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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: मध्य प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 7, 2020 07:48 IST

मध्य प्रदेश की राजनीति इतनी विचित्न हो गई है कि इसमें न तो कांग्रेस का नेतृत्व एकजुट है और न ही भाजपा का. दोनों पार्टियों में तीन-चार नेता हैं, जो अपने-अपने गुट को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.

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मध्य प्रदेश में सरकार बने सवा साल ही हुआ है लेकिन उसकी अस्थिरता की चर्चा जोरों से चल पड़ी है. कांग्रेस और भाजपा दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं मध्य प्रदेश में, लेकिन दोनों को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस को सीटें ज्यादा मिल गईं लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा को वोट ज्यादा मिले.

कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं और भाजपा को 107. जो छोटी-मोटी पार्टियां हैं, उनके तीन और चार निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कांग्रेस ने भोपाल में अपनी सरकार बना ली.

विधानसभा में कुल 230 सदस्य हैं. दो सीटें अभी खाली हैं यानी 228 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का शासन चल रहा था.

मुख्यमंत्नी कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं, जो भाजपा की सरकार उठाती लेकिन वे सात गैर-कांग्रेसी सदस्य हिलने-डुलने लगे हैं.

एक कांग्रेसी विधायक ने विधानसभा से ही इस्तीफा दे दिया है. भोपाल में इतनी भगदड़ मच गई है कि सभी पार्टियों के नेताओं ने अपने सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं. कुछ सरकार गिराने में व्यस्त हैं और कुछ सरकार बचाने में! कुछ विधायकों को गुड़गांव और कुछ को बेंगलुरु में घेरा गया है.

मध्य प्रदेश की राजनीति इतनी विचित्न हो गई है कि इसमें न तो कांग्रेस का नेतृत्व एकजुट है और न ही भाजपा का. दोनों पार्टियों में तीन-चार नेता हैं, जो अपने-अपने गुट को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.

इस गुटीय राजनीति ने दोनों पार्टियों को इस भरोसे में रख रखा है कि हमारे विरोधी आपस में बंटे हुए हैं, इसलिए सरकार गिरेगी और नहीं भी गिरेगी. यहां विचारधारा, पार्टी-आस्था, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, परंपरा आदि सब गौण हो गए हैं. जो राजनीति का ब्रह्म-सत्य है यानी सत्ता और पत्ता, अब उसका निर्लज्ज प्रदर्शन हो रहा है.

सत्ता प्राप्त करने के लिए या उसमें बने रहने के लिए कोई भी नेता कोई भी कदम उठा सकता है. वह कितने पत्ते कैसे चलेगा, कुछ पता नहीं. सत्ता के अलावा सब मिथ्या है. इसलिए अब मध्य प्रदेश में कुछ भी हो सकता है. यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरती है तो अन्य प्रदेशों में भी कांग्रेस को सतर्क रहना पड़ेगा.

टॅग्स :मध्य प्रदेशकमलनाथकांग्रेसभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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