चुनावी विश्लेषण-4: मध्य प्रदेश में जीत और हार के टर्निंग प्वाइंट्स, कांग्रेस पार्टी ने कहां मारी बाजी?

By बद्री नाथ | Published: January 3, 2019 07:28 AM2019-01-03T07:28:50+5:302019-01-03T07:28:50+5:30

विधानसभा चुनाव विश्लेषण 2018: कैसे लड़ा गया चुनाव, कैसे रहे नतीजे, कैसी हो रही हैं चर्चाएं, आगे आम चुनावों में क्या होंगी राजनीतिक संभावनाएं?

Election Analysis 4: Turning points of victory and defeat in the state of Madhya Pradesh, What did the Congress Party? | चुनावी विश्लेषण-4: मध्य प्रदेश में जीत और हार के टर्निंग प्वाइंट्स, कांग्रेस पार्टी ने कहां मारी बाजी?

चुनावी विश्लेषण-4: मध्य प्रदेश में जीत और हार के टर्निंग प्वाइंट्स, कांग्रेस पार्टी ने कहां मारी बाजी?

4 सालों तक अरुण यादव कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे पर कांग्रेस के पास न पैसा था न वर्क फ़ोर्स न ही अरुण इतने लोकप्रिय थे। कुल मिलकर कांग्रेस का बुरा हाल हो रखा था। ऊपर से मध्य प्रदेश में ग्वालियर और राघवगढ़ के राजघरानों में 36 के आंकड़े भी जगजाहिर हैं। जहाँ राघवगढ़ के महाराज दिग्विजय सिंह की पकड़ कांग्रेस हाई कमांड (सोनिया) और जमीनी नेताओं के बीच अच्छी है वहीं ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गाँधी के चहेते हैं इनका आकर्षण युवा वर्ग में काफी अच्छा है। इन दो किरदारों का कांग्रेस इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी। अंततः कांग्रेस नें दिग्विजय को नर्मदा यात्रा पर उतारा (हालाँकि पार्टी और खुद दिग्विजय सिंह इसे पार्टी प्रेरित नहीं वरन दिग्विजय सिंह की व्यक्तिगत यात्रा बताया गया) दिग्विजय सिंह अपनी पत्नी और राज्य सभा की पूर्व एंकर व हिन्द स्वराज की वर्तमान एंकर अमृता सिंह के साथ पदयात्रा की और वर्तमान सरकार के खिलाफ जमीनी माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई। मीडिया ने भी इस एपिसोड को खूब स्पेस दिया वहीं दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य के माध्यम से कांग्रेस ने सड़क की लड़ाई लड़नी शुरू की। 

चुनाव से ठीक एक साल पहले पैसे की कमी से जूझ रही कांग्रेस के लिए पूंजीपति और छिंदवाडा से 9 बार के सांसद कमलनाथ को कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौपी। इस फैसले से दोनों महाराजों को कोई दिक्कत नहीं थी ऐसा इसलिए कि दिग्विजय सिंह को सी एम बनाने में कमलनाथ ने अहम योगदान दिया था और ज्योतिरादित्य को मैनेज करने के लिए पार्टी ने उन्हें चुनाव प्रचार समीति के अध्यक्ष पद से नवाजा। ज्योतिरादित्य यूपी के संजय सिंह जैसी भूमिका में नहीं रहे थे जिम्मेदारी मिलने के बाद दिन रात एक करके मध्य प्रदेश के कोने कोने में जा-जाकर पार्टी से लोगों को जोड़ना शुरू किया सभाओं के माध्यम से बीजेपी को घेरना भी जारी रखा अब कांग्रेस पूरी तरह से सक्रिय हो चुकी थी। कुल मिलकर दिल्ली के दोनों नेता प्रदेश में ज्यादेतर समय बिताने लगे। दिग्विजय और ज्योतिरादित्य को प्रदेश अध्यक्ष न बनाकर जहाँ आतंरिक गुटबाजी से बची वहीं दिग्विजय व ज्योतिरादित्य की लोकप्रियता का पूरा लाभ उठाया गया। ज्योतिरादित्य के प्रचार टीम का अध्यक्ष बनाना तो सोने पर सुहागा साबित हुआ इनकी सभाओं में भीड़ तो बिन बुलाये आया करती थी माहौल काफी कुछ कांग्रेस के पक्ष में आ गया। 

कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत का दिन मंदसौर गोली कांड की बरसी को रखा था इस सभा को राष्ट्रीय मीडिया ने भी काफी स्पेस दिया था। कांग्रेस भले ही मंदसौर में हार गई है लेकिन इस रणनीति को अपनाकर कांग्रेस अपनी पार्टी को किसान हितैशी और बीजेपी को किसान विरोधी साबित करने में कामयाब रही थी। अंत में घोषणा पत्र में कर्जमाफी और हर जिले में गौशाला खोलने का वादा बीजेपी के भावान्तर योजना पर भारी पड़ गया और कांग्रेस घोषणा पत्र में आर एस एस की शाखाओं को मध्य प्रदेश में निष्क्रिय करने का वादा और  चुनाव के अंतिम दिनों में कमलनाथ के द्वारा की गयी मुस्लिम समुदाय के साथ क्लोज डोर मीटिंग में 90 % वोट देनें के आह्वान ने 15 % मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफलता हासिल कर ली। बीजेपी ने अपनी कूटनीति के माध्यम से दिग्विजय सिंह को घेरने की भी कोशिश की थी। एक वाक्या कुछ यूँ था कि बीजेपी जैसा हमेशा कांग्रेस को मुस्लिमवादी और देशविरोधी पार्टी बताकर एक नहीं 17 चुनावों में हरा चुकी थी इन हारों में कई बार दिग्विजय सिंह के बयानों ने भी अहम् भूमिका अदा की थी पर  इस बार दिग्विजय सिंह अपने आप को चुप रखा था किसी भी बातों को मीडिया के समक्ष रखने से पूरा परहेज किया तो बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा इन्हें एक सभा के दौरान आतंकवादी और देश द्रोही बता दिया गया तो दिग्विजय सिंह ने इस मुद्दे पर बीजेपी के झूठे प्रचार को उजागर करने के लिए मीडिया के माध्यम से अपनी गिरफ़्तारी देने पुलिस थाने गए इस पर थाने पर इनकी गिरफ्तारी नहीं ली गई और मीडिया के सामने आकर पुलिस अधिकारी द्वारा यह बताया गया कि इनके खिलाफ ऐसा कोई केस नहीं रजिस्टर है। 

ये कोई बड़ी बात नहीं थी बस चुनावी लाभ के लिए बीजेपी के द्वारा नैरेटिव सेट करने की एक नाकाम कोशिश मात्र थी पर बीजेपी इसमें भी असफल हुई सांकेतिक तरीके से दिग्विजय सिंह द्वारा इस मुद्दे पर बनने वाले नकारात्मक माहौल को अपने पक्ष में करने में सफलता हासिल की। आगे गठबंधन न होने पर भी मायावती ने दिग्विजय को जिम्मेदार बताया तो भी दिग्विजय सिंह द्वारा इसके सन्दर्भ में कोई टिप्पड़ी नहीं की गई । आगे टिकट वितरण के दौरान भी जब कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं ने टिकट नहीं मिलने से पार्टी के खिलाफ बगावत करनी शुरू की तो भी 20 बागियों को मनाकर कांग्रेस के पक्ष में फिर से माहौल बनाने में अहम् योगदान दिया। यहाँ तक कि सरकार बनाने की प्रक्रिया में भी कुछ विधायको के कम होने पर भी इनकी ही चाणक्य नीति पार्टी को किनारे पहुँचाने में मददगार रही। जहाँ तक मुख्यमंत्री पद के चुनाव की बात है राहुल गाँधी या कांग्रेस ने भले ही मुख्यमंत्री कमलनाथ को बना दिया हो लेकिन जनता के बीच लोकप्रियता और कांग्रेस के सत्ता में पुनर्वापसी के बहुँत लाने में ज्योतिरादित्य के ग्लैमर और चुनाव प्रचार व भाषण शैली बड़ा ही अहम् रोल रहा है। दिग्विजय सिंह पहले ही खुद को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर कर लिया इसके बाद लोकप्रिय नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जनता नें मुख्यमंत्री के रूप में देखने लगी थी। इसका एक महत्वपूर्ण प्रमाण यहाँ है कि कांग्रेस द्वारा पायी गई कुल सीटों का 22 % सीट कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य के प्रभाव वाले ग्वालियर संभाग से जीती है गौरतलब है कि ग्वालियर संभाग की कुल 34 सीटों का 80 % हिस्सा यानि कि 26 सीटें कांग्रेस ने जीती है।
 
ऐसी भी कई खबरें आईं कि बीजेपी ने शुरुआत में मध्यप्रदेश में शिवराज के बिना चुनाव में उतारने की रणनीति पर काम की थी पर उनकी लोकप्रियता की वजह से पार्टी ऐसा नहीं कर सकी । लेकिन  बीजेपी हाई कमांड ने शिवराज समर्थक अध्यक्ष को हटाकर आर एस एस के चहेते और अमित शाह की पसंदीदा राकेश सिंह को अध्यक्ष बनाया जिससे शिवराज की संगठन पर पकड ढीली हुई । उलटे पार्टी में  गुटबाजी भी बढ़ गई  शिव राज समर्थक पार्टी अध्यक्ष के हटने के बाद बड़े लेवल पर शिवराज समर्थक विधायको ने टिकट कटने के डर से कांग्रेस का दामन भी थामा । जहाँ तक मुद्दों की बात है किसान और व्यापम आदि मुद्दों नें बीजेपी को नुकसान पहुचाने में अहम् भूमिका निभाई। रही सही कसर 5000 संतों ने  शिवराज के खिलाफ मोर्चा खोलकर पूरी कर दी संतों ने यह नारा दिया कि “जब पाप करे शिवराज तो फिर क्यों माफ़ करें महाराज”। राहुल गाँधी ने अपने भाषणों में प्रदेश सरकार से ज्यादा मोदी जी को घेरने कि रणनीति पर काम किया था ललित मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी और सबसे बढ़कर राफेल मामले में एचएएल से कॉन्ट्रैक्ट छीनकर अनिल अम्बानी को दिए जाने पर घेराव किया गया। राफेल मुद्दे ने इस चुनाव में कांग्रेस को इस कदर मदद किया कि कई चुनावी विश्लेषकों ने यहाँ तक कह दिया कि अगर राफेल का फैसला चुनाव के वक़्त आ जाता तो कांग्रेस नहीं बीजेपी चुनाव जीत जाती। कई ख़बरों में यह बात उजागर हुई थी कि रोहित बेमुला व ऊना के बाद देश में एक स्वाभिमानी दलित नेतृत्व का विकास हुआ है इससे दलित नेतृत्व की अनदेखी आने वाले समय  में खतरनाक होगी। लेकिन बीजेपी ने दलित मुद्दे को भी ठंढे बस्ते में डाले रखा।
 
