जब जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 26, 2018 20:13 IST2018-07-26T20:13:05+5:302018-07-26T20:13:05+5:30

जवाहरलाल नेहरू की तरह ही इंदिरा गांधी भी लोकप्रिय नेता थीं। इंदिरा के खिलाफ पंद्रह बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए।

Maintain the dignity of Parliament with meaningful debate | जब जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव

जब जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव

विश्वनाथ सचदेव

लोक सभा में भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा रखा गया अविश्वास-खारिज होना ही था। यह तथ्य सब जानते हैं कि वर्तमान सरकार के पास प्रचंड बहुमत  है, इसलिए हैरानी तो तब होती जब परिणाम वह न होता जो हुआ है। इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सबकुछ जानते-बूझते विपक्ष ने अपनी किरकिरी क्यों कराई। इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर यह है कि जनतांत्रिक व्यवस्था में अविश्वास प्रस्ताव हमेशा सरकार गिराने के लिए ही नहीं रखे जाते। सच तो यह है कि भारत ही नहीं, दुनिया भर के जनतांत्रिक देशों में अक्सर अविश्वास प्रस्ताव किसी मुद्दे पर सरकार को आईना दिखाने के लिए रखे जाते हैं। विपक्ष की कोशिश रहती है कि वह इस माध्यम से सरकार की कमियों-खामियों को उजागर कर देश की जनता (पढ़िए मतदाता) को अपने अनुकूल राय बनाने के लिए प्रेरित कर सके।

स्वतंत्न भारत में अविश्वास प्रस्तावों का इतिहास साक्षी है कि एक बार को छोड़कर कभी भी अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने से कोई सरकार नहीं गिरी। और इतिहास इस बात का भी साक्षी है कि विपक्ष द्वारा लगभग हर सरकार को इस माध्यम से घेरने की कोशिश की गई है। भारतीय संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव वर्ष 1963 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ रखा गया था। तब संसद में कांग्रेस का पूर्ण बहुमत था और 1962 की चीन से मिली हार के बावजूद नेहरू की लोकप्रियता ज्यादा कम नहीं हुई थी। फिर भी, कभी नेहरू के सहयोगी रहे कृपलानी  ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव रखा और नेहरू सरकार की खूब आलोचना हुई। परिणाम तो जो निकलना था, वही निकला, पर सरकार को बेनकाब करने का विपक्ष को एक ठोस अवसर अवश्य मिल गया। नेहरू की तरह ही इंदिरा गांधी भी लोकप्रिय नेता थीं। वस्तुत: उनका कार्यकाल तो नेहरू से भी अधिक रहा। लेकिन उनके खिलाफ पंद्रह बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए। सब जानते थे कि अविश्वास प्रस्ताव विफल होंगे। वैसा ही हुआ भी। पर हर बार विपक्ष सरकार की कमियों-खामियों को उजागर करने में सफल हुआ था। यही उसे अपेक्षित भी था। लालबहादुर शास्त्नी को भी अपने छोटे-से कार्यकाल में तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। नरसिंह राव ने दो बार और राजीव गांधी ने एक बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया। अविश्वास प्रस्ताव मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ भी रखा गया था। लेकिन ऐसे प्रस्ताव से हारी सिर्फ वाजपेयीजी की एनडीए सरकार थी, केवल एक वोट से। 

यह इतिहास यही बताता है कि अविश्वास प्रस्ताव को जनतंत्न में विपक्ष सरकार के खिलाफ एक अवसर, एक हथियार की तरह काम में लेता है। यह उसका अधिकार भी है- और कर्तव्य भी। इसीलिए इस बार जब प्रचंड बहुमत वाली एनडीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा गया तो इस आधार पर इसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए कि विपक्ष सरकार को नाहक ही परेशान कर रहा है। और इस बात को भी स्वीकार करना चाहिए कि सरकार की कमियों को उजागर करने का विपक्ष ने अच्छा-खासा प्रयास किया। हालांकि अविश्वास का जो प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकृत किया गया, वह कांग्रेस का नहीं, तेलुगू देशम पार्टी वाला प्रस्ताव था, लेकिन लगभग सारी चर्चा कांग्रेस द्वारा उठाए मुद्दों पर ही होती रही। लगभग बारह घंटे की इस  बहस में सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी रही, पर मुख्य भाषण दो ही थे एक कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का और दूसरा प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी का। चर्चा भी इन्हीं भाषणों की हो रही है। लेकिन यह विडंबना ही है कि चर्चा इस बात की नहीं है कि उन्होंने अपने भाषणों में क्या कहा, बल्कि चर्चा इसकी है कि उन्होंने किया क्या? 

