हाल ही में 17 मई को केंद्र सरकार ने सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) हार्डवेयर के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना-2.0 को स्वीकृति देते हुए इसके लिए 17000 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया है। सरकार ने इस योजना के पिछले स्वरूप के लिए 7325 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। इस योजना का उद्देश्य देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ावा देते हुए लैपटॉप, टैबलेट, पर्सनल कम्प्यूटर और आधुनिक कम्प्यूटिंग उपकरणों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
खास बात यह भी है कि इस योजना की अवधि भी अब चार वर्षों से बढ़ाकर छह वर्षों तक कर दी गई है और अब तक इस योजना के तहत जो 2 प्रतिशत प्रोत्साहन दिया जा रहा था उसे बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस पीएलआई योजना में नए बदलावों और प्रोत्साहन से सरकार तय अवधि में आईटी हार्डवेयर क्षेत्र में 2430 करोड़ रुपए का निवेश आने के साथ-साथ 75000 प्रत्यक्ष रोजगार सृजित करने और उत्पादन मूल्य 3.55 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ने की उम्मीद कर रही है।
गौरतलब है कि देश में वर्ष 2020 से शुरू हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्युफैक्चरिंग के तहत उद्योगों को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। देश को इस सेक्टर में तेजी से आगे बढ़ाने और चीन से आयात किए जाने वाले दवाई, रसायन और अन्य कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले तीन वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब 1.97 लाख करोड़ रुपए आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं। विगत 27 अप्रैल को केंद्रीय उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के तहत पीएलआई योजना में 2874 करोड़ रुपए के भुगतान किए गए हैं। इसके तहत मोबाइल विनिर्माण की रफ्तार सबसे तेज रही है और इसका निर्यात बढ़ा है। मोबाइल निर्यात वित्त वर्ष 2022-23 में 11 अरब डॉलर पार कर गया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.48 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। पीएलआई योजना के तहत पांच वर्षों में 60 लाख नौकरियों के अवसर सृजित होंगे।
उल्लेखनीय है कि इन दिनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में यह रेखांकित हो रहा है कि जहां पीएलआई योजना से भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं इस सेक्टर में नौकरियों के मौके भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले दिनों जी-20 बैठकों में भाग लेने भारत आए वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडेंट डेविड आर मलपास ने कहा कि एक ऐसे समय में जब ग्लोबल सप्लाई चेन और मैन्युफैक्चरिंग का डायवर्सिफिकेशन हो रहा है, तब भारत के लिए इस सेक्टर में आगे बढ़ने के जोरदार मौके हैं।
ज्ञातव्य है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 17 फीसदी योगदान देने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 2.73 करोड़ से अधिक श्रमबल के साथ अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन विनिर्माता है और तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट है। भारत का फॉर्मा उद्योग उत्पादित मात्रा के आधार पर दुनिया में तीसरे क्रम पर है। साथ ही भारत दुनिया में सबसे अधिक मांग वाला तीसरा बड़ा विनिर्माण गंतव्य है। इलेक्ट्रानिक्स और रक्षा क्षेत्र में लगातार आयात पर निर्भर रहने वाला भारत अब बड़े पैमाने पर इनका निर्यात करने लगा है।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए सरकार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रही है। भारत को एक वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिए मेक इन इंडिया 2.0, मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए तकनीकी समाधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग 4.0, स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिए स्टार्टअप इंडिया, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना के लिए पीएम गति शक्ति और उद्योगों को डिजिटल तकनीकी शक्ति प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया जैसी सफल पहलों के कारण भारत चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारतीय कंपनियां शोध व नवाचार में आगे बढ़ रही हैं। ऑटोमेशन और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों पर भी उद्योग की ओर से अपेक्षित ध्यान दिया जा रहा है। सरकार को उम्मीद है कि ऐसे विभिन्न कार्यक्रमों और नीतियों के कारगर कार्यान्वयन से वर्ष 2025 तक जीडीपी का 25 फीसदी योगदान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आएगा।
हम उम्मीद करें कि सरकार पीएलआई योजना के कारगार क्रियान्वयन के साथ-साथ नई विदेश व्यापार नीति (एफटीए) के तहत वर्ष 2030 तक एक हजार अरब डॉलर के उत्पाद निर्यात के लक्ष्य को पाने के साथ-साथ विनिर्माण उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए लागू की गई विभिन्न योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन पर हरसंभव तरीके से ध्यान देगी। इससे भारत दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनते हुए दिखाई देगा।