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ब्लॉग: रेगिस्तानी इलाकों में भयावह बाढ़ के संकेत को समझें

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 19, 2024 10:43 IST

जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्फ बाढ़ या सूखे की समस्या ही विकराल नहीं हो रही, बल्कि ऐसी-ऐसी आपदाएं आ रही हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं गया था।

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ठळक मुद्देसंयुक्त अरब अमीरात में पिछले 75 साल की रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई हैबारिश ने जो कहर ढाया है, उसने हर किसी को स्तब्ध कर दिया है दुबई एयरपोर्ट पर तो उड़ानों का संचालन बुरी तरह प्रभावित हुआ

खाड़ी के चार देशों-संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, बहरीन और ओमान में बारिश ने जो कहर ढाया है, उसने हर किसी को स्तब्ध कर दिया है। भयंकर गर्मी वाले इन रेगिस्तानी इलाकों में इतना पानी बरसने की बात कोई सोच भी नहीं सकता था और कहा जा रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात में पिछले 75 साल की रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई है। जितना पानी यहां लगभग दो साल में बरसता है, उतना एक ही दिन में बरस गया। 

दुनिया के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक दुबई एयरपोर्ट पर तो उड़ानों का संचालन बुरी तरह प्रभावित हुआ और बुधवार को दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लगभग 300 उड़ानें रद्द कर दी गईं। दुबई के पड़ोसी ओमान में बारिश के कारण 19 लोगों की मौत हो गई। कुछ लोग इस बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग अर्थात कृत्रिम बारिश को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जो कि खाड़ी के देशों में बारिश कराने का एक आम तरीका बन चुका है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग के जरिये खाड़ी देशों में इतनी बारिश का होना, और वह भी रुक-रुक कर, संभव ही नहीं है, क्योंकि वहां बादलों की लेयर पतली होती है। 

दरअसल ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते दुनियाभर की जलवायु में बदलाव हो रहा है। अमेरिका और यूरोप के ठंडे प्रदेशों में पिछले दिनों जितनी भयंकर गर्मी पड़ी, वह इसी का नतीजा थी. गर्मी बढ़ने से हिमालय से लेकर सुदूर अंटार्कटिका तक की बर्फ पिघल रही है और हर जगह मौसम अनियमित हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म दिनों की संख्या बढ़ रही है, जिससे सर्दियों के दिन कम हो रहे हैं और सूखे की समस्या भी बढ़ रही है। 

ऐसा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन पहले नहीं होता था. यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन हम मनुष्यों ने वर्तमान में अंधाधुंध और अनियोजित विकास के चलते प्रकृति के साथ इतनी ज्यादा छेड़छाड़ की है कि जलवायु परिवर्तन की गति भयावह रूप से तीव्र हो गई है। हालांकि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् इसकी चेतावनी बहुत पहले से देते आ रहे हैं लेकिन तात्कालिक सुख-सुविधाएं बढ़ाने की चाह में हम इसे नजरंदाज करते रहे। 

जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्फ बाढ़ या सूखे की समस्या ही विकराल नहीं हो रही, बल्कि ऐसी-ऐसी आपदाएं आ रही हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं गया था। लगभग चार साल पहले पूर्वी अफ्रीका में खरबों टिड्डियों के दलों ने इस तरह फसलें तबाह कर डाली थीं कि इलाके में खाद्य संकट पैदा हो गया था। कोरोना महामारी को तो शायद ही कोई भूल सकता है। इन सब के पीछे भी कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का हाथ है। अगर हम अभी भी नहीं चेते तो शायद आगे हमारे हाथ में कुछ करने के लिए बचे ही नहीं! 

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