पहले जो कहा गया उसकी बात होनी चाहिए। यह एक हकीकत है कि इन दोनों ही भाषणों में शायद ही कुछ नया कहा गया था। दोनों नेताओं ने जो कुछ कहा, वह वे पहले भी कहते रहे हैं। राहुल गांधी लगभग चालीस मिनट बोले। अप्रत्याशित रूप से उनके तेवर तीखे थे। एक आत्म-विश्वास भी था उनके बोलने में। पर ऐसा कुछ नहीं था कि भूकंप आ गया। फिर भी देश में फैल रहे असहिष्णुता के वातावरण और फ्रांस के साथ हुए रक्षा-विमानों की खरीद के समझौते पर उन्होंने जोरदार हमला किया। दूसरी तरफ, प्रधानमंत्नी ने भी वही सब कहा जो वे कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार के बारे में अक्सर कहते रहते हैं। आश्चर्य है कि उन्होंने भी आंध्र प्रदेश के बारे में उठे सवालों का समुचित जवाब देने की आवश्यकता नहीं समझी। मुद्दों के संदर्भ में सरकार कुल मिलाकर रक्षात्मक मुद्रा में ही रही।

इसलिए, जो कहा गया के बजाय जो किया गया, वह ज्यादा चर्चा में है। पहली बात जो हुई वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की झप्पी  लेना था। अपने भाषण के अंत में राहुल गांधी ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही थी वे कटुता की नहीं, प्यार की राजनीति करना चाहते हैं। इस बात को यदि वे कुछ और स्पष्ट करते, कुछ विस्तार से बताते तो निश्चित रूप से इसका अधिक प्रभाव पड़ता। सचमुच, देश को पारस्परिक सौहाद्र्र और संवाद की राजनीति की आवश्यकता है। हमारे नेताओं को यह बात समझनी होगी कि राजनीतिक मतभेद का मतलब वैयक्तिक दुश्मनी नहीं होता। यही बात राहुल गांधी कह रहे थे। स्वागत होना चाहिए उनकी इस बात का। लेकिन इसके बाद उन्होंने जो किया, वह कुल मिलाकर एक मजाक बन कर रह गया। वे अपनी जगह से चलकर प्रधानमंत्नी की कुर्सी तक पहुंचे और उन्हें गले लगाने की कोशिश की। वैसे हमारे प्रधानमंत्नी को गले मिलना बहुत पसंद है, पर पता नहीं क्यों, इस गले मिलने को उन्होंने गले पड़ना ही समझा। वे चाहते तो इसे सहजता से ले सकते थे, इसे अनदेखा भी कर सकते थे। पर, शायद उन्हें लगा, गले मिलने वाला यह दांव राहुल गांधी के पक्ष में जा सकता है। उन्होंने अपने भाषण में जमकर इसका मजाक उड़ाया। यहीं वे चूक गए। जिस तरह मजाकिया अंदाज में उन्होंने इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, उसमें थोड़ा हल्कापन नजर आया। उस गरिमा का अभाव कहीं खटक रहा था, जिसके लिए जवाहरलाल नेहरू या अटलिबहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को याद किया जाता है।  

बहरहाल, बेहतर होता यदि अविश्वास प्रस्ताव जैसे महत्वपूर्ण जनतांत्रिक हथियार का उपयोग दोनों पक्ष अधिक गंभीरता और अधिक गरिमापूर्ण ढंग से करते। संसद के दोनों सदनों में होनेवाली बहस को देश की जनता बड़ी उत्सुकता और उम्मीद के साथ सुनती है। दुर्भाग्य से, हमने संसद के कई सत्न शोर-शराबे से धुलते देखे हैं। बेहतर होगा, यदि हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के प्रति जागरूक रहें। जन-हित के मुद्दों पर सार्थक बहस संसद की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए, इस अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस के गंभीर मुद्दों को रेखांकित किया जाना जरूरी है। सरकार को विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का ईमानदारी से जवाब देना होगा।

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों के लिए यहाँ क्लिक करे. यूट्यूब चैनल यहाँ सब्सक्राइब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट!

Web Title: Maintain the dignity of Parliament with meaningful debate

राजनीति से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे