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मकर संक्रांतिः सांस्कृतिक विविधता और परिवर्तन का पर्व 

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: January 14, 2023 09:00 IST

अकारण नहीं कि हर मकर संक्रांति पर देश की विभिन्न नदियों में स्नान कर सूर्य को पिता स्वरूप मानकर नमस्कार किया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। जानकार बताते हैं कि सूर्य के प्रति कृतज्ञता की यह परंपरा बिल्कुल वैसी ही है जैसी धरती को माता मानकर आदर देने की।

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कहीं बिहू, कहीं लोहड़ी, कहीं पोंगल तो कहीं उत्तरायण। कहीं खिचड़ी भोज, कहीं दही-चूड़ा की मौज, कहीं तिल-गुड़ के लड्डुओं का भोग तो कहीं डोर थामकर पतंग उड़ाने की उमंग। मकर संक्रांति के पर्व के जैसे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नाम हैं, वैसे ही मनाने के तौर-तरीके भी। इस रूप में देखें तो हमारी सांस्कृतिक विविधता का इस जैसा प्रतिनिधित्व शायद ही कोई और पर्व करता हो!

इसे यों भी समझ सकते हैं कि नाम व मनाने के तरीके भिन्न होने के बावजूद यह देश के उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक प्रकृति से साहचर्य, उमंग, उत्साह, उत्कर्ष व परिवर्तन का ही पर्व है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पर्व हमारी उस मनुष्यसुलभ जिजीविषा की प्रेरणा है, जिसके तहत हम अपने जीवन की परिस्थितियों को सम्यक यानी अपने अनुकूल बनाने की अभिलाषा पूरी करने की दिशा में प्रवृत्त होते हैं।

हाल के दशकों में इससे एक और अच्छी बात यह भी आ जुड़ी है कि कई अंचलों में इस अवसर पर खिचड़ी भोज आयोजित कर जातियों व धर्मों के भेदभावों को नकारने व आपसी सौहार्द्र व सौजन्य बढ़ाने के प्रयत्न किए जाते हैं, जिससे यह सौहार्द्र व सौजन्य के पर्व का रूप भी धारण करने लगा है।

अकारण नहीं कि हर मकर संक्रांति पर देश की विभिन्न नदियों में स्नान कर सूर्य को पिता स्वरूप मानकर नमस्कार किया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। जानकार बताते हैं कि सूर्य के प्रति कृतज्ञता की यह परंपरा बिल्कुल वैसी ही है जैसी धरती को माता मानकर आदर देने की। अब यह तो कोई बताने की बात ही नहीं कि हमारे सौरमंडल में सूर्य की स्थिति सबके पिता जैसी ही है। तभी तो सारे ग्रह-नक्षत्र निरंतर उनकी परिक्रमा किया करते हैं। उन्हें नमस्कार करना सच पूछिए तो उनकी उस अतुलनीय क्षमता को नमन करना है, जिसकी वजह से हम सबका, दूसरे शब्दों में कहें तो इस समूची सृष्टि का अस्तित्व है।

टॅग्स :मकर संक्रांति
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