Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में कठिन होती लोकतंत्र की राह?, यूनुस सरकार पर सत्ता का नशा

By राजेश बादल | Updated: June 4, 2025 05:12 IST2025-06-04T05:12:31+5:302025-06-04T05:12:31+5:30

Bangladesh Crisis: मोहम्मद यूनुस चुनाव कराने का नाम नहीं ले रहे हैं. यही नहीं, अपनी  संसद को विश्वास में लिए बिना देश के संवैधानिक लोकतांत्रिक ढांचे पर वे निरंतर प्रहार कर रहे हैं.

Bangladesh Crisis Chief Advisor Prof Yunus road democracy in Bangladesh getting difficult blog rajesh badal | Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में कठिन होती लोकतंत्र की राह?, यूनुस सरकार पर सत्ता का नशा

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Highlights शेख मुजीबुर्रहमान को देश की राजकीय मुद्रा से हटाने का निर्णय लिया है.छात्र, आंदोलनकारी, सेना और बांग्ला नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) शामिल हैं.बेसब्री से वे अपनी ताजपोशी का इंतजार कर रही हैं.

Bangladesh Crisis: सत्ता का नशा शायद ऐसा ही होता है. षड्यंत्रपूर्वक जिन लोगों ने बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को हटाया, उन्होंने मुल्क में जल्द से जल्द जम्हूरियत बहाल करने का वादा किया था. नोबल से सम्मानित मोहम्मद यूनुस को फौरी तौर पर कामचलाऊ जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उन्होंने भी तीन महीने के भीतर देश में नए चुनाव कराने की बात कही. तब से महीनों बीत चुके हैं, मोहम्मद यूनुस चुनाव कराने का नाम नहीं ले रहे हैं. यही नहीं, अपनी  संसद को विश्वास में लिए बिना देश के संवैधानिक लोकतांत्रिक ढांचे पर वे निरंतर प्रहार कर रहे हैं.

अब उन्होंने मुल्क में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक शेख मुजीबुर्रहमान को देश की राजकीय मुद्रा से हटाने का निर्णय लिया है. उनके तौर-तरीकों के कारण ही बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां ने यूनुस सरकार को अवैध बताया है और धमकाया है कि यदि यूनुस ने इस बरस दिसंबर तक लोकतंत्र बहाल नहीं किया तो उनको हटा दिया जाएगा.

जनरल वकार उज जमां का कहना है कि मुल्क के भविष्य का फैसला निर्वाचन के जरिये चुनी गई सरकार ही कर सकती है. यूनुस बिना संवैधानिक पद पर बैठे, बिना चुनाव लड़े गंभीर नीति विषयक निर्णय ले रहे हैं. यह अनुचित है. पहले यूनुस ने 2025 में नए निर्वाचन कराने का ऐलान किया था. अब वे कह रहे हैं कि 2026 में इन्तखाब कराएंगे.

इससे वे लोग ही भड़के हुए हैं, जिन्होंने शेख हसीना वाजेद का तख्ता पलटा था. इनमें छात्र, आंदोलनकारी, सेना और बांग्ला नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) शामिल हैं. इस पार्टी की मुखिया बेगम खालिदा जिया हैं. यदि चुनाव होते हैं तो उनका सत्ता में आना तय है. बेसब्री से वे अपनी ताजपोशी का इंतजार कर रही हैं.

उनकी जिंदगी का यह सुनहरा और संभवतया आखिरी अवसर है. पहली बार वे ऐसे चुनाव में शिरकत करेंगी, जिनमें अवामी लीग और उसकी मुखिया शेख हसीना वाजेद मुकाबले में नहीं होंगी. यानी उनके चुनाव जीतने का रास्ता एकदम साफ है. वे तो अब तक स्वयं को प्रधानमंत्री पद पर काम करते हुए देखना चाहती थीं, लेकिन मोहम्मद यूनुस ने सारा खेल बिगाड़ दिया.

अब मुल्क की अवाम, फौज, छात्र और प्रतिपक्ष सभी महसूस कर रहे हैं कि अमेरिका के इशारे पर नाचने वाले गिरोह ने उनको ठग लिया है. कुछ बिचौलियों ने मोहम्मद यूनुस को इस्तीफा देने से रोक दिया और सेना को मना लिया. यही बिचौलिए यूनुस के इर्द-गिर्द रहते हुए हुकूमत का आनंद ले रहे हैं. दूसरी ओर यूनुस सरकार आम अवाम की समस्याएं हल करने में नाकाम रही है.

