वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नेताओं की बेलगाम जुबान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 17, 2019 07:00 AM2019-04-17T07:00:06+5:302019-04-17T07:00:06+5:30
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोरा ने 25-30 साल बाद टी.एन. शेषन की याद ताजा कर दी. शेषन ने उस समय के उम्मीदवारों पर जबर्दस्त लगाम लगाने का काम किया था
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोरा ने 25-30 साल बाद टी.एन. शेषन की याद ताजा कर दी. शेषन ने उस समय के उम्मीदवारों पर जबर्दस्त लगाम लगाने का काम किया था. वे उम्मीदवारों के आपत्तिजनक भाषणों को रिकार्ड करते थे और यह चेतावनी भी देते रहते थे कि वे उन्हें चुनाव लड़ने से रोक देंगे.
लेकिन अरोरा ने वह किया है, जो आज तक उनके पहले के 22 मुख्य चुनाव आयुक्तों ने नहीं किया. उन्होंने चार नेताओं- योगी आदित्यनाथ, आजम खान, मायावती और मेनका गांधी के चुनाव-प्रचार पर कुछ दिनों का प्रतिबंध लगा दिया है. ये चारों उम्मीदवार अब निर्धारित अवधि में न तो सभा कर सकेंगे, न जुलूस निकाल सकेंगे, न टीवी चैनलों और अखबारों को इंटरव्यू या बयान दे सकेंगे और न ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकेंगे.
चुनाव अभियान के दौरान हर उम्मीदवार चाहता है कि उसके हर मिनट का इस्तेमाल प्रचार के लिए हो. उस पर दो या तीन दिनों का प्रतिबंध तो अपने आप में सजा है और उसके प्रतिद्वंद्वी को अचानक मिला इनाम है. इसके अलावा बेलगाम और अश्लील बातें कहने से उनकी छवि भी खराब होती है. यह भी सजा है. यहां किस उम्मीदवार ने क्या कहकर ‘आदर्श आचार संहिता’ का उल्लंघन किया है, यह बताने की जरूरत नहीं है. उसकी काफी खबरें बन चुकी हैं. इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी से भी सफाई मांगी है कि उन्होंने यह झूठ क्यों बोला कि अदालत ने भी चौकीदार (मोदी) को चोर करार दिया है.
सर्वोच्च न्यायालय और संसद को चाहिए कि वह चुनाव आयोग को यह अधिकार भी दे कि वह किसी भी उम्मीदवार को, यदि वह आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन करे तो उसे चुनाव-दंगल से बाहर कर सके और भविष्य में भी उस पर प्रतिबंध लगा सके. ऐसे मामलों का फैसला तत्काल होना चाहिए ताकि बड़े से बड़ा नेता भी मर्यादा-भंग न कर सके.