संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर पर चौथी बार आए प्रस्ताव पर चीन द्वारा ‘टेक्निकल होल्ड’ लगा दिए जाने के बाद अमेरिका एक बार फिर से प्रस्ताव लाने जा रहा है. सवाल यह है कि इस कदम को किस रूप में देखा जाए?
दरअसल चीन पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है और उसे अब अपने निवेश, अपनी कंपनियों और अपने लोगों के लिए सुरक्षा चाहिए. उसका सीपेक यानी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, जो कि रेशम महापथ का हिस्सा है, की सुरक्षा और रेशम महापथ की महत्वाकांक्षा उसे भारत का साथ देने से रोकती है.
दूसरा पक्ष एक और भी है और वह है चीनी विवशता. ध्यान रहे कि 1980 में अजहर ने अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं से लड़कर अपने जीवन की शुरुआत की थी. बाद में उसने जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की. वह दौर पाकिस्तान में इस्लामीकरण का था और अफगानिस्तान पूंजीवाद व समाजवाद के द्वंद्व शिकार था.
चीन ने अवसर का फायदा उठाते हुए मुजाहिदीन से संबंध स्थापित किया ताकि शिनजियांग प्रांत के उइगर मुसलमानों का विद्रोह रोका जा सके. हालांकि उस समय सोवियत संघ चीन के विरुद्ध दिखाई दिया था क्योंकि उसने अफगानिस्तान से उइगर मुजाहिदीनों को रिहा कर दिया था कि शिनजियांग प्रांत में ये आंदोलन को ताकत प्रदान कर सकें. लेकिन चीन ने तालिबान से संपर्क साध कर इसका निदान तलाशा.
यह समीकरण अब तक बना हुआ है और दोनों के हितों को द्विपक्षीय संरक्षण प्राप्त हो रहा है. एक अन्य पक्ष यह है कि अरब सागर में चीन की पहुंच और मध्य एशिया से चीन का संपर्क तथा हिंद महासागर में ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स ट्रैप’ बिना पाकिस्तान के सहयोग के संभव नहीं है.
भविष्य में ग्वादर चीन के लिए ‘की स्ट्रैटेजिक सेंटर’ बनने वाला है जहां से वह हिंद महासागर और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक संतुलन बनाने में पाक का भरपूर प्रयोग करने वाला है. स्वाभाविक है चीन पाकिस्तान के मुकाबले भारत के साथ खड़ा नहीं होगा. भारत को यही बात ध्यान में रखकर आगे की रणनीति निर्मित करनी चाहिए.
सवाल यह है कि अमेरिका यूएनएससी में प्रस्ताव लाकर इसको सार्वजनिक विषय बनाकर बहस क्यों करना चाहता है? क्या उसका मकसद चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस बहस के जरिए शर्मसार करना है?
अगर ऐसा है तो क्या इस विषय पर भारत को अमेरिका का साथ देना चाहिए या यह मानकर चलना चाहिए कि अजहर लिस्ट एक अनफिनिश्ड टास्क है इसलिए भारत को इसे आगे बढ़ाते समय अमेरिकी कदमों में निहित चिंताओं और चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों की जरूरतों के बीच संतुलन साधना होगा.
नई दिल्ली को अजहर लिस्ट और क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म के मुद्दे पर अमेरिकी प्रयासों को यथाशक्ति समर्थन देना चाहिए लेकिन इस सावधानी के साथ कि यूएनएससी में चीन पर तात्कालिक जीत के लिए बहुत ज्यादा दांव पर न लगाया जाए बल्कि रीयल पॉलिटिक को पहचाना जाए.