शोभना जैन का ब्लॉग: सौहार्द्र और सद्भावना का पर्व है क्षमावाणी

By शोभना जैन | Published: August 22, 2020 06:36 AM2020-08-22T06:36:42+5:302020-08-22T06:38:36+5:30

भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यंत महत्वपूर्ण जिन परंपरा ने क्षमा को पर्व के रूप में ही प्रचलित किया है. जैनों के प्रमुखतम पर्व में ‘क्षमापर्व’ है. पर्यूषण दरअसल एक पर्व-अवधि है, दस दिनों तक चलने वाले पर्व की एक श्रृंखला है, जिसके दौरान क्षमा को आचरण की सभ्यता के रूप में ढाला जाता है.

Shobhana Jain's Blog: Apology: The Festival of Harmony and Harmony | शोभना जैन का ब्लॉग: सौहार्द्र और सद्भावना का पर्व है क्षमावाणी

शोभना जैन का ब्लॉग: सौहार्द्र और सद्भावना का पर्व है क्षमावाणी

सूर्योदय की  बेला.. भोर के सूर्य की सिंदूरी आभा में णमोकार मंत्न के मंगल मंत्नोच्चार से पूरा माहौल दिव्य हो रहा था..श्वेत, धवल वस्त्नों में दिव्य आभामंडल वाले मुनिश्री के साथ जैन दिगंबर वेश में वैसे ही दिव्य आभामंडल वाले एक अन्य तपस्वी मुनि शांत मुद्रा में एकाग्रचित्त हो ध्यान साधना में रत थे. माहौल में पूर्ण शांति और संतोष था और मात्न एक ध्वनि सुनाई दे रही थी. मद्धम स्वर में  शीतलता से भरी णमोकार मंत्न की मंगल ध्वनि..

यह एक विशेष धर्म सभा थी. जैन संप्रदाय के सबसे पावन पर्व पर्यूषण पर्व के समापन पर क्षमा वाणी पर्व के अवसर पर आयोजित धर्म सभा, जिसमें मुनि दिव्य ध्यान साधना के बाद अपने प्रवचन में जीवन में क्षमा की महत्ता बता रहे थे. मुनि श्री बता रहे थे ‘क्षमावाणी का पर्व सौहाद्र्र, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व है. आज जिस तरह से समाज में सहिष्णुता कम होती जा रही है, उसमें क्षमा का विशेष महत्व है. इस क्षमावाणी पर्व में एक-दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुषता, अहंकार को दूर किया जाता है.

मानवता जिन गुणों से समृद्ध होती है, उनमें क्षमा प्रमुख और महत्वपूर्ण है. यह पर्व जैन धर्म का ही पर्व नहीं, संपूर्ण मानवता का पर्व है, जहां जीव दया है, जहां उस आदर्श समाज की कल्पना है जहां समता है, जहां शेर और बकरी के एक ही घाट से पानी पीने वाले आदर्श समाज की रचना ध्येय है. जियो और जीने दो, अहिंसा, करुणा, शांति और समता जैसे बुनियादी जीवन मूल्य को जीवन में अपनाने का संदेश है.’

आत्मशुद्धि, आत्म कल्याण का पर्व पर्यूषण पर्व

जैन धर्म में पर्यूषण पर्व आत्मशुद्धि, आत्म कल्याण का पर्व है और भाद्र मास के आठ/दस दिवसीय आध्यात्मिक पर्व की समाप्ति पर क्षमा याचना को उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है जहां वे याचना करते हैं कि अगर जाने-अनजाने में मन-वचन-काय से किसी का उन्होंने आहत किया है तो वे क्षमा प्रार्थी हैं. मुनि श्री बता रहे थे ‘क्षमा दूसरे के लिए नहीं है बल्किवह स्वयं आपको निर्मल बनाती है, आपके अंतर्मन में छाए द्वंद्व से आपको मुक्त करती है जो न केवल आपके मन बल्कितन के लिए भी बेहद जरूरी है.’

 प्रवचन समाप्त होते ही उपस्थित सभी श्रद्धालु एक-दूसरे से क्षमा याचना करते हैं. अचानक एक आठ-नौ वर्षीय बालक अपने माता-पिता के पास से हट कर मुनि श्री के पास पहुंचता है, कहता है ‘आचार्य श्री, मेरी क्लास के एक छात्न से मेरा बहुत झगड़ा होता है, कई बार मैं सॉरी बोलना चाहता हूं, लेकिन मुङो सॉरी बोलते शर्म आती है.’

आचार्य श्री कहते हैं  ‘कल स्कूल में जाकर बोल कर देखना, फिर देखना वो तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त बन आएगा और भी नए दोस्त बन जाएंगे.’ बच्चे की आंखें चमकने लगती हैं, मानो उसे कक्षा में फस्र्ट आने का गुरुमंत्न मिल गया हो. तपस्वी मुनि साधु-साध्वियों के समूह के पीछे एक अन्य धर्मावलंबी मित्न के साथ हम मंदिर की सीढ़ियों से एक नई सकारात्मक ऊर्जा लिए नीचे उतर रहे थे.

क्षमावाणी पर्व आखिर है क्या?

नीचे उतरते वक्त मित्न की जिज्ञासा थी कि क्षमावाणी पर्व आखिर है क्या? वहां मौजूद सभी श्रद्धालु ‘क्षमा भाव’ क्यों कह रहे थे? मित्न ने आज ‘मिच्छामि दुक्कड़म’, ‘खमत-खामणा’ शब्द  पहली बार सुने. आखिर इसके मायने क्या हैं?  क्षमा, वो भी पर्व के रूप में, इसे लेकर मित्न की कितनी ही जिज्ञासाएं थीं, कितने ही सवाल थे.

भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यंत महत्वपूर्ण जिन परंपरा ने क्षमा को पर्व के रूप में ही प्रचलित किया है. जैनों के प्रमुखतम पर्व में ‘क्षमापर्व’ है. पर्यूषण दरअसल एक पर्व-अवधि है, दस दिनों तक चलने वाले पर्व की एक श्रृंखला है, जिसके दौरान क्षमा को आचरण की सभ्यता के रूप में ढाला जाता है. जैनों के सभी संप्रदायों में इसकी समान मान्यता है. जैन धर्म की परंपरा के अनुसार वर्षा ऋतु के भाद्रपद माह में मनाया जाना वाला पर्यूषण पर्व, जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि, आत्मकल्याण का पर्व माना जाता है.

मित्न की उत्सुकता है कि आत्मशुद्धि आखिर कैसे की जाती है? पर्यूषण पर्व के दौरान लोग पूजा, अर्चना, आरती, सत्संग, त्याग, तपस्या,  उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं. दस दिन तक चलने वाले पर्यूषण पर्व का प्रत्येक एक दिन जीवन के दस धर्म को समर्पित है- उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव (मान), उत्तम आर्जव (छल), उत्तम शौच (पवित्नता), उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रrाचर्य. क्षमा दस धर्म का सार है.

'वसुधैव कुटुंबकम्’

वैश्वीकरण के इस दौर में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की उक्ति वास्तव में क्षमा पर्व जैसे आयोजनों में ही चरितार्थ होती दिखती है. दार्शनिक, अध्येता, तपस्वी जैन संत आचार्य विद्यासागर के अनुसार भी क्षमा ही असली धर्म है. क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा धर्म आधार होता है. क्रोध सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्न सभी के लिए हितकारी होती है, जैन धर्म की तो अवधारणा ही ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर आधारित है.  

क्षमा की महत्ता सुनकर मित्न के चेहरे पर अद्भुत शांति के भाव उभर आते हैं. शांत भाव से वे कहते हैं ‘सॉरी मानने में शर्म महसूस करने वाला वह अबोध बालक अचानक बहुत याद आ रहा है. वह तो अबोध था लेकिन हम बड़े भी अक्सर क्षमा की अपार शक्ति ऊर्जा समझ ही नहीं पाते हैं. अब लग रहा है कि कई बार ऐसे हालात में मुङो क्षमा याचना कर लेनी चाहिए, यह नहीं सोचना था कि गलती किसकी थी, अचानक मन धुला-धुला सा निर्मल हो गया है.’

साधु-साध्वी शायद कहीं बहुत आगे ‘क्षमा भाव’ का संदेश देने निकल गए हैं, लगा मंदिर से मंत्नोच्चार की गूंज और तेज हो उठी है, जो हर जगह शांति फैला रही है, माहौल में चंदन की खुशबू सी भर गई है. मंत्नोच्चार के बीच एक गूंज सी हर ओर से सुनाई देने लगी ‘सभी जीव सुखी रहें, किसी भी जीव को कोई दु:ख न हो, पेड़-पौधे, पर्यावरण और सभी जीव शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना से साथ-साथ रहें. मुझसे किसी को कष्ट न पहुंचे, मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं, सभी जीव मुङो क्षमा प्रदान करें.. ‘मिच्छामि दुक्कड़म’-‘खमत-खामणा’ - क्षमा-भाव, क्षमा-भाव’

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