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संपादकीय: आतंकवाद के फन कब कुचले जाएंगे?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 27, 2019 14:19 IST

यूरोपीय देशों में जो आतंकी सक्रिय हैं वे समुदाय विशेष से नफरत करते हैं. आतंकवाद से ग्रस्त विभिन्न देशों में अमेरिका तथा कई यूरोपीय देशों की कार्रवाई से चिढ़कर आतंकी एक समुदाय विशेष के लोगों की हत्या कर रहे हैं.

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श्रीलंका में ईसाइयों के पवित्र पर्व ईस्टर संडे को आतंकवादियों ने खून से रंग दिया. इतिहास में ऐसे बर्बर, जघन्य तथा अमानवीय कृत्यों को अंजाम देनेवाले तत्व समूची मानवता के दुश्मन हैं. धर्म के नाम पर खूनी खेल पिछले कुछ वर्षो से ज्यादा ही हो गया है. विशेषकर आईएस तथा अल कायदा जैसे क्रूर संगठनों के उभार के बाद दुनिया के कोने-कोने में आतंकी मानवता को शर्मसार कर देने वाले कृत्य कर रहे हैं.

चाहे भारत हो, अमेरिका हो, नाव्रे, स्वीडन, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन हो या न्यूजीलैंड जैसा एकदम शांत देश, आतंकियों ने हर जगह खूनी मंजर पैदा किए हैं और अपने हाथ खून से रंगे हैं. इसी साल 15 मार्च को शुक्रवार के दिन न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर आतंकवादी हमले में 50 बेकसूर लोग मारे गए थे. मारे गए लोग प्रार्थना में लीन थे. उसके सवा महीने बाद श्रीलंका में ईसाइयों को ईस्टर के पवित्र पर्व के दिन निशाना बनाया गया.

आतंकवाद का दंश 

ये लोग भी प्रभु की भक्ति में लीन थे. आतंकवाद का  दंश  दुनिया का हर छोटा-बड़ा देश झेल चुका है. हर देश अपने-अपने ढंग से आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है मगर उसे सफलता नहीं मिल पा रही है. आतंकवादी अपने हर जघन्य अपराध को धर्म के नाम पर जायज ठहराते हैं. सीरिया, सोमालिया तथा विभिन्न अफ्रीकी देशों में सत्ता पर कब्जा करने के इरादे से आतंकवादी खून-खराबा कर रहे हैं.

यूरोपीय देशों में जो आतंकी सक्रिय हैं वे समुदाय विशेष से नफरत करते हैं. आतंकवाद से ग्रस्त विभिन्न देशों में अमेरिका तथा कई यूरोपीय देशों की कार्रवाई से चिढ़कर आतंकी एक समुदाय विशेष के लोगों की हत्या कर रहे हैं. अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला आतंकियों ने बदला लेने के मकसद से किया था. पिछले महीने क्राइस्टचर्च का हमला भी इसी किस्म की नफरत का नतीजा था. 

क्राइस्टचर्च गोलीकांड का बदला

श्रीलंका में रविवार के आतंकी हमलों को क्राइस्टचर्च गोलीकांड का बदला भी माना जा रहा है. सीरिया से आईएस को लगभग पूरी तरह खत्म कर देने, अल-कायदा को कमजोर बना देने तथा तालिबान का जहर निकाल देने का अमेरिका का दावा पूरी तरह सच नहीं लगता. ये दुर्दात आतंकी संगठन कमजोर भले ही हो गए हों मगर उनका अस्तित्व खत्म नहीं हुआ है. वे आतंकवाद से मुक्त इलाकों में पैर पसार रहे हैं और समय-समय पर नृशंस घटनाओं को अंजाम देकर अपने अस्तित्व को जता रहे हैं.

आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता 

आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट संघर्ष का आह्वान जरूर किया जाता है मगर अपने-अपने सामरिक तथा साम्राज्यवादी हितों को कई देशों ने मानवीय संवेदनाओं से ऊपर रख दिया है. पाकिस्तान, सूडान जैसे दुनिया के कई देश आतंकवादियों की पनाहगाह बने हुए हैं. सऊदी अरब जैसा समृद्ध देश भी आतंकवादी संगठनों को हरसंभव सहायता देता रहता है. जरूरत इस बात की है कि आतंकवाद के साथ-साथ उसे पालने-पोसने वाले देशों को भी अलग-थलग करना होगा अन्यथा कोलंबो और क्राइस्टचर्च जैसी नृशंस घटनाएं दुनिया में होती ही रहेंगी.

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