ब्लॉग: भगवान महावीर को केवल पूजे नहीं उनके उपदेशों को अपने जीवन में भी उतारें
By ललित गर्ग | Updated: April 4, 2023 10:07 IST2023-04-04T10:06:44+5:302023-04-04T10:07:31+5:30

ब्लॉग: भगवान महावीर को केवल पूजे नहीं उनके उपदेशों को अपने जीवन में भी उतारें
भगवान महावीर सामाजिक एवं व्यक्तिक्रांति के शिखर पुरुष थे. उनका दर्शन अहिंसा और समता का ही नहीं बल्कि क्रांति का भी दर्शन है. उनकी क्रांति का अर्थ रक्तपात नहीं. क्रांति का अर्थ है परिवर्तन. क्रांति का अर्थ है जागृति. क्रांति अर्थात् स्वस्थ विचारों की ज्योति. सत्य और पूर्णता की ओर बढ़ना क्रांति है. इस दिशा में स्वयं बढ़ना क्रांति कहलाता है. जिसे वीर पुरुष सत्यपथ मानता है, उस ओर जिस समय वह अपने युग के समाज को भी आगे बढ़ाता है तब वह क्रांतिकारी कहलाता है.
भगवान महावीर इस अर्थ में क्रांतिकारी थे. उन्होंने केवल धर्म तीर्थ का ही प्रवर्तन नहीं किया बल्कि एक उन्नत और स्वस्थ समाज के लिए नए मूल्य-मानक गढ़े. उन्होंने प्रगतिशील विचारों को सही दिशा ही नहीं दी बल्कि उनमें आए ठहराव को तोड़कर नई क्रांति का सूत्रपात किया. भगवान महावीर गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिए वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गए. उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती, उसके लिए सच्चाई, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है. महावीर जयंती मनाते हुए हम केवल भगवान महावीर को पूजें ही नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को जीने के लिए संकल्पित हों.
आज की समस्या है- पदार्थ और उपभोक्ता के बीच आवश्यकता और उपयोगिता की समझ का अभाव. उपभोक्तावादी संस्कृति महत्वाकांक्षाओं को तेज हवा दे रही है, इसीलिए जिंदगी की भागदौड़ का एक मकसद बन गया है- संग्रह करो, भोग करो. महावीर की शिक्षाओं के विपरीत हमने मान लिया है कि संग्रह ही भविष्य को सुरक्षा देगा. जबकि यह हमारी भूल है.
जीवन का शाश्वत सत्य है कि इंद्रियां जैसी आज हैं भविष्य में वैसी नहीं रहेंगी. फिर आज का संग्रह भविष्य के लिए कैसे उपयोगी हो सकता है? क्या आज का संग्रह कल भोगा जा सकेगा जब हमारी इंद्रिया अक्षम बन जाएंगी?
भगवान महावीर ने जन-जन के बीच आने से पहले, अपने जीवन के अनुभवों को बांटने से पहले, कठोर तप करने से पहले, स्वयं को अकेला बनाया, खाली बनाया. जीवन का सच जाना. फिर उन्होंने कहा अपने भीतर कुछ भी ऐसा न आने दो जिससे भीतर का संसार प्रदूषित हो. न बुरा देखो, न बुरा सुनो, न बुरा कहो. यही खालीपन का संदेश सुख, शांति, समाधि का मार्ग है.
दिन-रात संकल्पों-विकल्पों, सुख-दुख, हर्ष-विषाद से घिरे रहना, कल की चिंता में झुलसना, तनाव का भार ढोना, ऐसी स्थिति में भला मन कब कैसे खाली हो सकता है? कैसे संतुलित हो सकता है? कैसे समाधिस्थ हो सकता है?