ब्लॉगः आपसी सहयोग बढ़ाने के एजेंडा के साथ विक्रमसिंघे आए भारत
By शोभना जैन | Published: July 22, 2023 03:09 PM2023-07-22T15:09:48+5:302023-07-22T15:10:41+5:30
श्रीलंका में पिछले वर्ष की आर्थिक बदहाली और राजनैतिक अस्थिरता की धुंध धीरे-धीरे छंटने के बाद राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भारत के साथ बढ़ती गहरी आपसी समझ-बूझ के माहौल में उभयपक्षीय सहयोग बढ़ाने के एजेंडा के साथ अपनी पहली राजकीय विदेश यात्रा के रूप में भारत आए। विक्रमसिंघे की भारत यात्रा ऐसे वक्त हुई है जब श्रीलंका में पिछले वर्ष की घोर आर्थिक बदहाली और राजनैतिक अस्थिरता के बाद अर्थव्यवस्था के साथ ही सामान्य हालात पटरी पर आ रहे हैं, और श्रीलंका नेतृत्व का भी मानना है कि अर्थव्यवस्था को उबारने में भारत की मुख्य भूमिका रही है। इसी सकारात्मकता को आगे बढ़ाते हुए अगर बात करें तो श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने इस यात्रा से ठीक पहले वहां चीन की गहराती छाया को लेकर भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर भारत को आश्वस्त किया कि श्रीलंका भारत के वैध सुरक्षा हितों पर कोई आंच नहीं आने देगा और किसी भी रिश्ते को उसे नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देगा। श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा अपने कार्यकाल की पहली राजकीय विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनना दोनों देशों के बीच निरंतर बढ़ती समझ-बूझ का उदाहरण है।
हाल ही में श्रीलंका की यात्रा के दौरान इस संवाददाता को भारत के प्रति नेतृत्व और जनसाधारण में भी काफी अपनापन देखने को मिला। संवाददाता के साथ विदेश मंत्री ने एक इंटरव्यू में भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर साफ तौर पर आश्वस्त किया कि श्रीलंका भारत के वैध सुरक्षा हितों पर कोई आंच नहीं आने देगा। श्रीलंका भारत के लिए ‘पड़ोसी सर्वप्रथम की नीति’ का अग्रणी सदस्य तो है ही, दोनों देशों के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रिश्ते रहे हैं, जिन्हें आर्थिक, व्यापारिक, सामरिक सहयोग, विकास कार्यक्रमों, कनेक्टिविटी बढ़ाने जैसे कदमों के जरिये एक-दूसरे से और गहरे जोड़ा जा रहा है। श्रीलंका की पिछले वर्ष की आर्थिक बदहाली से उबरने में और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयासों में भारत के योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीलंका जब पिछले वर्ष दिवालियापन के कगार पर था, ऐसे में भारत ही था जिसने श्रीलंका को 3.9 अरब डॉलर का ऋण दिया और यही आधार था जिससे श्रीलंका अपनी आर्थिक बहाली शुरू कर सका अन्यथा श्रीलंका तबाही के कगार पर पहुंच जाता। चीन को लेकर भारत की चिंताओं पर वहां के विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका भारत की चिंताओं को लेकर अति सतर्कता बरतता रहेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि श्रीलंका सभी देशों के साथ मित्रता रखना चाहता है। उसकी विदेश नीति बहुपक्षीय है, लेकिन भारत उसके लिए किसी पारिवारिक रिश्ते की तरह है, भारत उसकी विदेश नीति का केंद्रीय बिंदु है।