भंवरा बन के मजा उड़ा ले जो तन फिर नई मिलना रे.....सहरिया आदिवासी लोकगीतों में होली के रंग

By प्रमोद भार्गव | Updated: March 7, 2023 13:51 IST2023-03-07T13:50:08+5:302023-03-07T13:51:27+5:30

Sahariya tribal celebration of Holi with folk songs | भंवरा बन के मजा उड़ा ले जो तन फिर नई मिलना रे.....सहरिया आदिवासी लोकगीतों में होली के रंग

भंवरा बन के मजा उड़ा ले जो तन फिर नई मिलना रे.....सहरिया आदिवासी लोकगीतों में होली के रंग

सहरिया आदिवासियों का होली और होलिका-दहन प्रमुख पर्व है. होलिका-दहन के स्थल पर सहरिया पुरुष ढोल और झांज बजाते हैं. स्त्रियां लोकगीत गाती हैं. होली के अगले दिन रंग-गुलाल से लोग परस्पर होली खेलते हैं. इस दिन महिलाएं गालियां भी गाती हैं. इनमें स्त्रियों की पीड़ा कसक के रूप में सामने आती है. रिश्ते की भाभियों के साथ देवर मर्यादित हंसी-मजाक भी करते हैं. सहरिया समाज में जिन  स्त्री और पुरुषों की प्रवृति रूखी या झगड़ालू होती है, उनका स्वांग रचकर युवक उपहास भी उड़ाते हैं. 

इसी तरह पुरुषों की शारीरिक विकृति या अपंगता का भी मजाक उड़ाया जाता है. कुल मिलाकर सहरियों के पर्व एवं त्यौहारों में ऐसी कोई विलक्षणता नहीं है, जो इस क्षेत्र के अन्य जातीय समूहों से विशिष्ट हो. अंततः इनके त्यौहारौं में सनातन हिंदू समाज की लोक-परंपरा और रीति रिवाज ही अंतर्निहित हैं. 

होली का यही वह समय होता है, जब जंगल पलाश के फूलों से लाल हो जाते हैं और अमलतास के पेड़ों में पीली-पीली झुमकियाँ लटकी दिखाई देने लगती हैं. आमों पर बौर की फुनगियाँ निकल आती हैं. प्रकृति का यह परिवेश होली का रसिया गीत गाने को विवश कर देता है.

मृग नैनी नार नवल रसिया /बड़ी बड़ी अंखियां , नैनन कजरा, टेढ़ी चितवन  मनबसिया / बांह बरा बाजबूंद सोहे, हियरे हार दिपत छतियां/ रंग महल में सेज सजाई, लाल पलंग पचरंग तकिया.

ग्वालियर-अंचल के मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर और गुना जिलों में सबसे ज्यादा सहरिया आदिवासियों की बसाहट है. होली के दिन इन सभी  सहरिया बस्तियों में रंग-गुलाल डालकर होली का पर्व तो मनाया ही जाता है, साथ ही ईसुरी की फागों के माध्यम से क्षण भंगुर जीवन का संदेश भी दिया जाता है.

भंवरा बन के मजा उड़ा ले जो तन फिर नई मिलना रे,
मडू पै बैठे सबरे रो हैं कोऊ न संगै जैहे रे.

अर्थात दुनिया में कोई अमृत पीकर नहीं आया है. सबको एक न एक दिन जाना ही है. तब जो लोग चले गए हैं, उनके लिए दुख कैसा. जीवन के समस्त संकटों को भुलाकर होली के हुरियारों की यह टोली बस्ती-बस्ती यह गीत गाती एक नई उत्सवधर्मिता रचती दिखाई देती है.

Web Title: Sahariya tribal celebration of Holi with folk songs

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