Krishna Janmashtami 2024: श्रीकृष्ण जितने विलक्षण और विराट हैं, उतने ही लोक-जीवन में भी समरस हैं. सरल, तरल, सबके निकट और साधारण को सहज भाव से अपनाने में भी उन जैसा कोई और देवता नहीं दिखता. श्रीकृष्ण का पूरा जीवन आम जनों, भक्तों और मनीषियों- सबके लिए अभी भी जिज्ञासा का विषय बना हुआ है और उनसे सबको जीवन के पाथेय के रूप में कुछ न कुछ अवश्य प्राप्त होता है. हमारी संस्कृति यात्रा के वृत्तांत में श्रीकृष्ण का जीवन एक प्रेरणादायी, ज्ञानवर्धक और चित्ताकर्षक अध्याय है जो कई दृष्टियों से अनोखा और अप्रतिम है.
श्रीकृष्ण की सुमधुर अनुभूति और स्मृति युगों-युगों से भारतीय मानस को ऊर्जा देती आ रही है. उनसे जुड़े मथुरा, ब्रज, नंदगांव, बरसाने, वृंदावन, श्रीनाथ जी, विट्ठल जी, द्वारका आदि तीर्थ स्थल भक्तों के लिए सजीव बने हुए हैं. जन्माष्टमी, कृष्ण-कथा, कृष्ण-लीला और रास-लीला आदि के माध्यम से कृष्ण का अनुभव बासी नहीं पड़ता.
वह आज भी ताजा होता रहता है और भारत के विभिन्न भागों में अपरिमित संभावनाओं से भरपूर बना हुआ है. श्रीकृष्ण परिपूर्णता की प्रतिमूर्ति हैं और पूर्ण होने की शर्त ही है कि वह रचना अपने में सबको साथ लेकर और समेट कर चले. आखिर सर्वसमावेशी होकर ही तो कोई पूर्ण होने का दावा कर सकता है.
पूर्ण रचना में विविध प्रकार के तत्व, यहां तक कि जो एक-दूसरे के विपरीत भी हों, उनके लिए भी जगह होती है. तभी पूर्णावतार श्रीकृष्ण सब कुछ के बीच बिना डिगे अविचलित और अच्युत बने रहते हैं. वे बड़े गतिशील हैं, पर आवश्यक मर्यादाओं का ख्याल रखते हैं और यथासंभव उनका निर्वाह भी करते हैं
. वे यह भी जानते हैं कि यदि प्रचलित मर्यादाएं लोक-कल्याण के विरुद्ध हैं तो उनको तोड़ने से पीछे नहीं हटना चाहिए. वे पहले से भिन्न और बड़ी मर्यादा बना कर खड़ी करते हैं और फिर जरूरत पड़ने पर उसका भी अतिक्रमण करने से पीछे नहीं हटते. यह सब करते हुए कर्मठ और सत्यान्वेषी श्रीकृष्ण एक अनथक यात्री के रूप में हमारे सामने उपस्थित होते हैं जिन्हें विश्राम का अवसर नहीं है.
वे कहीं अधिक समय ठहरते नहीं दिखते. उनके लिए तो चरैवेति-चरैवेति ही जीवन-सत्य है. अविराम चलते रहना उनकी नियति है. श्रीकृष्ण अपने आचरण द्वारा दया, दान, दक्षता, विद्या, वीरता, साहस, विनय, क्षमा, धैर्य, संतोष, मैत्री, निरहंकारिता और परदुःखकातरता जैसे मानवीय गुणों का प्रतिमान स्थापित करते हैं.
लोक-पुरुष के रूप में श्रीकृष्ण ने आततायियों के ढाए अपमान, राज-मद, दर्प, मिथ्यारोप और अहंकार का दृढ़ता से प्रतिषेध किया और नए युग का सूत्रपात किया. उनका यह रूप आज के कठिन कंटकाकीर्ण हो रहे समय में भी मनुष्यता का मार्ग प्रशस्त करता है.