ब्लॉग: चैटजीपीटी की बढ़ रही लोकप्रियता लेकिन मानव मस्तिष्क का मुकाबला अभी संभव नहीं !

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 24, 2023 02:37 PM2023-04-24T14:37:47+5:302023-04-24T14:38:58+5:30

कुछ काम में ज्ञान सृजन के लिए चैटजीपीटी एक अच्छा सहयोगी है, लेकिन मानव मन सबसे शक्तिशाली मशीन है, जिसे हराया नहीं जा सकता है.

increasing popularity of ChatGPT, but it is not possible to compete with the human brain | ब्लॉग: चैटजीपीटी की बढ़ रही लोकप्रियता लेकिन मानव मस्तिष्क का मुकाबला अभी संभव नहीं !

ब्लॉग: चैटजीपीटी की बढ़ रही लोकप्रियता लेकिन मानव मस्तिष्क का मुकाबला अभी संभव नहीं !

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की दुनिया की नई खोज चैटजीपीटी यानी चैट जेनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर की परीक्षाओं का दौर लगातार जारी है. अमेरिका में एक मेडिकल परीक्षा में पास होने के बाद वह भारत में लोक सेवा आयोग की परीक्षा में फेल हो चुका है. अब वह लेखा परीक्षा में भी छात्रों से पिछड़ गया है. अमेरिका की ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी (बीईयू) और 186 अन्य विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं की लेखा परीक्षा में चैटजीपीटी के 47.4 फीसदी अंकों की तुलना में छात्रों ने कुल औसत 76.7 प्रतिशत अंक पाए. 

चैटजीपीटी का लेखांकन सूचना प्रणाली (एआईएस) और लेखा परीक्षण में अच्छा प्रदर्शन रहा, लेकिन वित्तीय और प्रबंधकीय आकलन में स्थिति खराब रही. हालांकि शोध की दृष्टि से इस प्रदर्शन को भी बुरा नहीं माना जा रहा है. फिर भी मानव दिमाग के साथ मुकाबले पर चल रही बहस तो आगे बढ़ चली है. 

इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति का मानना है कि कुछ कार्यों में ज्ञान सृजन के लिए चैटजीपीटी एक अच्छा सहयोगी है, लेकिन मानव मन सबसे शक्तिशाली मशीन है, जिसे हराया नहीं जा सकता है. जैसा समझा गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और ‘मशीन लर्निंग’ पर आधारित चैटजीपीटी तकनीक बातचीत के माध्यम से सूचनाओं और सवालों का जवाब देती है. इसे बड़े पैमाने पर इंटरनेट पर मिली सामग्री से प्रशिक्षित किया गया है. 

खास बात है कि सार्वजनिक प्रयोग के लिए शुरू होने के बाद मात्र पांच दिनों के भीतर ही 10 लाख से अधिक यूजर्स ने इसे ‘साइन-अप’ कर दिया था और अब इसे इस्तेमाल करने वालों की संख्या बीस लाख से आगे पहुंच चुकी है. यह किसी भी ‘इंटरनेट प्लेटफार्म’ पर उपयोगकर्ताओं के पहुंचने की सबसे तेज गति है. यह अन्य इंटरनेट पर उपलब्ध ‘सर्च इंजिन’ की तरह नहीं है. 

यह सामान्य मानवीय भाषा को समझता है और मानव की तरह विस्तृत लेखन जैसे कार्य भी कर सकता है. यही वजह है कि बार-बार इसका मानव के साथ मुकाबला करवाया जा रहा है. हाल-फिलहाल में इसकी उपयोगिता डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन कंटेंट क्रिएशन, ग्राहक सेवा, निजी सहायक आदि रूप में मानी जा रही है. मगर संभव है कि अभी इससे कुछ सवालों के जवाब त्रुटिपूर्ण मिलें. कुछ न भी मिलें, क्योंकि अभी इसकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए लगातार शोध और विकास जारी है. 

अभी यह डर दूर नहीं हो पाया है कि किसी विषय पर इससे तैयार हुई हानिकारक सामग्री को कैसे रोका जाएगा? कई मामलों में इसके सुझाव नुकसान भी पहुंचा सकते हैं, तो उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाएगा? इसकी अभी ‘रीयल टाइम डाटा’ तक पहुंच नहीं है, इसलिए यह वर्तमान में चल रही घटनाओं के बारे में सहायता नहीं कर सकता है. स्पष्ट है कि कोई भी तकनीक अपने साथ अपनी सीमा को भी लाती है. उसके आगे ही मानव मस्तिष्क काम करता है. 

कुछ साल पहले कम्प्यूटर के आने के समय में भी मानव की उपयोगिता पर अनेक सवाल उठने लगे थे. किंतु आज स्थितियां यह हैं कि कम्प्यूटर के क्षेत्र में मानव संसाधन की अत्यधिक मांग है. अब काम के तरीके बदल गए हैं, लेकिन इंसानी जरूरत अपनी जगह अलग है. 

ऐसे में मानव के साथ ‘चैटजीपीटी’ का मुकाबला चलता रहेगा. कहीं जीत तो कहीं हार मिलती रहेगी. लेकिन मानवी दिमाग की उपज मानव को कभी हरा नहीं पाएगी, क्योंकि उसमें थमने का कोई गुण नहीं है. यदि वह आज चैटजीपीटी के बारे में सोच रहा है तो आगे वही उसकी कोई नई चुनौती खोजेगा, जो इंसानी प्रकृति भी है और प्रवृत्ति भी है. इसलिए हार-जीत के खेल में फिलहाल तो घबराने की कोई जरूरत नजर नहीं आती है.

Web Title: increasing popularity of ChatGPT, but it is not possible to compete with the human brain

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