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नितिन रोंघे का ब्लॉग: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और डिबेट की परंपरा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 28, 2024 10:11 IST

अमेरिका की सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प अपनी पार्टी का प्राइमरी इलेक्शन जीतने के बाद आधिकारिक तौर पर एक-दूसरे के सामने आ गए हैं.

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ठळक मुद्देवैश्विक महाशक्ति अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव इस साल 5 नवंबर को होने वाला है.दुनिया का ध्यान लंबा खिंचने वाले और बेहद जटिल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर केंद्रित है. 27 जून को (भारत के समय के हिसाब से 28 जून की सुबह) सीएनएन स्टूडियो अटलांटा में उनकी पहली डिबेट (बहस) हो रही है.

वैश्विक महाशक्ति अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव इस साल 5 नवंबर को होने वाला है. दुनिया का ध्यान लंबा खिंचने वाले और बेहद जटिल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर केंद्रित है. अमेरिका की सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प अपनी पार्टी का प्राइमरी इलेक्शन जीतने के बाद आधिकारिक तौर पर एक-दूसरे के सामने आ गए हैं. 

27 जून को (भारत के समय के हिसाब से 28 जून की सुबह) सीएनएन स्टूडियो अटलांटा में उनकी पहली डिबेट (बहस) हो रही है. अमेरिकी इतिहास के सबसे उम्रदराज उम्मीदवार 81 साल के बाइडेन और 78 साल के ट्रम्प के बीच बहस देखने-सुनने के लिए दुनिया उत्साहित है. आज भले ही आम चुनाव संबंधी डिबेट दुनिया में अनेक जगह होने लगी हों, लेकिन इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की डिबेट ही दुनिया में सबसे दिलचस्प होती है.

अमेरिकी राष्ट्रपति पद से जुड़ी डिबेट का इतिहास बहुत दिलचस्प है. विचारों के आदान-प्रदान और बहस के परिणामस्वरूप 1858 के इलिनोइस सीनेटरियल चुनाव में स्टीफन डगलस और अब्राहम लिंकन का चुनाव हुआ. विपक्षी उम्मीदवार अब्राहम लिंकन स्टीफन डगलस की प्रचार सभाओं में जाते थे और विभिन्न मुद्दे उठाते थे. इससे लिंकन प्रसिद्ध हो गए. 

अंतत:, पहली बहस स्टीफन डगलस और अब्राहम लिंकन के बीच हुई. इस सीनेटरियल चुनाव में अब्राहम लिंकन हार गए, लेकिन अमेरिका के लोगों को यह विचार रास आ गया कि चुनाव में वाद-विवाद होना ही चाहिए. बाद में, लिंकन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने और इस मुद्दे को भुला दिया गया. बाद में जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में रेडियो और टीवी का प्रसार तेजी से हुआ तो 1948 और उसके बाद के चुनावों में इसे फिर से आजमाया गया, लेकिन दृश्य-श्रव्य मीडिया में इनका विशेष प्रसार न होने से अधिक प्रभाव नहीं पड़ा.

बाद में 1960 में  स्थिति बदली. इसका श्रेय अमेरिका में महिलाओं के एक समूह को भी दिया जाता है. ‘लीग ऑफ वुमेन वोटर्स’ संगठन द्वारा आयोजित जॉन एफ कैनेडी और रिचर्ड निक्सन के बीच आयोजित डिबेट को भारी प्रतिक्रिया मिली. इस बहस से कैनेडी की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और निक्सन की छवि धूमिल हो गई. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डिबेट की परंपरा बन गई.

इसके बाद से डिबेट प्रत्येक राष्ट्रपति चुनाव का एक अभिन्न अंग बन गया. लेकिन अपवाद स्वरूप कुछ उम्मीदवारों ने इससे मुंह भी मोड़ा. हर चुनाव में उम्मीदवार को कौन-से कपड़े पहनने चाहिए, कैसे बोलना चाहिए, कौन-से मुद्दे उठाने चाहिए, इसके लिए कई विशेषज्ञों की मदद ली जाती थी. 

कुछ विवादों के कारण लीग ऑफ वूमन वोटर्स द्वारा शुरू डिबेट बंद हो गई. लेकिन चूंकि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों पार्टियां ये बहस चाहती थीं, इसलिए 1988 में उन्होंने ‘कमीशन ऑन प्रेसिडेंशियल डिबेट्स’ नामक एक संगठन बनाया, जिसका काम शोध और वाद-विवाद आयोजित करना है. आमतौर पर प्रत्येक चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 3 और उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए 1 बहस आयोजित की जाती है.

(लेखक ने 2012 एवं 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का अमेरिका जाकर निरीक्षण किया है)

टॅग्स :अमेरिकाजो बाइडनडोनाल्ड ट्रंप
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