Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में आखिर चल क्या रहा है?, यूनुस और सेना अध्यक्ष जनरल वकार-उज-जमां के बीच तकरार

By विकास मिश्रा | Updated: May 27, 2025 05:33 IST2025-05-27T05:33:35+5:302025-05-27T05:33:35+5:30

Bangladesh Crisis: इस्लामिक कट्टरपंथियों की नकेल कस रखी थी, वही देश पूरी तरह कट्टरपंथी नजर आ रहा है और आर्थिक हालात बिगड़ने लगे हैं.

Bangladesh Crisis live What going on Bangladesh Muhammad Yunus vs Army Chief Sheikh hasina blog Vikas Mishra | Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में आखिर चल क्या रहा है?, यूनुस और सेना अध्यक्ष जनरल वकार-उज-जमां के बीच तकरार

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Highlightsचीन और पाकिस्तान के कुचक्र में बांग्लादेश बुरी तरह उलझ गया है. शेख हसीना के कार्यकाल में जिस देश की आर्थिक स्थिति तेजी से बेहतर होती जा रही थी.बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने तत्काल चुनाव कराने को लेकर हंगामा मचा रखा है.

Bangladesh Crisis: इस वक्त कुछ भी भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि बांग्लादेश में आगे क्या होने वाला है. वहां तेजी से गतिविधियां चल रही हैं. आंतरिक सरकार के मुखिया मो. यूनुस और सेना अध्यक्ष जनरल वकार-उज-जमां के बीच तकरार उजागर हो गई है. अब दो ही विकल्पों पर बात हो रही है कि क्या सेना मो. यूनुस का तख्तापलट कर देगी या फिर जनरल वकार-उज-जमां की कुर्सी मो. यूनुस खा जाएंगे? ये दो ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर वक्त ही देगा लेकिन यह तय है कि चीन और पाकिस्तान के कुचक्र में बांग्लादेश बुरी तरह उलझ गया है. शेख हसीना के कार्यकाल में जिस देश की आर्थिक स्थिति तेजी से बेहतर होती जा रही थी और जिसने इस्लामिक कट्टरपंथियों की नकेल कस रखी थी, वही देश पूरी तरह कट्टरपंथी नजर आ रहा है और आर्थिक हालात बिगड़ने लगे हैं.

अब बांग्लादेश के लोगों को डर सता रहा है कि उनका देश जिस पाकिस्तान से अलग होकर एक बेहतर मुल्क बना था क्या वह भी तानाशाही की राह पर चल पड़ा है? ऐसा इसलिए कि मो. यूनुस लगातार चुनाव टाल रहे हैं. इधर प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने तत्काल चुनाव कराने को लेकर हंगामा मचा रखा है.

सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने भी साफ कह दिया है कि दिसंबर 2025 तक चुनाव हो जाना चाहिए क्योंकि बहुत से फैसले लेने का हक केवल चुनी हुई सरकार को ही होता है. अब सवाल है कि वे किस फैसले की बात कर रहे हैं? दरअसल मो. यूनुस चाहते हैं कि म्यांमार के लिए मानवीय कॉरिडोर बनाया जाए जिसके माध्यम से वहां राहत सामग्री पहुंचाई जाए.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लाखों रोहिंग्या शरणार्थी काफी पहले से ही बांग्लादेश में रह रहे हैं. मो. यूनुस यह कॉरिडोर क्यों बनाना चाह रहे हैं, इसके पीछे का रहस्य अभी तक सामने नहीं आया है. इधर सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक बुलाई जिसे वहां ‘दरबार’ कहा जाता है.

इस दरबार में उन्होंने साफ कहा कि इस तरह का फैसला चुनी हुई सरकार ही ले सकती है. केयरटेकर सरकार को यह अधिकार नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय हितों को हर हाल में प्राथमिकता मिलनी चाहिए. इस तरह का कॉरिडोर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है. सेना प्रमुख के इस तेवर ने मो. यूनुस को भीतर तक हिला कर रख दिया.

