श्री श्री रवि शंकर
जैसे गाड़ी चलाना सीखने जैसी साधारण चीज के लिए भी एक शिक्षक की आवश्यकता होती है, वैसे ही जब कोई विषय अदृश्य और निराकार हो, तो उस पथ पर चलने के लिए तो निश्चित रूप से एक गुरु चाहिए. गुरु आपको आत्मज्ञान के सही मार्ग पर ले जाते हैं. वे केवल रास्ता नहीं दिखाते, बल्कि आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देते हैं. गुरु कोई दूर की, अमूर्त चीज नहीं हैं - वे महिमावान होते हुए भी सुलभ होते हैं. भारतीय संस्कृति में गुरु को हमेशा अत्यंत सम्मान दिया गया है. प्राचीन काल में गुरु का होना मात्र गर्व की बात ही नहीं थी, बल्कि यह अनिवार्य था. गुरु न होना दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता था.
संस्कृत में ‘अनाथ’ शब्द का अर्थ है - जिसके पास कोई गुरु न हो. गुरु अमूर्त को मूर्त बना देते हैं. गुरु के साथ जीवन में संवेदनशीलता और सूक्ष्मता प्रकट होती है. प्रेम केवल एक भावना नहीं रह जाता, वह आपके अस्तित्व का स्वरूप बन जाता है. सृष्टि के हर रूप में निराकार आत्मा झलकने लगती है और जीवन का रहस्य और भी गहराता है.
एक बार जब आपको गुरु मिल जाएं, तभी जीवन की असली यात्रा शुरू होती है. ध्यान इस यात्रा का पहला कदम है. ध्यान वह अवस्था है जिसमें मन लय हो जाता है और अपने स्रोत में लौट आता है. यह कुछ न करने की कोमल कला है. लेकिन यह ‘कुछ न करना’ कैसे संभव हो? यह चंचल मन कैसे वश में हो? गुरु के मार्गदर्शन के बिना आप ध्यान नहीं कर सकते. वही कृपा किसी भी साधना को सफल बनाती है.
बहुत ही दुर्लभ अपवाद होते हैं- शायद वे, जिन्होंने अपने पूर्व जन्मों में बहुत ध्यान किया हो, वे बचपन से ही बिना गुरु के ध्यान कर सकें. परंतु उन्हें भी यह नहीं सोचना चाहिए कि उन्हें गुरु की आवश्यकता नहीं है. स्वयं भगवान कृष्ण ने सांदीपनि ऋषि से शिक्षा ली थी. राम ने ऋषि वशिष्ठ से ज्ञान प्राप्त किया था. भारत में गुरु-शिष्य परंपरा अद्वितीय है. अगर मानवता को आगे बढ़ना है, तो उसे इस प्राचीन परंपरा को साथ लेकर चलना होगा. मानव जाति सदियों से इससे लाभान्वित होती आई है और आगे भी होती रहेगी.
गुरु की आवश्यकता क्यों है?
अगर आप ज्ञान, विकास, पूर्णता या सम्पूर्ण मुक्ति चाहते हैं तो आपको गुरु की आवश्यकता है. गुरु प्रेम से पूर्ण होते हैं, वे साकार रूप में अनंत प्रेममय होते हैं. दिव्यता, आत्मा और गुरु के बीच कोई भेद नहीं होता. जब आप गुरु के पास आते हैं, तो लगता है जैसे आप उन्हें वर्षों से जानते हैं. एक सम्पूर्ण अपनापन अनुभव होता है. गुरु, ज्ञान और जीवन में कोई अंतर नहीं होता.
एक आत्मज्ञानी गुरु की उपस्थिति में पांच चीजें घटती हैं- 1. ज्ञान खिलता है. 2. दुःख कम हो जाते हैं. 3. बिना किसी कारण के भीतर से आनंद उठता है. 4. अभाव मिटता है और समृद्धि आती है. 5. सभी प्रतिभाएं प्रकट होती हैं.
आप गुरु से जितना जुड़ाव महसूस करते हैं, उतनी ही ये विशेषताएं आपके जीवन में प्रकट होती हैं. जैसे आपको पता होता है कि जब आप घर पहुंचेंगे तो मां ने खाना बनाया होगा, वैसे ही जीवन में गुरु होने से यह आश्वासन मिलता है कि आपकी संपूर्ण देखभाल हो रही है. आप असफलता, सफलता और जीवन की अनिश्चितताओं के भय से मुक्त हो जाते हैं.
तभी आप ज्ञान के प्रथम चरण पर कदम रख सकते हैं. आप अपने ‘स्व’ में स्थिर हो जाते हैं. आपको अपने भीतर ही सच्चा सुख मिलने लगता है. ईश्वर बहुत बुद्धिमान है. उसने संसार के सभी छोटे-छोटे सुख आपको दे दिए हैं, परंतु परम आनंद को अपने पास रखा है. वह परम आनंद पाने के लिए आपको उसके पास ही जाना होगा.