अवधेश कुमार का ब्लॉगः भाजपा को अपनों से ही मिल रही चुनौती

By अवधेश कुमार | Published: February 8, 2019 09:02 AM2019-02-08T09:02:52+5:302019-02-08T09:02:52+5:30

सामान्य वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण से इसमें कमी आएगी लेकिन असंतोष और उदासीनता को दूर करने के लिए काफी कुछ करना होगा.

Awadhesh kumar's blog: Challenges of getting the BJP from the people | अवधेश कुमार का ब्लॉगः भाजपा को अपनों से ही मिल रही चुनौती

सांकेतिक तस्वीर

आम चुनाव के पूर्व विपक्ष का सत्ता पक्ष पर हमला तथा ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश करना स्वाभाविक है कि लोगांे में सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष है और वे इनको पराजित करने का मन बना चुके हैं. चूंकि पिछले वर्ष तीन प्रमुख राज्यों में भाजपा की पराजय हो गई, इसलिए उनकी बातों में दम भी नजर आता है. प्रश्न है कि अगर सरकार के विरुद्ध इतना ही व्यापक जनअसंतोष है तो फिर एक दूसरे की जानी दुश्मन पार्टियों के साथ आने की मजबूरी क्यों पैदा हो रही और जो नहीं आ रहे उनसे एकजुट होने की अपील क्यों की जा रही है? 

विपक्षी पार्टियों द्वारा माहौल जो भी बनाया जाए, जमीनी हकीकत यही है कि मोदी सरकार की लोकप्रियता में ह्रास है, पर उसके विरुद्ध व्यापक जनआक्रोश की स्थिति नहीं है. आप कहीं भी रुककर आसपास के आम लोगों से बात करिए, आपको सच का अहसास हो जाएगा. न सरकार के विरुद्ध आक्रोश, न विपक्ष के विरुद्ध उत्कट आकर्षण. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर आम माहौल यही है. 

वास्तव में परिणामों पर दो राय हो सकती है, लेकिन सरकार के इरादे और साहस से निर्णय करने पर प्रश्न नहीं उठा सकते. कृषि क्षेत्र को लेकर खूब हाय तौबा की जा रही है. लेकिन अगर आप बजट आवंटन से लेकर कृषि से संबंधित सारे कदमों को एक साथ मिलाकर देखिए तो निष्पक्ष निष्कर्ष यही आएगा कि कृषि और किसान इस सरकार का फोकस रहा है. कहने का यह अर्थ नहीं कि किसान खुशहाल हो गए, अब खेती करने वाले इसे सम्मान का काम मानने लगे, लाभकारी काम हो गया, किंतु उसके लिए काफी प्रय} हुआ यह सामने है.

कृषि राज्यों का विषय है, इसलिए अमल में लाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. तमाम विरोधों और आरोपों को ङोलते हुए रक्षा आधुनिकीकरण एवं सशक्तिकरण के निर्णय निर्भीकता से लिए गए जो इनका वादा था. बरसों से रुकी रक्षा सशक्तिकरण की प्रक्रिया जितनी तेज इस दौरान हुई इसके पूर्व नहीं देखी गई. कश्मीर को छोड़ आतंकवादी हमलों से देश मुक्त रहा है, माओवाद की कमर टूट गई है. ऐसे अनेक क्षेत्रों का उल्लेख यहां किया जा सकता है. किंतु कई मोर्चे पर ये बेहतर काम कर सकते थे जो नहीं किया गया. कश्मीर का उदाहरण ले सकते हैं. 

अब आइए संगठन परिवार की कसौटी पर. मोदी के लिए बड़ी समस्या इसी कसौटी पर है. यह कहना सही नहीं है कि संघ और भाजपा के एजेंडा पर कुछ नहीं हुआ है. हां, मोदी सरकार की मुखर आवाज विचारधारा नहीं रही है. यह सबसे बड़ी निराशा का कारण रहा है. हिंदुत्व को उसकी संपूर्ण व्यापकता में न समझने वाले नवहिंदुत्ववादियों की बड़ी संख्या है जो तुरत-फुरत में अपनी कल्पना के अनुरूप परिणाम चाहते हैं. संसदीय प्रणाली में संविधान के तहत काम करने वाली सरकार की सीमाएं हो जाती हैं. राम जन्मभूमि मुद्दे से भावनात्मक जुड़ाव सही है.

सरकार ने अपने वायदे के अनुरूप संवैधानिक दायरे में इसके निर्माण का रास्ता प्रशस्त करने के लिए अभी तक कुछ नहीं किया. उच्चतम न्यायालय में अपने वकीलों के माध्यम से पक्षकार बनने तक से ये बचते रहे. अब 67 एकड़ अधिगृहीत अविवादित भूमि के वापस करने की अपील केंद्र ने की है. हालांकि सरकार ने विलंब किया है, पर इसका असर होगा. शिक्षा के भगवाकरण का हंगामा खूब हुआ है, लेकिन व्यवहार में शून्य. हां, विश्वविद्यालयों, अकादमिक व अनुसंधान संस्थानों में कुछ नियुक्तियां हुईं लेकिन कार्यकर्ता कहते हैं कि उनमें से ज्यादातर लोग ऐसे निकले हैं जिनका विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं. इससे परिणाम जो आना चाहिए था नहीं आया.

इन सबसे पैदा असंतोष दूर करने की कोशिश नहीं हुई तो वह चुनाव में भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है. अयोध्या पर पहल ऐसी बड़ी कोशिश है. अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति आयोग अत्याचार निवारण कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय ने जो फैसला दिया उसे विधेयक लाकर पलटना इस समूह को नागवार गुजरा है. हिंदुत्ववादी समूह का मानना था कि मोदी जाति, क्षेत्र की राजनीति पर प्रहार करके इसे कमजोर करेंगे. ऐसा नहीं हुआ है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हिंदुत्व और अनुसूचित जाति-जनजाति संशोधन कानून पराजय के मूल कारण बने. सामान्य वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण से इसमें कमी आएगी लेकिन असंतोष और उदासीनता को दूर करने के लिए काफी कुछ करना होगा. 

प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना लघु और सीमांत किसानों के दिल जीतने की बड़ी कोशिश है. इसका भी असर होगा. व्यापारी वर्ग भाजपा का परंपरागत समर्थक रहा है. जीएसटी, बिल्डरों के लिए रेरा, दिवालिया कानून और बेनामी कानून जैसे कई कड़े कदमों से उसमें खीझ साफ देखी जा सकती है. उनके लिए सरकार क्या करती है यह भी देखना होगा. वास्तव में लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौतियां विपक्ष और आम जनता नहीं, अपने ही कार्यकर्ता और परंपरागत समर्थक हैं जो ऐसे कई कारणों से उदास हैं या विरोधी हो रहे हैं.

Web Title: Awadhesh kumar's blog: Challenges of getting the BJP from the people