बीजेपी चुनाव हारी है। शहरों में बीजेपी को नुकसान होना बीजेपी के लिए खतरे की घटी है। व्यापम ललित मोदी राइस घोटाला, व वायदों के खिलाफ कांग्रेस को यूपी में नहीं रखना चाहते थे। मध्य प्रदेश में एमएसपी को सही करने के लिए भावान्तर योजना लगी इसके माध्यम से 200 से 300 बोनस की व्यवस्था दी गई। पर बीजेपी इसे प्रचारित करने के बजाए सांप्रदायिक कार्ड खेलने में व्यस्त रही (अली बजरंग बली, हनुमान जी दलित .....)  हालाँकि भावान्तर में कई खामियां भी रहीं थी जिसे समय रहते सही नहीं किया गया था। नासिक के आन्दोलन के बाद मंदसौर में 1 रूपये प्रति किलो प्याज बिकी। भावान्तर फेल रहा था, कई मामलों में ऐसा भी पाया गया था कि एक ही रकबे में दो भाइयों के खेतों में भावान्तर का लाभ किसी को कम तो किसी को बहुत ज्यादा मिला ऐसी शिकायतों का निवारण करने में भी सरकार फेल रही थी। बीजेपी ने  मध्य प्रदेश में तो हर जातियों के नेताओं को एक  पोस्टर पर उकेरने की रणनीति का जवाब अपने मुख्य नेताओं के आगे हिन्दुस्तानी लिखकर दिया गया। इस मामले में कांग्रेस अपनी पार्टी को सर्व समाज की पार्टी साबित करना चाहती थी तो बीजेपी ने राष्ट्रवादी कार्ड खेलकर कांग्रेस को मात दिया। 

एस टी एक्ट के खिलाफ मध्य प्रदेश में सवर्णों की पार्टी ने तो कुछ कुछ नहीं किया लेकिन बीजेपी के खिलाफ सवर्णों नोटा के सवर्णों सवर्णों ने नोटा को वोट दिया। यहाँ पर बीजेपी के 15 वर्षीय कार्यकाल में आर एस एस काफी मजबूत स्थिति में पहुँच चुका था। चुनावों से पहले कांग्रेस ने अपने बचन पत्र में आर एस एस की शाखा पर प्रतिबंध लगाने का कार्ड खेला इस पर शिवराज नें ईट से ईट बजाने की धमकी दे दी इससे थोडा माहौल हिन्दू मुस्लिम होते होते रहा लेकिन आगे कांग्रेस के घोषणापत्र में गौशाला का वायदा भी शामिल था जिससे इसे काउंटर करने में मदद मिली थी । आर एस एस व बीजेपी के इंटरनल सर्वे में पार्टी के प्रति अगड़ी जातियों व बहुत से विधायकों से नाराजगी की खबरे आई थी।
 
कुल मिलकर भावान्तर योजना काफी अच्छी रही थी भावान्तर योजना में मैनेजमेंट ठीक नहीं रहा थी इसलिए चुनाव किसान सेंट्रिक करने में मदद मिलित थी और अंततः किसानों के लिए की गई घोषणाएं गेम चेंजर हुईं इस मामले में  राहुल गाँधी जनता को अपने तर्क के माध्यम से बिश्वास में लेने में भी सफल रहे थे कि अगर मोदी जी 10   उद्योगपतियों का 3.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर सकते हैं तो लाखों किसानों के कर्ज क्यों नहीं माफ़ किया जा सकता। कुल मिलकर पुरे मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में  दिग्विजय सिंह की  कुटनीती, ज्योतिरादित्य के धुवांधार चुनाव  प्रचार और कमलनाथ के  कुशल प्रबंधन ने डूबती कांग्रेस को बहुमत के करीब पहुंचा दिया लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस ने एक भयंकर बहुल की वो बहुल चुनाव पूर्व बसपा से गठबंधन का न हो पाना अगर चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाता तो शायद चुनाव के बाद कांग्रेस को गठबंधन की जरूरत न पड़ती। विश्लेषण जारी है...

ये लेखक के निजी विचार हैं।

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