अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कसौटियों पर खरे नहीं उतर पाए इमरान खान

By अभय कुमार दुबे | Published: April 12, 2022 10:14 AM2022-04-12T10:14:40+5:302022-04-12T10:15:32+5:30

इमरान खान को आखिरकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से अलग होना पड़ा. राजनीति में इमरान के लिए आगे की राह भी काफी मुश्किल होने वाली है।

Abhay Kumar Dubey's blog: Imran Khan could not live up to the criteria in Pakistan | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कसौटियों पर खरे नहीं उतर पाए इमरान खान

कसौटियों पर खरे नहीं उतर पाए इमरान खान (फाइल फोटो)

सत्ता से हटाए जाने के बाद अब इमरान खान क्या करेंगे? उन्हें विदेश जाने से रोकने की अदालती कार्रवाई शुरू हो चुकी है. हो सकता है कि उन्हें भ्रष्टाचार के इलजामों का सामना करना पड़े, और उनका हश्र भी भुट्टो, जरदारी और नवाज शरीफ जैसा हो. अगला चुनाव उनकी लोकप्रियता की परीक्षा लेगा, लेकिन फौज उन्हें किसी कीमत पर चुनाव नहीं जीतने देगी. थल सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा उन्हें सत्ता में नहीं देखना चाहते. 

विपक्ष का कोई नेता इमरान के साथ हमदर्दी नहीं रखता. उनके लिए कोई गठजोड़ बनाना भी मुश्किल है. क्रिकेट में ऐसी स्थिति को ‘रिटायर्ड हर्ट’ कहा जाता है. यह सही है कि घायल होकर पवेलियन लौटने वाला बल्लेबाज कभी न कभी वापसी करता है, पर राजनीति के मैदान में ऐसी वापसी क्रिकेट के मुकाबले कहीं मुश्किल है.

पौने चार साल तक प्रधानमंत्री के रूप में इमरान एक अनूठी पारी खेल रहे थे. क्रिकेट में वे गेंदबाजी और बल्लेबाजी में से एक ही काम कर सकते थे. पर सत्ता में आने के बाद, खासकर अपने आखिरी दौर में वे गेंदबाजी भी करते दिखे और बल्लेबाजी भी. यहां तक कि फील्डिंग भी वे ही कर रहे थे. उनकी दुनिया में सबकुछ खुद उन्हीं के ऊपर केंद्रित था. 

इस बेतहाशा शिख्सयतपरस्ती का नतीजा यह निकला है कि उन्होंने पाकिस्तान को गृहयुद्ध की कगार पर पहुंचा दिया है. कुछ भी हो सकता है. यह भी संभव है कि सेना एक बार फिर सत्ता संभाल ले. लेकिन, सेना के भीतर भी राजनीति की इस करवट को लेकर मतभेद हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इमरान के कारण उनका वह देश बुरी तरह संकटग्रस्त हो गया है जिसे क्रिकेट कप्तान के रूप में उन्होंने बुलंदियों पर पहुंचाया था.

सत्तारूढ़ होते समय इमरान का मुख्य वायदा भ्रष्टाचार मिटाने का था. दिल्ली के एक पत्रकार ने उनका शुरुआती वक्तव्य सुनकर व्यंग्य से कहा था कि वे पाकिस्तान के मोदी-केजरीवाल के रूप में उभरे हैं. उनकी पहली असली चुनौती यह थी कि जिस फौज के समर्थन से उन्हें गद्दी मिली है, उसके द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार से वे कैसे निपटते हैं. 

दूसरे, नेताओं के भ्रष्टाचार से निबटने का मुद्दा तो था ही. दिक्कत यह थी कि नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने से उन्हें लोकप्रियता मिल सकती थी, पर फौज की तरफ उंगली उठाने का मतलब था उस दोस्त को दुश्मन बनाना जिसने उन्हें गद्दी पर बैठाया है. जाहिर है कि इमरान किसी के भी भ्रष्टाचार के मुकाबले संघर्ष नहीं कर पाए. 

फौज के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का तो मौका ही नहीं आया. उसके बरक्स अपनी राजनीतिक स्वायत्तता दिखाने के चक्कर में उन्हें सत्ता से वंचित होना पड़ा. आज स्वयं उनके ऊपर भ्रष्टाचार के इलजाम लग रहे हैं. कहा जाता है कि उनकी पत्नी बुशरा बीबी की एक सहेली ने करोड़ों रुपए खाकर अफसरों की नियुक्तियां करवाई हैं. और भी कई घोटाले हैं जिनसे इमरान का प्रधानमंत्रित्व दागदार हुआ है.  

1996 में तहरीके इंसाफ पार्टी की स्थापना से पहले उनके सामने छह सवाल थे-क्या वे  पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक निजाम दे सकते हैं, क्या वे लोकतंत्र की संस्थागत अवधारणा में विश्वास रखते हैं, क्या उनके पास पाकिस्तान के जड़ीभूत आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने का रास्ता है, क्या वे चौतरफा भ्रष्टाचार के ऊपर कोई नैतिक संयम आरोपित कर सकते हैं, क्या वे पाकिस्तानी समाज को सामंती अवशेषों के चंगुल से निकाल कर एक प्रगतिकामी चरित्र प्रदान कर सकते हैं, क्या वे पाकिस्तान को अमेरिका का पिछलग्गू बने रहने की स्थिति से निकाल कर एक गौरवशाली आधुनिक राष्ट्र बना सकते हैं, क्या वे पाकिस्तान को भारत विरोधी युद्धोन्माद ने मुक्ति दिलाकर उपमहाद्वीप को शांति और भाईचारे के रास्ते पर ले जा सकते हैं? दो दशक बाद आज भी न केवल इमरान खान के सामने यही छह सवाल है बल्कि समूचा पाकिस्तान इन सवालों का सामना कर रहा है.

चुनावों में शुरुआती नाकामियों के बीच इमरान को कामयाबी का पहला स्वाद 2013 में मिला जब उनकी पार्टी को खैबर-पख्तूनवा में गठजोड़ सरकार का नेतृत्व करने का मौका मिला. यह  प्रांत अपने सामरिक महत्व के लिए जाना जाता है. हालांकि इमरान पहले से ही फौज और आईएसआई के नजदीक थे, पर इस प्रांत पर हुकूमत के जरिये वे इस मुल्क के फौजी निजाम के पसंदीदा नेता बन गए. 

इसके बाद उन्होंने सेना के साथ एक भीतरी समझौता करके नवाज शरीफ के मुंह पर भ्रष्टाचार की कालिख पोतने के जरिये उन्हें ठिकाने लगाने की योजना पर अमल शुरू किया. अदालत ने भी सेना का साथ दिया और देखते-देखते नवाज शरीफ के लिए पाकिस्तान में राजनीति करना तकरीबन नामुमकिन हो गया. 

इस योजना की सफलता का नतीजा इमरान को प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलने के रूप में निकला. सत्ता छिनने के बाद नेता लोग अक्सर थोड़े-बहुत दिन बियाबान में रहने के बाद वापसी की योजना पर अमल शुरू कर देते हैं. लेकिन, ऐसा करना इमरान के लिए विशेष रूप से कठिन होने वाला है. 

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog: Imran Khan could not live up to the criteria in Pakistan

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