राहुल गांधी को ही क्यों दोष दिया जाए? हरीश गुप्ता का ब्लॉग
By हरीश गुप्ता | Updated: December 31, 2020 12:21 IST2020-12-31T12:19:16+5:302020-12-31T12:21:24+5:30
कांग्रेस नेता राहुल गांधी रविवार को अपनी संक्षिप्त निजी यात्रा पर विदेश रवाना हुए, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पुष्टि की कि वह कुछ दिनों तक बाहर रहेंगे.

पार्टी के स्थापना दिवस समारोह को छोड़ कर वे वर्ष के अंत में इटली चले गए.
राहुल गांधी को इस बात के लिए क्यों दोषी ठहराया जाए कि अपनी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह को छोड़ कर वे वर्ष के अंत में इटली चले गए. इस बात से इनकार नहीं है कि वे साल में कई बार छुट्टी पर जाते हैं और 2004 में राजनीति में कदम रखने के बाद से यह उनकी दिनचर्या है. लेकिन उन्हें दोष क्यों दें!
क्या यह सच नहीं है कि उन्होंने पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं ले रखी है? यहां तक कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपने परिवार के साथ लंदन के लिए रवाना हो गए हैं. इतना ही नहीं बल्कि हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी कच्छ के रण में छुट्टियां मना रहे हैं. आप जानना चाहते हैं कि बिहार के तेजस्वी यादव छुट्टी मनाने कहां जाते हैं?
दिल्ली उनका गंतव्य है और वे यहां किसी से नहीं मिलते हैं. उन्हें आंदोलनकारी किसानों के साथ भी नहीं देखा गया है, न ही बिहार से उन्होंने कोई दल भेजा है. भाजपा के युवा मंत्रियों को जरूर झटका लगा है क्योंकि मोदी उन पर कड़ी नजर रख रहे हैं और उनमें से कुछ ने अतीत में इसकी कीमत भी चुकाई है. लेकिन अन्य दलों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है.
श्रीनगर में आखिरकार भगवा ध्वज लहराया
भाजपा ने घाटी में जिला विकास परिषद (डीडीसी) की 140 सीटों में से तीन और जम्मू क्षेत्र में 140 में से 72 सीटों पर जीत हासिल की है. तीन में से, उसने श्रीनगर ग्रामीण डीडीसी में सिर्फ एक सीट जीती. लेकिन वह यहां बहुमत हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी से जुड़े कुछ पार्षदों ने पहले ही स्थानीय व्यवसायी और पीडीपी-बीजेपी सरकार में पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी की ‘अपनी पार्टी’ के पक्ष में पाला बदल लिया है, जिन्होंने अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद पार्टी बनाई.
भाजपा 4 निर्दलीयों को भी लुभा रही है, क्योंकि पीडीपी, नेकां और अपनी पार्टी ने तीन-तीन सीटें जीती हैं. किसी के पास बहुमत नहीं है. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व श्रीनगर डीडीसी पर कब्जा करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है क्योंकि इतिहास में वह एक महान दिन होगा जब घाटी के केंद्र में भाजपा-अपनी पार्टी डीडीसी में काबिज होगी. भाजपा ने कई राज्यों में अल्पमत को बहुमत में बदलने की कला दिखाई है और यह प्रक्रिया अब घाटी में भी जारी रहेगी. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने हाल ही में जुनैद अजीम मट्टू के अपनी पार्टी में दलबदल से श्रीनगर नगर निगम पर अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा कर लिया.
जुनैद अजीम मट्टू सज्जाद लोन के नेतृत्व वाले पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का हिस्सा थे. बाद में उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए 2013 में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को छोड़ दिया और चुनाव जीतने के बाद, अपनी पार्टी में चले गए. अल्ताफ बुखारी और जुनैद मट्टू ने श्रीनगर को विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिए प्रयास करने की घोषणा की है. यदि यह गठबंधन काम करता है तो भगवा झंडा श्रीनगर ग्रामीण में फहरा सकता है, जबकि श्रीनगर शहर पहले से ही भाजपा की मित्र पार्टी के कब्जे में है.
क्या मोदी झुकेंगे?
अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने भूमि अधिग्रहण कानून लाने की कोशिश की थी. लेकिन पहले ग्रामीण विकास मंत्री गोपीनाथ मुंडे इससे सहमत नहीं थे. यहां तक कि उनके उत्तराधिकारी नितिन गडकरी भी मोदी को वह नहीं दे सके जो वे चाहते थे. मोदी अंत में चौधरी बीरेंद्र सिंह को लाए, लेकिन वे भी असफल रहे. प्रधानमंत्री को यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून को वापस लेने के लिए मनाया गया और मोदी को कड़वी गोली निगलनी पड़ी. अब कार्यकाल के छह साल बाद, मोदी को एक और वाटरलू का सामना करना पड़ रहा है.
लेकिन यह विपक्ष की रचना नहीं है और न ही राहुल गांधी ने उन्हें यह उपहार में दिया है. 2019 के विशाल जनादेश पर सवार होकर उन्होंने इन कृषि सुधारों को आगे बढ़ाया. वे अभी भी सफल हो सकते हैं. लेकिन स्थिति गंभीर दिख रही है. मोदी की एक और समस्या यह है कि वे किसी पर भरोसा नहीं करते हैं और किसी को बताते नहीं हैं कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है.
सरकार में अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें कुछ जानकार लोगों द्वारा सलाह दी गई है कि वे राज्यों को अनुमति दें कि इन तीन अधिनियमों के बारे में वे जो भी फैसला करना चाहते हों, करें. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इन अधिनियमों को स्थगित करने और बातचीत शुरू करने का सुझाव दिया था. किसी भी हालत में गणतंत्र दिवस और संसद सत्र से पहले समझौता होना एक बेहतर विकल्प है.
कोई खबर नहीं होना ही सबसे अच्छी खबर
ऑल इंडिया रेडियो के लिए, दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन कोई खबर नहीं है. शाम 8.30 बजे के स्लॉट में प्राइम टाइम समाचार बुलेटिन को सुनने से तो ऐसा ही लगता है. ऐसा लगता है कि आंदोलन का अस्तित्व ही नहीं है. पूरा बुलेटिन सरकारी विवरणों और राज्यों से भेजी जाने वाली खबरों से भरा है. ऐसा क्यों? ऑल इंडिया रेडियो ने पीटीआई, यूएनआई, एएनआई और अन्य एजेंसियों की समाचार सेवा लेना बंद कर दिया है. दुनिया भर से इसके संवाददाताओं द्वारा जो भी खबर भेजी जाती है वही प्रसारित होती है.