डाॅ. कुंवर पुष्पेंद्र प्रताप सिंह
भारत की सांस्कृतिक चेतना सदैव ही विविधता में एकता की अद्भुत परंपरा से परिपूर्ण रही है. उत्तर में स्थित काशी -विश्व की प्राचीनतम जीवित नगरी- और दक्षिण में तमिल सभ्यता -भारत के सबसे समृद्ध सांस्कृतिक वैभवों में से एक- दोनों भारतीय आत्मा की दो ध्रुवीय किंतु एकाकार धाराएं हैं. इन्हीं दो सांस्कृतिक धाराओं को पुनः जोड़ने और संवाद के नए आयाम खोलने के उद्देश्य से वर्ष 2025 में आयोजित ‘काशी तमिल संगमम’ ने न केवल सांस्कृतिक उत्सव का रूप लिया, बल्कि यह राष्ट्रीय समन्वय, सभ्यतामूलक संवाद और सामाजिक-आर्थिक सहयोग का व्यापक मंच बन गया है.
15 दिसंबर तक चलने वाले इस कार्यक्रम का उद्घाटन दो दिसंबर को वाराणसी में किया गया. काशी और तमिल संस्कृति के बीच ऐतिहासिक संबंध हजारों वर्ष पुराने हैं. संगम साहित्य से लेकर काशी की विद्वत् परंपरा तक, दोनों जीवन-मूल्यों, आध्यात्मिक साधना और दार्शनिक दृष्टि की समानता को प्रस्तुत करते हैं.
वर्ष 2025 के आयोजन ने इस पारंपरिक सम्बंध को आधुनिक संदर्भ में जीवंत किया है- जहां इतिहास सम्मानित हुआ, साहित्य और कला का विस्तार हुआ तथा भविष्य के लिए साझे लक्ष्य निर्धारित हुए. इस वर्ष का आयोजन पिछले वर्षों की तुलना में अधिक व्यापक, सहभागी और तकनीक-सक्षम है.
यात्रियों के विशेष समूह, अकादमिक प्रतिनिधिमंडल, कलाकार, छात्र, शोधार्थी, उद्योग–व्यापार क्षेत्र के विशेषज्ञ और सांस्कृतिक संस्थाएं इस उत्सव का हिस्सा बने हैं. काशी तमिल संगमम 2025 का उद्घाटन गंगा तट पर पारंपरिक वैदिक मंत्रोच्चार और तमिल वेदपाठ के साथ हुआ - जो स्वयं में भारत की सांस्कृतिक एकात्मकता का अनूठा प्रतीक था.
इस अवसर पर काशी के विद्वानों ने तमिल साहित्य की आध्यात्मिक परंपरा का स्वागत किया, वहीं तमिलनाडु से आए प्रतिनिधियों ने काशी की ज्ञान-परंपरा को नमन किया. काशी तमिल संगमम 2025 यह साबित कर रहा है कि भारत की सांस्कृतिक विविधता उसके विखंडन का कारण नहीं, बल्कि उसकी शक्ति है.
उद्घाटन अवसर पर हुए आयोजन में प्रस्तावित किया गया कि दोनों राज्यों के विश्वविद्यालयों में ‘काशी–तमिल अध्ययन केंद्रों’ की स्थापना की जाए, वार्षिक साहित्यिक–सांस्कृतिक आदान–प्रदान कार्यक्रम हों, पर्यटन मार्गों का संयुक्त प्रचार हो और युवाओं के लिए स्थायी छात्र–विनिमय कार्यक्रम आयोजित किए जाएं. काशी तमिल संगमम ने भारत की सांस्कृतिक जड़ों को सशक्त किया है, दो प्राचीन सभ्यताओं को आत्मीय रूप से जोड़ा है और राष्ट्र की एकात्मता में नई ऊर्जा का संचार किया है.
यह आयोजन केवल परंपराओं का उत्सव नहीं, बल्कि एक सुसंगठित प्रयास है भारत की उस सांस्कृतिक धुरी को पुनः पहचानने का, जो लोगों को भाषा, भूगोल और आचरण की विविधताओं से ऊपर उठकर एक साझा सांस्कृतिक चेतना से जोड़ती है. संगमम का संदेश स्पष्ट है- भारतीयता केवल भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि साझा सांस्कृतिक आत्मा है, और काशी-तमिल संबंध उस आत्मा के शाश्वत प्रतीक हैं.