गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः तुलसी का लोक और लोक के तुलसी
By गिरीश्वर मिश्र | Published: August 7, 2019 06:49 AM2019-08-07T06:49:17+5:302019-08-07T06:49:17+5:30
वैष्णव संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास ने साधारण और सहज लोक के धरातल पर लोक-भाषा में राम-कथा की जो अवधारणा की, वह स्वयं में अनेक दृष्टियों से भारतीय समाज और साहित्य दोनों के इतिहास में उत्कृष्ट और अद्भुत रचनाशीलता का प्रतिमान सिद्ध हुई
वैष्णव संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास ने साधारण और सहज लोक के धरातल पर लोक-भाषा में राम-कथा की जो अवधारणा की, वह स्वयं में अनेक दृष्टियों से भारतीय समाज और साहित्य दोनों के इतिहास में उत्कृष्ट और अद्भुत रचनाशीलता का प्रतिमान सिद्ध हुई. वह समय मुगल शासक अकबर का था. तुलसीदासजी ने जिस तरह से कलिकाल और दुर्भिक्ष का वर्णन किया है वह एक चुनौती भरे समय की याद दिलाता है. उस अवधि में राम कथा ने जनजीवन को एक बड़ा आधार प्रदान किया था.
‘रामचरित मानस’ साहित्य-निकषों पर खरी उतरती एक उत्कृष्ट काव्य रचना मात्न नहीं है, वह जन-जन में इतनी रच बस गई है कि भारत की सामाजिक स्मृति का हिस्सा बन चुकी है. एक विश्वकोश जैसी यह कृति आम आदमी के लिए संदर्भ ग्रंथ जैसी है. समाज के हर तबके के लोग, यहां तक कि अनपढ़ भी इसे गुनगुनाते मिलते हैं और जिंदगी के हर कदम, हर मोड़ पर, हर परिस्थिति को समझने और व्याख्या करने के लिए रामायण के दोहे और प्रसंग बरबस जुबान पर आ जाते हैं.
तुलसीदासजी संस्कृत के जानकार थे, पर बड़े साहस से उनके अंदर के रचनाकार ने पांडित्य हेतु स्वीकृत संस्कृत का अभिजात मार्ग छोड़ कर अवधी भाषा को अपनी साहित्य रचना का माध्यम चुना. यह निर्णय आंतरिक साहस और लोक की चिंता का ही परिणाम था. राम का यह आख्यान तुलसीदासजी को पुराण, निगम और आगम जैसे शास्त्न के साथ-साथ लोक की परंपराओं से प्राप्त हुआ था. लोक मंगल तुलसीदासजी की साधना का पर्याय बन गया.
गिरने और उठने की प्रक्रि या से हर किसी का साबका पड़ता है, यहां तक कि अवतार लिए राम को भी इससे छूट नहीं है. उनका पूरा जीवन संघर्षो से भरा हुआ था. सांसारिक जीवन की उठापटक के बीच हर एक को भोग भोगना पड़ता है. मर्यादाओं की स्थापना का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तुलसीदासजी ने राम राज्य की अवधारणा भी प्रस्तुत की : ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहीं काहुहि व्यापा. सब नर करहिं पस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती’. सुशासन के लक्ष्यों को रेखांकित करती यह परिभाषा सामाजिक कल्याण के वर्तमान सरोकारों के लिए भी प्रासंगिक है.