ईद-उल-अजहा: समर्पण, त्याग और बलिदान का पर्व, हर आदेश को सिर आंखों पर लेने की

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 7, 2025 05:16 IST2025-06-07T05:16:12+5:302025-06-07T05:16:12+5:30

बड़ी इबादतों, दुआओं के बाद बुढ़ापे में इब्राहीम (अ.) को इस्माईल (अ.) के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. स्वाभाविक ही पुत्र से उन्हें अगाध प्रेम है.

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सांकेतिक फोटो

Highlights रब्बे-आला इम्तिहान चाहते हैं. अपने पैगंबर व प्रिय बंदे की भक्ति को आंकना चाहते हैं. इकलौते सुपुत्र इस्माईल (अ.) को भी इब्राहीम (अ.) की तरह नुबूवत देनी है.सदाचार व आज्ञाकारिता उनकी फितरत (प्रकृति) में रख दिए गए हैं.

जावेद आलम

ईद-उल-अजहा यादगार है समर्पण, त्याग व बलिदान की. यह पराकाष्ठा है अपने पूज्य के हर आदेश को सिर आंखों पर लेने की. ऐसा पूज्य जो सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान है. वह सदियों पहले अपने एक अनन्य भक्त व संदेशवाहक (पैगंबर) हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ख्वाब में संदेश देता है कि वह अपने पुत्र को कुर्बान कर रहे हैं. तब अल्लाह के अनन्य भक्त इब्राहीम (अ.) को अपने जवान बेटे इस्माईल (अ.) का खयाल आता है. बड़ी इबादतों, दुआओं के बाद बुढ़ापे में इब्राहीम (अ.) को इस्माईल (अ.) के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. स्वाभाविक ही पुत्र से उन्हें अगाध प्रेम है.

मगर रब्बे-आला इम्तिहान चाहते हैं. अपने पैगंबर व प्रिय बंदे की भक्ति को आंकना चाहते हैं. तब इब्राहीम (अ.) वह फैसला लेते हैं, जो दुनिया का कोई पिता शायद ही ले सके. ऐसा पिता, जिसे वृद्धावस्था में संतान-सुख मिला हो. विधि ने यह विधान लिख रखा था कि इब्राहीम (अ.) के इस इकलौते सुपुत्र इस्माईल (अ.) को भी इब्राहीम (अ.) की तरह नुबूवत देनी है.

वह भी आगे चल कर अल्लाह के पैगंबर होने वाले हैं. सदाचार व आज्ञाकारिता उनकी फितरत (प्रकृति) में रख दिए गए हैं. इसी संस्कारवान पुत्र से इब्राहीम (अ.) अपने अजीब ख्वाब और मन में चल रही विचारों की आंधियों का जिक्र करते हैं. तब इस्माईल अ. पिताश्री को प्रेरित करते हैं कि सपने में उन्हें जो संदेश बार-बार दिया जा रहा है, उसे वे अपने इकलौते प्रिय पुत्र की बलि देकर साकार कर सकते हैं.

उनके इस जवाब को कुर्आन ने यूं बयान किया हैः अब्बा जान! जो कुछ आपको हुक्म दिया जा रहा है, उसे कर डालिए. इंशा अल्लाह आप मुझे सब्र करने वालों में पाएंगे. हजरत इब्राहीम (अ.) ने अपने एकमात्र पुत्र को धरती पर लिटा कर जब बलि दी तो कुदरत ने पुत्र की जगह एक मेढा रख दिया और आसमान से सदा आई- ऐ इब्राहीम! तूने ख्वाब सच कर दिखाया. हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला देते हैं.

अल्लाह का हुक्म पूरा करने के लिए दी जा रही इसी कुर्बानी, त्याग व समर्पण की यादगार ईद-उल-अजहा है. यह रब्बे-रहीमो-करीम से बे-पनाह मुहब्बत, उसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने की इच्छाशक्ति की यादगार है. यह हमें पूर्णतः समर्पण भी सिखाता है कि अल्लाह तआला से सच्ची मुहब्बत कीजिए, इतनी कि उसकी राह में सब कुछ तज देने का मौका आए तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए. इस तरह कुर्बानी इबादत के साथ सीख भी है कि त्याग व बलिदान करने वाले को हमेशा बुलंदियां मिलती हैं.

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