इस बीच एक और घटना हुई. विदेश सचिव जसीमुद्दीन ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया. वे आठ महीने से भी कम इस पद पर रहे. दरअसल मो. यूनुस और विदेश मामलों के उनके सलाहकार तौहीद हुसैन इस बात का दबाव डाल रहे थे कि रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए मानवीय गलियारा बनाने में जसीमुद्दीन साथ दें लेकिन उन्होंने न केवल मना कर दिया बल्कि इस्तीफा भी दे दिया.

वैसे कहा यह भी जा रहा है कि उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. मानवीय गलियारे को लेकर इस तरह के विरोध के कारण बांग्लादेश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान को सार्वजनिक तौर पर घोषणा करनी पड़ी कि किसी तरह के कॉरिडोर की बात नहीं हुई है. सरकार तो केवल संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से म्यांमार के रखाइन प्रांत में खाना और दवाएं पहुंचाने पर विचार कर रही है.

यानी मो. यूनुस को बैकफुट पर जाना पड़ा जो उन्हें पसंद नहीं है. अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सबसे पहले तो उन्होंने सहानुभूति कार्ड खेलने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि देश में जो हालात हैं, उससे वे खिन्न हैं और इस्तीफा देना चाहते हैं. इसके बाद नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) के नेता नाहिद इस्लाम गुपचुप रूप से उनसे मिलने पहुंचे.

यह बात तो सामने नहीं आ पाई कि दोनों के बीच क्या खिचड़ी पकी लेकिन इतना जरूर हुआ कि विभिन्न पार्टियों ने यह गुहार लगानी शुरू कर दी कि यूनुस इस्तीफा न दें. इतना ही नहीं उनके विशेष सहायक फैज अहमद तय्यब ने बयान भी जारी किया कि अब यूनुस इस्तीफा नहीं देंगे. इस सारे प्रसंग में यह माना जा रहा है कि मो. यूनुस कोई षड्यंत्र रच रहे हैं ताकि वे बांग्लादेश की सत्ता में लंबे अरसे तक बने रहें.

पहले उन्होंने जल्दी से जल्दी चुनाव करा लेने की बात की थी. अब कह रहे हैं कि चुनाव इस साल के दिसंबर से लेकर जून 2026 के बीच कराए जाएंगे. साथ में यह शर्त भी लगा दी है कि परिस्थतियां कैसी रहती हैं. यूनुस की हरकतों को देख कर बेगम खालिदा जिया की पार्टी भी कहने लगी है कि चुनाव न कराने का षडयंत्र रचा जा रहा है.

सत्ता में बने रहने के लिए वे पाकिस्तान और चीन की गोद में जाकर बैठ गए हैं. दोनों ही देश लोकतंत्र के दुश्मन हैं और वे बिल्कुल ही नहीं चाहेंगे कि बांग्लादेश में लोकतंत्र वापस आए. मो. यूनुस इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि जब तक जनरल वकार-उज-जमां सेना प्रमुख हैं तब तक वे अपनी मनमानी नहीं चला सकते हैं.

यही कारण है कि वे उन्हें चलता करने का षड्यंत्र रचने की कोशिश में जुट गए हैं. फिलहाल नाहिद इस्लाम भी उनका साथ देते दिख रहे हैं क्योंकि नाहिद की नजर खुद सत्ता पर है लेकिन वे पहले अपने लिए माहौल बना रहे हैं. वे सत्ता के लिए बेचैन छवि से बच रहे हैं.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि सेना प्रमुख  जनरल वकार-उज-जमां क्या इतनी आसानी से हार मान जाएंगे? सेना की ताकत उनके पास है, यदि उन्हें हटाने की कोशिश हुई तो क्या तख्तापलट नहीं कर देंगे? देखते हैं, क्या होता है!

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