ब्लॉग: क्यों भगवान बुद्ध के उपदेश आज भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं और क्या है ‘बोधिसत्व’?

By गिरीश्वर मिश्र | Published: May 5, 2023 11:33 AM2023-05-05T11:33:04+5:302023-05-05T11:39:02+5:30

महात्मा बुद्ध का जीवन-दर्शन आज के दौर में भी निश्चित रूप से प्रासंगिक है. उन्होंने संतोष को सर्वाधिक महत्व दिया और इच्छा, मोह, राग और द्वेष को सबसे बड़े दोषों में से एक बताया.

Buddha Purnima 2023: Why Teachings of Lord Buddha completely relevant even today and what is a 'Bodhisattva' | ब्लॉग: क्यों भगवान बुद्ध के उपदेश आज भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं और क्या है ‘बोधिसत्व’?

आज भी प्रासंगिक हैं भगवान बुद्ध के उपदेश

ईसा पूर्व पांचवीं सदी में जन्मे महात्मा बुद्ध अपने समय में प्रचलित धर्म-कर्म, विश्वास और जीवन पद्धति की विसंगतियों से क्षुब्ध थे. इतिहास में यह वह काल था जब कृषि की समृद्धि से नगर जन्म ले रहे थे और व्यापार के माध्यम से भारत से बाहर की संस्कृति की जानकारी भी मिल रही थी. बाह्य संपर्क से यह भी पता चल रहा था कि जातिविहीन समाज भी होते हैं और संस्कृत के अतिरिक्त और भी भाषाएं बोली जाती हैं. बढ़ती सामाजिक गतिशीलता के आलोक में नए किस्म के धर्म की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी.  

महात्मा बुद्ध का जीवन-दर्शन आज भी प्रासंगिक है. वे कहते हैं कि पृथ्वी पर सभी प्राणियों का जीवन नश्वर है परंतु अक्सर लोग यह बड़ा तथ्य भूल जाते हैं. जो यह जानता है कि इस दुनिया से विदाई अनिवार्य है उसके मन में दूसरों के प्रति कटुता दूर हो जाती है, आसक्ति जैसी अग्नि नहीं रहती और द्वेष जैसा मल भी नहीं एकत्र होता है. इसी तरह यदि जीवन में अपरिग्रह (यानी जरूरत से ज्यादा संग्रह न करना) आ जाए तो लोग सुखी जीवन बिता सकेंगे.  

मनुष्य जीवन में आरोग्य या स्वास्थ्य आज सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है. इस संदर्भ में जीवनचर्या पर महात्मा बुद्ध के विचार ध्यान देने योग्य हैं. वे संतोष को सर्वाधिक महत्व का बताते हैं और इच्छा, मोह, राग और द्वेष की सबसे बड़े दोषों के रूप में पहचान की  है. वे कहते हैं कि मनुष्य को शीलवान, उद्यमशील और प्रज्ञावान हो कर जीना चाहिए. वे सत्य को सबसे पहला धर्म कहते हैं. 

महात्मा बुद्ध के शब्दों में मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है उसे आप ही अपने को प्रेरित करना चाहिए. वह स्वयं अपनी चौकीदारी करे. वह स्वयं ही अपनी गति है. इसके लिए अपने को संयम की शिक्षा देनी होगी. अपने आपको जीतने वाला आत्म-जयी सबसे बड़ा विजेता होता है. जिसका चित्त स्थिर नहीं, जो सद्धर्म को नहीं जानता और जिसकी श्रद्धा डावांडोल है, उसकी प्रज्ञा परिपूर्ण नहीं हो सकती. योग से प्रज्ञा की वृद्धि होती है. जिसे प्रज्ञा नहीं होती उसे ध्यान नहीं होता. जिसे ध्यान नहीं होता उसे प्रज्ञा नहीं होती.

बौद्ध चिंतन में व्यक्ति के उत्कृष्ट रूप को ‘बोधिसत्व’ कहा गया है. बोधिसत्व वह व्यक्ति होता है जो अपने लिए नहीं बल्कि प्राणिमात्र को कल्याण के मार्ग पर लाना चाहता है. वह अपने दु:खों से ही नहीं पार पाना चाहता बल्कि सबके दुःख की निवृत्ति उसका लक्ष्य होता है. उसका ज्ञान उसे संसार से विरत नहीं करता. वह सामने की कठिनाइयों और संघर्षों से मुठभेड़ कर उन पर विजय हेतु अग्रसर होता है. बोधिसत्व लोकोपकार में तत्पर रहता है. सब जीवों के कल्याण के लिए त्याग ही उसका अभीष्ट होता है. 

Web Title: Buddha Purnima 2023: Why Teachings of Lord Buddha completely relevant even today and what is a 'Bodhisattva'

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