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BLOG: जिनका राजधर्म अटल था!

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 17, 2018 07:31 IST

 अटल बिहारी वाजपेयी अब नहीं हैं. भारतीय लोकतंत्न में गैर-कांग्रेसवाद का सबसे मुखर स्वर. सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक.

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(लेखक-राजेश बादल)

 अटल बिहारी वाजपेयी अब नहीं हैं. भारतीय लोकतंत्न में गैर-कांग्रेसवाद का सबसे मुखर स्वर. सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक. अटलजी सशरीर भले ही नहीं हैं लेकिन एक दयालु, सद्भाव-शांति के पुजारी और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर उनका व्यक्तित्व हमेशा हमारे बीच रहेगा. वे युगपुरुष थे और युगपुरुष नहीं मरा करते.

सवाल यह है कि अटलजी का कौन सा रूप याद रखा जाए? एक स्वतंत्नता सेनानी या साहित्यकार, पत्नकार या एक विलक्षण राजनेता, एक महान देशभक्त या राष्ट्रभाषा हिंदी का सेवक, सबको साथ लेकर चलने वाला प्रधानमंत्नी या कठिन से कठिन क्षणों में अपना राजधर्म न छोड़ने वाला संकल्पशील महापुरुष, एक ईमानदार भारतीय या फिर इन सबसे ऊपर एक सच्चा इनसान. एक व्यक्ति में इतने सारे रूपों का समावेश आज के विश्व में दुर्लभ संयोग है. लंबे समय तक इस शून्य को भरना नामुमकिन सा है.

भारतीय संसद में जब उन्होंने अपनी पारी एक नौजवान, तनिक शर्मीले राजनेता के तौर पर प्रारंभ की तो एकदम से किसी ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन जब उन्होंने एक दिन पंडित नेहरू की मौजूदगी में सरकार की विदेश नीति पर अपने यक्ष प्रश्न उठाए तो नेहरूजी भी तारीफ किए बिना नहीं रह सके. क्या संयोग है कि जब 1977 में वे विदेश मंत्नी बने तो उन्होंने पाया कि उनके दफ्तर से नेहरूजी की तस्वीर हटा दी गई है. उन्होंने बेहद गुस्सा दिखाया और पूरे सम्मान के साथ नेहरूजी की तस्वीर लगवाई. यही नहीं, उन्होंने नेहरू युग की विदेश नीति को ही स्वीकार किया. विदेश मंत्नी के रूप में उनकी पारी  भारतीय हितों के अनुरूप काम करने के लिए याद की जाएगी. 

उन्होंने पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाया. लाहौर तक बस लेकर गए और सद्भावना यात्नी के रूप में भाईचारे का संदेश छोड़ कर आए. मगर जब पाकिस्तान ने इस भरोसे पर पीठ में छुरा घोंपा और कारगिल युद्ध छेड़ा तो वाजपेयीजी ने सबक भी सिखाया. यही नहीं, पोखरण में जिस परमाणु परीक्षण की शुरु आत इंदिरा गांधी ने की थी, उसे अटलजी ने और ताकतवर शक्ल में तब्दील किया. आर्थिक प्रतिबंधों की भी परवाह नहीं की. उदार, दयालु और कवि हृदय प्रधानमंत्नी का यह साहसिक रूप देखकर लोगों ने लाल बहादुर शास्त्नी को याद किया.  

और अब बात 1991 के चुनाव की. प्रचार पूरे रफ्तार पर था. इसी बीच राजीव गांधी की हत्या हो गई. अटलजी बेहद सदमे में थे. जब राजीव प्रधानमंत्नी थे तो उन्हीं दिनों अटलजी को कुछ गंभीर बीमारी हुई. ऑपरेशन अमेरिका में होना था. आर्थिक संकट था. एक दिन राजीव गांधी अटलजी के पास आए. बोले, एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका जा रहा है. आप उसके मुखिया हैं. इसके बाद राजीव गांधी ने अमेरिका में उनके पूरे इलाज की व्यवस्था की. ऑपरेशन के बाद पांच बार उन्हें अमेरिका जाना पड़ा. राजीव गांधी ने सारे प्रबंध किए और किसी को पता न चला. अटलजी ने खुद इसका खुलासा किया. वह भी चुनाव के दिनों में. अटलजी ने कहा, राजीव एक बेहतरीन इंसान थे. क्या आज आप राजनीति के इस रूप की कल्पना भी कर सकते हैं?

टॅग्स :अटल बिहारी वाजपेयी
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