ने सिफारिश की थी कि भारत को इस समूह में शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है। अब ऐसा होने की दूर-दूर तक संभावना नहीं है। 

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