महंगाई और बेरोजगारी चरम पर हैं. औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप है. दरअसल परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही है. अमेरिका जानता है कि उसके लिए बिना चुनाव जीते मुख्य सलाहकार की गद्दी पर बैठे मोहम्मद यूनुस ज्यादा फायदेमंद हैं. न तो वे चुनाव जीतकर आए हैं और न बांग्लादेश के संविधान से बंधे हैं.

इसके उलट बेगम खालिदा जिया पर वह कैसे भरोसा करेगा, क्योंकि वह तो चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनेंगी. इसलिए यह आवश्यक नहीं कि वे अमेरिका के हितों की रक्षा करें. शेख हसीना वाजेद को तो उसने हटवाया ही इसलिए था कि उन्होंने चीन पर निगरानी के लिए सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका को सैनिक अड्डा बनाने की इजाजत नहीं दी थी.

इस तरह दोनों बेगमें अमेरिका का स्वार्थ सिद्ध नहीं कर सकतीं. फिर बिना चुनाव के चल रही मोहम्मद यूनुस की सरकार क्या बुरी है? यह सरकार उसके इशारे पर नाचेगी. भारत और चीन दोनों पड़ोसी महादेशों को तनाव में डाल कर रख सकती है और पाकिस्तान को भी प्रसन्न रख सकती है. कौन नहीं जानता कि अमेरिका के इशारे पर ही बांग्लादेश पाकिस्तान के निकट गया था.

यूनुस ने भारत से रिश्ते इसी वजह से बिगाड़े. अब भारत ने बांग्लादेश के साथ तनिक सख्ती की तो उसके हाथ-पांव फूले हुए हैं. भारत में अवैध रूप से रह रहे करीब तीन करोड़ बांग्लादेशी अपने देश वापस भेजे रहे हैं तो इससे भी मोहम्मद यूनुस को दिक्कत हो रही है. उनके लिए वे न तो घर के दरवाजे बंद कर सकते हैं और न ही उन्हें रोक सकते हैं.

अलबत्ता बांग्लादेश की सेना पर अमेरिका की पकड़ इतनी मजबूत नहीं है, जितना कि पाकिस्तान की सेना की अपने देश में. इस प्रसंग में कॉक्स बाजार का जिक्र जरूरी है. यह बांग्लादेश का खूबसूरत तटीय शहर है और समंदर के 120 किमी लंबे किनारे पर बसा है. मगर इसकी पहचान संसार के सबसे बड़े शरणार्थी शहर की है.

यहां 13 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी हैं, जो म्यांमार से आकर बस गए हैं. यह रोहिंग्या मुल्क की सुरक्षा और आर्थिक संसाधनों के हिसाब से मुसीबत बन गए हैं. सेना और यूनुस सरकार इस मामले में आमने-सामने हैं. सेनाध्यक्ष बांग्लादेश में रोहिंग्याओं की उपस्थिति के खिलाफ हैं. मोहम्मद यूनुस म्यांमार के हिंसा पीड़ित राखाइन प्रांत से कॉक्स बाजार को जोड़ने वाले गलियारे का निर्माण करना चाहते हैं.

पर जनरल वकार उज जमां इसके खिलाफ हैं. यह मसला दोनों के बीच गहराए मतभेदों का कारण है. मोहम्मद यूनुस सेनाध्यक्ष पर संदेह भी करते हैं. उनका आरोप है कि बांग्लादेश में जो भी चल रहा है, उसके पीछे भारत का हाथ है. भारत के कहने पर सेना वहां चुनाव कराने पर जोर दे रही है. बांग्लादेश में बार-बार लोकतंत्र की बात इसीलिए उठाई जाती है.

सोच के मामले में मोहम्मद यूनुस असल में पाकिस्तान के ज्यादा करीब हैं और सेनाध्यक्ष वकार उज जमां भारतीय लोकतंत्र को पसंद करते हैं. यूनुस के सेनाध्यक्ष पर भरोसा नहीं करने का एक कारण यह भी है कि सेनाध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की चचेरी बहन के पति हैं और बिना रक्तपात के उन्होंने ही शेख हसीना को भारत भेजने की व्यवस्था की थी.

यूनुस चाहते हैं कि शेख हसीना को गिरफ्तार करके बांग्लादेश लाया जाए. क्योंकि यूनुस को शेख हसीना के कार्यकाल में काफी परेशान किया गया था. इसका लाभ उन्होंने अमेरिका से नजदीकी बढ़ाने में लिया. यूनुस को लगता है कि वकार उज जमां शेख हसीना के मामले में नरम हैं. वैसे तो वकार उज जमां की गिनती काबिल फौजियों में होती है, लेकिन करीबी रिश्ते के कारण भी शेख हसीना ने उनको बहुत आगे बढ़ाया. तीन साल के लिए सेनाध्यक्ष भी उन्होंने ही बनाया था.

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