Guru Nanak Jayanti 2025: संसार के महान आध्यात्मिक चिंतक, समाज सुधारक और सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता कालू मेहता तथा माता कृपा जी के घर हुआ था. बचपन में गुरुजी को शिक्षा देने के लिए जब एक पंडितजी को रखा गया तो वह ऐसी बातें करते कि पंडितजी भी कहने लगे इन्हें इतना अधिक आध्यात्मिक ज्ञान है कि हम इन्हें क्या पढ़ाएं! किशोरावस्था से ही गुरु नानक प्रभु प्रेम के ऐसे रसीले गीत गाते थे कि सुनने वाले आनंद विभोर हो जाते.
आंतरिक सत्य से जगमगाती उनकी कोमल कलात्मक तीक्ष्ण बुद्धि झूठ, वहमों, भ्रमों को खंड-खंड कर देती. उनका यह संकल्प था कि संसार के धार्मिक केंद्रों पर जाकर लोगों के मन पर नवीन सिद्धांतों का नूतन प्रकाश डाला जाए. इसलिए गुरुजी ने अपने जीवन में देश-विदेश की अनेक यात्राएं कीं. गुरुजी ने जहां मनुष्यों के दुखों-कष्टों का अनुभव किया, उन्हें दूर करने का प्रयास किया,
वहीं अंधविश्वास और गलत मान्यताओं को दूर करने का भी प्रयत्न किया. वह इन सब का विरोध करते वक्त उनकी व्यर्थता को प्रत्यक्ष प्रमाणित करके लोगों को दिखाते थे जिससे लोगों में जागरूकता आ जाती थी.अपने जीवन में गुरुजी ने अनेक बाणियों का सृजन किया. गुरु ग्रंथ साहिब में गुरुजी की जपुजी साहिब, आसा दी वार, बारह माह आदि बाणियां संग्रहीत हैं.
गुरुजी के उपदेशों, शिक्षाओं का सार उनकी बाणी जपुजी साहिब में दर्शाया गया है – “ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह न किसी से डरता है न किसी से वैर करता है, वह जन्म मरण के चक्र में नहीं आता, उसे पाने के लिए लंबे-चौड़े ज्ञान की जरूरत नहीं है केवल सच्चाई की आवश्यकता है.’’
उनके बताए हुए मार्ग पर चलने में किसी को कोई कठिनाई महसूस नहीं होती थी. गुरुजी परमात्मा द्वारा रचित सृष्टि के सभी मनुष्यों को समान मानते थे. उनके मन में सबके प्रति समान प्रेम, स्नेह, आदर की भावना थी. उन्होंने कहा है- “हे मालिक मेरे, मैं तुझसे यही मांगता हूं कि जो लोग नीच से भी नीच जाति के समझे जाते हैं मैं उनका साथी बनूं.
बड़ा कहलाने वाले लोगों के साथ चलने की मेरी इच्छा नहीं है क्योंकि मैं जानता हूं तेरी कृपा दृष्टि वहां होती है जहां इन गरीबों की संभाल होती है.” गुरु नानक देव जी ने सत्य को ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य माना और जीवन के हर क्षेत्र में एक उस ध्रुव तारे की ओर ही उन्मुख रहे.