अवधेश कुमार का ब्लॉग: भाजपा दूसरे दलों से नहीं, स्वयं से हारी है

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 24, 2019 07:12 AM2019-12-24T07:12:54+5:302019-12-24T07:12:54+5:30

नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्यों तथा कार्यो से चुनावों में जातीय-क्षेत्नीय कारकों को एक हद तक कमजोर किया है. राष्ट्रीय वातावरण बनाकर स्थानीय अस्मिता को भी राष्ट्रीय धारा में मोड़ने में वे काफी हद तक सफल हैं जिनका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलता है.

Avadhesh Kumar's blog: BJP loses by itself, not other parties | अवधेश कुमार का ब्लॉग: भाजपा दूसरे दलों से नहीं, स्वयं से हारी है

राष्ट्रीय वातावरण बनाकर स्थानीय अस्मिता को भी राष्ट्रीय धारा में मोड़ने में वे काफी हद तक सफल हैं जिनका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलता है.

Highlightsनरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्यों तथा कार्यो से चुनावों में जातीय-क्षेत्नीय कारकों को एक हद तक कमजोर किया है.राष्ट्रीय वातावरण बनाकर स्थानीय अस्मिता को भी राष्ट्रीय धारा में मोड़ने में वे काफी हद तक सफल हैं जिनका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलता है.

 अवधेश कुमार

 यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है कि झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बड़ा आघात है. सभी एक्जिट पोल में सत्ता से बाहर होने के आकलन सामने आने के बावजूद भाजपा को पूरी उम्मीद थी कि वह फिर से सत्ता में वापस लौटेगी. एक्जिट पोल के बावजूद मुख्यमंत्नी अबकी बार 65 पार का ही जवाब देते रहे. ऐसा नहीं हुआ.

यही नहीं जब सरयू राय विद्रोह करके अपनी सीट की जगह मुख्यमंत्नी रघुबर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्व से खड़े हुए तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि वो इतना बेहतर प्रदर्शन करेंगे. प्रश्न है कि ऐसा क्यों हुआ? जब भी सत्तारूढ़ पार्टी बहुमत से वंचित रह जाती है तो विरोधी और विश्लेषक अपने नजरिये से अनेक कारण सामने लाते हैं.

मसलन, झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि भाजपा लोगों को लाइनों में खड़ा करवाती है और इसी कारण उसकी पराजय हुई क्योंकि पहले नोटबंदी में लाइन में लगाया और अब एनआरसी के लिए लाइन में लगाएंगे. इसका अर्थ यह है कि भाजपा का प्रदर्शन केंद्रीय सरकार के कार्यो के कारण खराब हुआ. क्या इसे स्वीकार किया जा सकता है?  

यह बात सही है कि प्रधानमंत्नी और गृह मंत्नी ने स्थानीय मुद्दों के अलावा राष्ट्रीय मुद्दों को प्रखरता से उठाया जिसमें नागरिकता संशोधन कानून, अयोध्या में मंदिर निर्माण के अलावा एक साथ तीन तलाक विरोधी कानून तथा अनुच्छेद 370 को हटाना आदि शामिल था. कहने का तात्पर्य यह कि ये मुद्दे चुनाव में थे लेकिन ऐसे परिणाम के मूल कारण दूसरे हैं. माना जा सकता है कि भाजपा के समानांतर झामुमो, कांग्रेस और राजद का एक मजबूत गठबंधन होने के कारण उसे हराने की चाहत रखने वाले एकमुश्त उसके साथ गए.

झामुमो ने स्वयं ज्यादातर ग्रामीण तथा कांग्रेस को शहरी सीटें देकर अच्छा रणनीतिक गठजोड़ किया. आजसू से गठबंधन न होने का भी थोड़ा असर है. किंतु ये सब कम प्रभावी कारक हैं.

नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्यों तथा कार्यो से चुनावों में जातीय-क्षेत्नीय कारकों को एक हद तक कमजोर किया है. राष्ट्रीय वातावरण बनाकर स्थानीय अस्मिता को भी राष्ट्रीय धारा में मोड़ने में वे काफी हद तक सफल हैं जिनका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलता है. किंतु प्रदेश स्तर के नेताओं में ऐसे नेता नहीं पैदा हो रहे जो उसी भाव को अपने यहां आगे बढ़ाएं और सुदृढ़ करें.

झारखंड के गैर आदिवासी मुख्यमंत्नी के रूप में रघुबर दास का दायित्व था कि वे स्थानीय जातीय अस्मिता की धारा को कमजोर करते हुए यह वातावरण बनाएं कि वे प्रदेश और देश के हित में काम करने वाले सभी जातियों-समुदायों के नेता हैं.

इस तरह के लक्ष्य से काम करने वाले की सरकार का चरित्न भी थोड़ा भिन्न होगा तथा वह सरकार एवं संगठन के बीच पूरी तरह समन्वय कायम रखेगा. ऐसे नेता के विरुद्ध पार्टी में भी असंतोष पैदा नहीं हो सकता.

 

Web Title: Avadhesh Kumar's blog: BJP loses by itself, not other parties

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