Guru Nanak Jayanti 2024: महान आध्यात्मिक चिंतक, समाज सुधारक एवं सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था. बचपन से ही गुरुजी आम बालकों की तरह नहीं थे. वे संतुष्ट और विचारवान प्रकृति के थे. जब वे बच्चों के साथ खेलने जाते तो अपने खिलौने उन्हें दे देते. चलते-फिरते हुए अपने में ही मगन हो जाते. कई बार अपने सहयोगियों के साथ खेलते हुए वह ध्यानमग्न होकर बैठ जाते और प्रभु नाम का उच्चारण करने लगते. अपने मित्रों से भी ऐसा ही करने के लिए कहते.
उन्हें संतों और फकीरों से बहुत प्रेम था, उनके पास बैठने और उनकी बातें सुनने में उन्हें बहुत आनंद आता था. गुरुजी को शिक्षा देने के लिए जब शिक्षक रखा गया तो वे ऐसी बातें करते थे कि शिक्षक भी कहने लगे कि इन्हें इतना अधिक आध्यात्मिक ज्ञान है कि हम क्या पढ़ाएं. अब उनके पिता ने सोचा कि इन्हें किसी काम में लगा देते हैं.
सुल्तानपुर के नवाब दौलत खान के मोदी खाने में प्रबंधक के तौर पर गुरुजी को नौकरी पर लगवा दिया. एक दिन एक साधु उनके पास आटा लेने आया. गुरुजी तराजू पकड़कर आटा तौल रहे थे. जब बारह की गिनती हो गई और तेरह (तेरा )उन्होंने उच्चारण किया तो उनका मन प्रभु सिमरन में लग गया और वह तेरा तेरा अर्थात हे ईश्वर सब कुछ तेरा है करते हुए आटा तोलते ही गए.
साधु बोला तेरा तो कब से हो चुका आप अभी तक आटा डालते ही जा रहे हैं. इस पर गुरुजी बोले, ईश्वर का नाम लेने से बरकत होती है. यह संसार मेरा मेरा करके उजड़ रहा है. अपने जीवन काल के 70 वर्षों में गुरुजी ने एक तिहाई उम्र यात्राओं में ही बिताई थी. उनका उद्देश्य साधु संग और भगवद्भक्ति का प्रचार था.
पहली यात्रा के समय उनके साथ उनके शिष्य मरदाना थे जिनके रबाब की धुन पर गुरुजी की रचनाएं श्रोताओं को मुग्ध कर देती थीं. दूसरी यात्रा में वे दक्षिण की ओर गए. इस बार उनके साथ दो जाट शिष्य सैदो और धेबी थे. तीसरी यात्रा में वे उत्तर की ओर कैलाश और मानसरोवर की ओर गए. साथ में सीहा और नासू नामक शिष्य थे.
इस यात्रा में वे तिब्बत और दक्षिणी चीन भी गए थे. चौथी यात्रा पश्चिम की ओर हुई. उनकी प्रेममय वाणी से सर्वत्र जादू सा असर दिखा. जहां उन्होंने मनुष्य के दुखों-कष्टों का अनुभव किया उन्हें दूर करने का प्रयास किया, वहीं उनके अंधविश्वास और गलत मान्यताओं को दूर करने का प्रयास भी किया.
वे अपने पवित्र आचरण द्वारा विरोधियों को सत्य का साक्षात्कार करा देते थे. पारिवारिक जीवन को विशेष महत्व देते हुए, जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए जिस प्रकार मुक्ति का मार्ग गुरुनानक देव जी ने विश्व को दिखाया है, वह अपने आप में बेजोड़ है.