सौ साल में भी नहीं बदली चीन की शासन पद्धति, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 2, 2021 18:49 IST2021-07-02T18:48:04+5:302021-07-02T18:49:12+5:30
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सत्तारूढ़ ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना’ (सीपीसी) की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर देश की रक्षा के लिए एक मजबूत सेना बनाने का आह्वान किया.

सीपीसी के संस्थापक माओ त्से तुंग की एक विशाल तस्वीर भी लगी थी.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को बने सौ साल पूरे हो गए. अपने लगभग 9 करोड़ सदस्यों के साथ वह दुनिया की सबसे शक्तिशाली पार्टी है.
इस साल चीनी पार्टी की सदस्यता के लिए 2 करोड़ अर्जियां आईं लेकिन उनमें से सिर्फ 20 लाख को ही सदस्यता मिली. इसके अलावा इस पार्टी की खूबी यह है कि पिछले 72 साल से यह लगातार सत्ता में है. यह एक दिन भी सत्ता से बाहर नहीं रही. चीन में इसने किसी अन्य पार्टी को कभी पनपने नहीं दिया.
इस पार्टी में 1921 से लेकर अब तक आंतरिक सत्ता-संघर्ष कभी-कभी हुआ, लेकिन इसका नेता पार्टी, सरकार और फौज- इन तीनों को हमेशा अपने कब्जे में रखता रहा. 1917 में रूस में हुई कम्युनिस्ट क्रांति से प्रेरित होकर चार साल बाद 1921 में दो चीनी बुद्धिजीवियों- चेन दूश्यू और ली दझाओ ने शंघाई में इस पार्टी की नींव रखी.
माओत्से तुंग के नेतृत्व में 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी. 1949 से 1976 तक माओ का एकछत्न राज्य रहा. 1978 से तंग श्याओ फिंग ने फरवरी 1997 तक चीन पर अपना नियंत्नण बनाए रखा. उनके बाद च्यांग चेमिन और हू जिनताओ ने पार्टी को संभाला और 2012 से अभी तक शी जिनपिंग चीन की संपूर्ण सत्ता संभाल रहे हैं.
माओ के जमाने में गरीबी बनी रही और आम लोग पार्टी तानाशाही में पिसते रहे. लेकिन तंग श्याओ फिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन किए. नतीजा यह हुआ कि पिछले 40 साल में चीन की प्रति व्यक्ति आय 80 गुना बढ़ गई. तंग ने मार्क्सवादी विचारधारा के शिकंजे को जरा ढीला किया और एक सूत्नवाक्य कहा कि ‘बिल्ली काली है कि गोरी है, इससे हमें मतलब नहीं.
हमें देखना यह है कि वह चूहा मार सकती है या नहीं.’ इसी सूत्न ने चीन के 80 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है. चीनी अर्थव्यवस्था ने लगभग तीन लाख करोड़ डॉलर की विदेश पूंजी को आकर्षित किया है.
चीन के दर्जनों शहरों और सैकड़ों गांवों में अपनी कई यात्नाओं के दौरान मैंने पाया है कि वह अब पूंजीवाद का पथिक बन गया है लेकिन उसकी राजनीति अभी भी स्तालिनवादी पटरी पर ही चल रही है. उसकी आक्रामक विदेश नीति और जबर्दस्त विदेशी विनियोग से एक नए और सूक्ष्म साम्राज्यवाद की घंटियां बज रही हैं. पिछले सौ साल में चीन तो बदल गया लेकिन उसकी शासन-पद्धति ज्यों-की-त्यों बनी है.