नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: शांति के पुंज गुरु अर्जुन देव जी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: June 14, 2021 03:19 PM2021-06-14T15:19:05+5:302021-06-14T15:19:05+5:30

गुरु अर्जुन देव ने 1590 में तरनतारन साहिब और 1594 में करतारपुर साहिब नगर बसाए. हरमंदिर साहिब की इमारत जब पूरी हो गई तो 1604 में गुरुग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश यहां किया गया.

Guru Arjan dev Martyrdom day his life and history | नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: शांति के पुंज गुरु अर्जुन देव जी

गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस (फाइल फोटो)

गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी की संसार, समाज तथा साहित्य को महान ऐतिहासिक देन है. ऐसे महान ग्रंथ को स्वरूप प्रदान करने वाले सिखों के पांचवें गुरु गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल सन् 1563 को गुरु रामदासजी के घर हुआ था. 

गुरुजी बचपन से ही बड़े शांत स्वभाव के थे. उन्हें गुरबाणी, कीर्तन का बड़ा शौक था. उनके अंदर के श्रेष्ठ गुणों को उजागर होते देख पिता रामदासजी ने उन्हें गुरु गद्दी केवल 18 वर्ष की आयु में सौंप दी. गुरु गद्दी पर बैठते ही गुरुजी ने यह अनुभव किया कि किसी भी धर्म को जीवित रहने के लिए दो बातें जरूरी हैं- धर्म ग्रंथ और धार्मिक केंद्र.

गुरु पद संभालते ही वे सिख मत की उन्नति में जुट गए. 1589 में उन्होंने अमृत सरोवर के मध्य में हरमंदिर साहिब जैसे अद्वितीय आध्यात्मिक स्थल की स्थापना कराई. 1590 में तरनतारन साहिब और 1594 में करतारपुर साहिब नगर बसाए. जब हरमंदिर साहिब की इमारत पूरी हो गई तो 1604 में गुरुग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश यहां किया गया. 

बाबा बुड्ढा जी को प्रथम ग्रंथी होने का मान प्राप्त हुआ. अमृतसर के अलावा गुरुजी ने तरनतारन, करतारपुर, श्री गोविंदपुरा, रामसर, छिहरटा साहब, गुरु का बाग आदि कई पवित्न स्थानों में अस्पताल बनवाकर सिखों में सेवा की नई भावना उजागर की. स्थान-स्थान पर कुएं, सरोवर बनवाए जिससे पंजाब के किसानों की हालत सुधरने लगी.

गुरु ग्रंथ साहिब की विषय वस्तु समग्र मानवता के लिए है. यह ग्रंथ केवल धार्मिक ज्ञान ही नहीं देता बल्कि उत्तर भारत के पांच सौ साल के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक पहलुओं पर भी रोशनी डालता है. समूचे ग्रंथ साहिब में सत्य की ही व्याख्या है क्योंकि इस महान ग्रंथ का मुख्य विषय ही सत्य है. 

ईश्वर एक है उसने ही सारी सृष्टि की रचना की है. उसकी प्राप्ति के लिए संसार का त्याग करके जंगलों में जाने की जरूरत नहीं. घर में ही रहकर गृहस्थी संभालते हुए कमल पुष्प समान निर्लेप रहने के लिए कहा गया है.
गुरु ग्रंथ साहिब में निराकार परमात्मा की याद भक्ति का प्रचार है. उस वक्त के समाज में मूर्ति पूजा के रिवाज के साथ ही लोगों में धर्म संबंधी कई अंधविश्वास तथा भ्रम थे. 

गुरुजी ने लोगों के मन से इन रूढ़ियों को निकालने के लिए निराकार परमात्मा की भक्ति के लिए इस ग्रंथ की रचना की. इस महान ग्रंथ में 3384 शब्द हैं तथा 15575 बंद हैं. इनमें से 6204 बंद गुरु अर्जुन देव जी के हैं. इस ग्रंथ में गुरु जी ने 15 भक्तों की चुनी हुई वाणी को भी शामिल किया. सुखमनी साहिब गुरु अर्जुन देव जी की बड़ी रचना है.

गुरुजी बहुभाषी विद्वान थे. पंजाबी, अरबी, फारसी, सहसकृति, सधुक्कड़ी आदि सभी भाषाओं का गुरुजी की वाणी में श्रेष्ठ उपयोग हुआ है. इस कारण गुरु जी द्वारा संपादित गुरु ग्रंथ साहिब भी बहुभाषी ग्रंथ है. इसमें भिन्न-भिन्न क्षेत्नों, कालों एवं भाषाओं के भक्त जनों की वाणी का संग्रह दर्शाता है कि गुरुजी मानवी समानता और विश्व बंधुत्व को कितना महत्व देते थे.

गुरुजी के उपदेश, शांत, विनम्र व्यवहार, वचनों से प्रभावित होकर अनेक हिंदू व मुस्लिम उनके शिष्य बनने लगे. इससे तत्कालीन बादशाह जहांगीर बहुत क्रोधित हुआ. उसके दरबारियों ने भी गुरुजी के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाने शुरू कर दिए कि गुरु ग्रंथ साहिब में मुस्लिमों के खिलाफ लिखा गया है. 

गुरुजी की बढ़ती साख जहांगीर से सहन नहीं हुई. उसने उन्हें गिरफ्तार कर आदेश दिया कि या तो इस्लाम धर्म स्वीकार करो या इन्हें खत्म कर दिया जाए. गुरुजी ने इस्लाम स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया. 

इस पर उन्हें अनेक तरह की यातनाएं दी गईं तथा 30 मई 1606 को वे धर्म की रक्षा की खातिर शहीद हो गए. जीवन के अंतिम क्षण तक यातनाएं सहते हुए भी वे शांतचित्त, प्रभु स्मरण में लीन रहे इसलिए उन्हें शांतिपुंज कहा जाता है.

Web Title: Guru Arjan dev Martyrdom day his life and history

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