वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : काबुल से अमेरिका की वापसी

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 1, 2021 09:06 AM2021-09-01T09:06:19+5:302021-09-01T10:04:04+5:30

अमेरिका की तालिबान से सांठगांठ नहीं होती तो काबुल छोड़ते वक्त हजारों अमेरिकी मारे जाते

Afghanistan crisis: why US troops leave Afghanistan | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : काबुल से अमेरिका की वापसी

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : काबुल से अमेरिका की वापसी

Highlightsअमेरिका की तालिबान से सांठगांठ नहीं होती तो काबुल छोड़ते वक्त हजारों अमेरिकी मारे जातेलगभग 20 साल बाद अमेरिका अफगानिस्तान से लौट रहा हैकाबुल हवाई अड्डे पर 13 अमेरिकी इसलिए मारे गए

लगभग 20 साल बाद अमेरिका अफगानिस्तान से लौट रहा है. विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र आज किस मुद्रा में है? गालिब के शब्दों में ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.’अमेरिका की तालिबान से सांठगांठ नहीं होती तो काबुल छोड़ते वक्त हजारों अमेरिकी मारे जाते.

अब तालिबान का ताजा बयान है कि काबुल हवाई अड्डे पर 13 अमेरिकी इसलिए मारे गए क्योंकि वे विदेशी थे और विदेशी फौज की वापसी के बाद खुरासान गिरोह इस तरह के हमले क्यों करेगा? 

यदि ऐसा हो जाए तो क्या बात है. लेकि मुझे नहीं लगता कि अब अमेरिकियों के चले जाने के बावजूद इस तरह के हमले बंद हो जाएंगे. अल-कायदा या खुरासान गिरोह और तालिबान के बीच सैद्धांतिक मतभेद तो हैं ही, सत्ता की लड़ाई भी है. 

खुरासान गिरोह के लोग अमेरिकियों के साथ तालिबान की सांठगांठ के धुर विरोधी रहे हैं. वे काबुल से तालिबान को भगाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देंगे. तालिबान सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित है लेकिन खुरासानी गिरोह अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और म्यांमार तक पैर फैलाना चाहता है. 

वह पाकिस्तान से भी काफी खफा है. वे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की तरह इस्लामाबाद को भी अपना शत्नु समझते हैं. वे तालिबान को भी काबुल में चैन से क्यों बैठने देंगे? 

तालिबान ने फिलहाल शिनजियांग के चीनी उइगर मुसलमानों से हाथ धो लिये हैं, कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा बता दिया है और मध्य एशिया के मुस्लिम गणतंत्नों में इस्लामी तत्वों के दमन से भी हाथ धो लिए हैं. इसीलिए अब तालिबान और खुरासानियों में जमकर ठनने की आशंका है. 

इसके अलावा तालिबान भी कई गिरोहों (शूरा) में बंटे हुए हैं. वे आपस में भिड़ सकते हैं. यह भिड़ंत अफगानिस्तान की संकटग्रस्त आर्थिक स्थिति को भयावह बना सकती है. हथियारों का जो जखीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, वह कई नए हिंसक गुट पैदा कर देगा. 

अमेरिका तो इसी से खुश है कि अफगानिस्तान से उसका पिंड छूट गया. वह लगभग इसी तरह कोरिया, वियतनाम, लेबनान, लीबिया, इराक, सोमालिया आदि देशों को अधर में लटकता छोड़कर भागा है. 

भारत अभी अमेरिका के साथ है लेकिन उसे उसकी पुरानी हरकतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने में जो भूमिका भारत और पाकिस्तान मिलकर अदा कर सकते हैं, वह कोई नहीं कर सकता.

Web Title: Afghanistan crisis: why US troops leave Afghanistan

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