जावेद आलम का ब्लॉग: रहमतों, बरकतों के साये में सवाब लूटने का दौर
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 13, 2020 08:38 AM2020-05-13T08:38:15+5:302020-05-13T08:38:15+5:30
कुरआन की पहली सूरह अल-फातिहा के शुरू में कहा गया है, ‘प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब (प्रभु, पालनकर्ता) है. बड़ा कृपाशील, अत्यंत दयावान है.’
रहमतों व बरकतों वाला माहे मुबारक यानी रमजान-उल-मुबारक समय गति के साथ बहता चला जा रहा है. यह अल्लाहतआला की ओर से अपने बंदों के लिए विशिष्ट इनाम है, जो अत्यंत कृपाशील, दयावान है. कुरआन की पहली सूरह अल-फातिहा के शुरू में कहा गया है, ‘प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब (प्रभु, पालनकर्ता) है. बड़ा कृपाशील, अत्यंत दयावान है.’
उसी कृपाशील, दयावान ने अपना जो खास पैगंबर (संदेशवाहक) हजरत मुहम्मद (स.) के रूप में इस धरती पर उतारा, उन्हें ‘रहमतुल लिल आलमीन’ की उपाधि से विभूषित किया. ‘रहमतुल लिल आलमीन’ यानी समस्त सृष्टि के लिए कृपा. ऐसे पैगंबरे-आजम (स.) जो पूरी सृष्टि के लिए कृपा बन कर आए हों, जब उनके अनुयायियों पर विशेष कृपा बरसाने की बात आई तो इन्हें रमजान करीम का महीना प्रदान कर दिया गया.
इसीलिए यह रहमतों व बरकतों वाला महीना है. अल्लाहतआला इस महीने में अपने बंदों पर विशेष रूप से मेहरबान रहता है. इतना मेहरबान कि एक इबादत का सवाब सत्तर गुना तक बढ़ा देता है. रोजा रखने का आदेश देता है तो इस वादे के साथ कि इस (रोजे) का प्रतिफल मैं खुद दूंगा.
अंदाजा लगाइए कि संसार का पालनहार, सृष्टि का रचयिता खुद जिस इबादत का फल देने का वादा करे, वह इबादत कैसी और उसका प्रतिफल कैसा होगा.
असल में देखा जाए तो यह पूरा महीना एक अत्यंत कृपाशील व दयावान सृष्टिकर्ता यानी अल्लाहतआला, उसके सबसे नेक व समीपस्थ बंदे पैगंबर हजरत मुहम्मद (स.) तथा उनके अनुयायियों पर रहमतों व बरकतों का खजाना लुटाने वाले मामलात से ओतप्रोत है.
यह मालिक की ऐसी मेहरबानी की मिसाल है, जब वह बहुत खुश होकर कहता है कि तुम थोड़ा सा काम कर के दिखाओ और बदले में बड़े-बड़े इनामात पाओ. वैसे भी ‘रमजान’ अरबी के शब्द ‘रम्ज’ से बना है. किताबों में रम्ज के मायने जलना या जमीन की तपिश से पैरों का जलना बताए गए हैं.
यह महीना भी गुनाहों को जला देता है या यह अंतर्मन को तपाने, साधना से जलाने का सबब होता है. विद्वतजन इसकी व्याख्या यूं भी करते हैं कि आग में पाक करने का गुण होता है, सो रमजान में साधना की आग इंसानी बुराइयों, उसके पापों को जला डालती है. जब इंसान के पाप जल कर नष्ट होते हैं तो उसके भीतर मौजूद दया व कृपा का नैसर्गिक जज्बा जोश मारने लगता है. प्राकृतिक रूप से उसके भीतर रखे गए हमदर्दी व इंसानियत के भाव जो जीवन की आपाधापी में सुप्त होने लगते हैं, वे इस आग में तप कर फिर प्रज्ज्वलित होने लगते हैं.
लोगों को इंसानों के साथ हमदर्दी रखने के प्रति प्रेरित करने के लिए तथा रब की रहमतों का गुणगान करने के लिए रमजान को रहमतों और बरकतों का महीना कहा गया है. इसीलिए रोजेदार रब की रहमतों का खजाना लूटने के लिए दिलो-जान से इबादतों में लगे हैं.