गणेश चतुर्थी 2018: गणपति का स्वागत नैसर्गिक ढंग से करें

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 12, 2018 08:25 AM2018-09-12T08:25:32+5:302018-09-12T08:25:32+5:30

बीते कुछ वर्षों में भारतीय अध्यात्म को बाजारवाद की ऐसी नजर लगी कि अब पर्व पर्यावरण पूरक नहीं रह पा रहे हैं।

ganesh chaturthi 2018: celebrate ganesh chaturthi with eco-friendly way | गणेश चतुर्थी 2018: गणपति का स्वागत नैसर्गिक ढंग से करें

गणेश चतुर्थी 2018: गणपति का स्वागत नैसर्गिक ढंग से करें

लेखक- पंकज चतुर्वेदी

बरसात हुई और सारी प्रकृति नहा-धो कर तैयार हो गई, समृद्धि, सुख और आस्था के श्रम और प्रतिउत्तर के फल में। पहाड़ों से निकली लहलहाती नदियों के साथ ढेर सारी बारीक मिट्टी तटों पर जमा हो गई। इसी रज-कण में भारतीय कृषक समाज का जीविकोपार्जन और अस्तित्व बसा है सो वे मिट्टी को घर ले गए, सिद्धिविनायक की प्रतिमा बनाई, पूजा और उसको उसी जलस्नेत में ऐसी सामग्री के साथ विसर्जित कर दिया, जिससे उस जल-निधि में पलने वाले जीवों का पेट भर सके।

भारत में पर्व केवल सामाजिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि वे प्रकृति के संरक्षण का संकल्प और कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर होते हैं। भारत के सभी त्यौहार सूर्य-चंद्रमा-धरती-जल संसाधनों-पशु-पक्षी आदि की आराधना पर केंद्रित हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षो में भारतीय अध्यात्म को बाजारवाद की ऐसी नजर लगी कि अब पर्व पर्यावरण पूरक नहीं रह पा रहे हैं।

हर साल सितंबर महीने के साथ ही बारिश के बादल अपने घरों को लौटने को तैयार हो जाते हैं। सुबह सूरज कुछ देर से दिखता है और जल्दी अंधेरा छाने लगता है। असल में मौसम का यह बदलता मिजाज उमंगों, खुशहाली के स्वागत की तैयारी होता है। प्रत्येक शुभ कार्य के पहले गजानन गणपति की आराधना अनिवार्य है और इसीलिए उत्सवों का प्रारंभ गणोश चतुर्थी से ही होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में अगस्त- 2016 में अपील कर चुके हैं कि देव प्रतिमाएं प्लास्टर आफ पेरिस यानी पीओपी की नहीं बनाएं, मिट्टी की ही बनाएं। लेकिन देश के दूरस्थ अंचलों की छोड़ दें, राजधानी दिल्ली में ही अक्षरधाम के करीब मुख्य एनएच-24 हो या साहिबाबाद में जीटी रोड पर थाने के सामने; धड़ल्ले से पीओपी की प्रतिमाएं बिकती हैं। ऐसा ही दृश्य देश के हर बड़े-छोटे कस्बों में देखा जा सकता है।

गत एक दशक के दौरान विभिन्न गैरसरकारी संस्थाओं, राज्यों के प्रदूषण बोर्ड आदि ने गंगा, यमुना, सुवर्णरेखा, गोमती, चंबल जैसी नदियों की जल गुणवत्ता का, गणपति या देवी प्रतिमा विसर्जन से पूर्व व पश्चात अध्ययन किया और पाया कि आस्था का यह ज्वार नदियों के जीवन के लिए खतरा बना हुआ है। जब नदियां नहीं रहेंगी तो धरती पर इंसान भी नहीं जी पाएगा।

प्रत्येक त्योहर की मूल आत्मा को समझना होगा। प्रतिमाओं को बनाने में पर्यावरण मित्र सामग्री का इस्तेमाल करने  जैसे प्रयोग किए जा सकते हैं। पूजा सामग्री में प्लास्टिक या पॉलीथिन का प्रयोग वर्जित करना, फूल-ज्वारे आदि को स्थानीय बगीचे में जमीन में दबा कर उसका कंपोस्ट बनाना, चढ़ावे के फल, अन्य सामग्री को जरूरतमंदों को बांटना, बिजली की जगह मिट्टी के दीयों का प्रयोग ज्यादा करना, तेज ध्वनि बजाने से बचना जैसे साधारण से प्रयोग हैं; जो प्रदूषण व उससे उपजने वाली बीमारियों पर काफी हद तक रोक लगा सकते हैं। पर्व आपसी सौहार्द बढ़ाने, स्नेह व उमंग का संचार करने के और बदलते मौसम में स्फूर्ति के संचार के वाहक होते हैं। इन्हें मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने की जिम्मेदारी भी समाज की है।

Web Title: ganesh chaturthi 2018: celebrate ganesh chaturthi with eco-friendly way

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