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अटल बिहारी वाजपेयी: नए युग की रखी थी आधारशिला

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 18, 2018 03:33 IST

अटलजी के निधन को कई लोगों ने एक युग का अंत कहा है। लेकिन मैं इसे ऐसे युग की निरंतरता में देखता हूं जिसकी नींव उन्होंने रखी थी।उनकी राजनीतिक यात्र ने उनकी विचारधारा को आकार दिया।

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(लेखक-अरुण जेटली) अटलजी के निधन को कई लोगों ने एक युग का अंत कहा है। लेकिन मैं इसे ऐसे युग की निरंतरता में देखता हूं जिसकी नींव उन्होंने रखी थी। उनकी राजनीतिक यात्र ने उनकी विचारधारा को आकार दिया। उनके दृढ़ निश्चय को देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने आकार दिया था, जो कि छात्र जीवन में ही भारत छोड़ो आंदोलन के साथ, उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल होने और फिर जनसंघ के संस्थापक  श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ जुड़ने से पैदा हुई। जनसंघ में अपने शुरुआती दिनों से ही वे ‘कश्मीर सत्याग्रह’ से जुड़ गए थे, जो राज्य के संबंध में भारतीय नागरिकों पर लगे कई प्रतिबंधों को समाप्त कराना चाहता था। युवावस्था से ही वे जनसंघ का प्रमुख चेहरा थे। उन्होंने देश भर की यात्र की और करिश्माई वक्ता के रूप में उनका स्वागत किया गया। उन्होंने एक बार हमें बताया था कि 1980 के दशक के मध्य तक उनकी अधिकतर यात्रएं ट्रेन से या सड़क मार्ग से ही होती थीं। कई बार तो बसों से भी। उन यात्रओं के दौरान अक्सर वे पार्टी कार्यकर्ताओं के घरों में ठहरते थे।  

कांग्रेस से मोहभंग 1962 के चीन युद्ध में पराजय के साथ ही शुरू हो गया था। उस दौर में डॉ। राम मनोहर लोहिया की अगुवाई में कांग्रेस हटाओ देश बचाओ का नारा दिया जा रहा था और महत्वपूर्ण उपचुनावों में सीटों के समन्वय के लिए डॉ। लोहिया, पं। दीनदयाल उपाध्याय और आचार्य कृपलानी के बीच विचार-विमर्श शुरू हो गया था। दीनदयालजी के साथ उनकी राजनीतिक टीम थी, जिसमें अधिकांश नेता तीस की आयु के आसपास थे और पार्टी की संगठनात्मक संरचना बनाने में व्यस्त थे। इसका नतीजा 1967 में देखने को मिला जब जनसंघ संसद में सांसदों के एक बड़े दल के साथ उभरा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पूर्ण बहुमत हासिल किया और उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की। दीनदयाल उपाध्याय के आकस्मिक निधन के बाद, जनसंघ नेतृत्व की विरासत अटलजी पर आ गई। पार्टी के मूल विश्वासों के साथ समझौता नहीं करते हुए, उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों के साथ समन्वय शुरू किया।

उनके भीतर पार्टीगत हितों से ऊपर उठने की क्षमता थी, जिसका प्रदर्शन उन्होंने 1971 के युद्ध के दौरान दृढ़ता से सरकार के पीछे खड़े होकर किया था। 1974 में, श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलन में अटलजी के नेतृत्व में जनसंघ ने भाग लिया और इसकी मुख्य ताकत बना।उनकी राजनीतिक यात्र का मुख्य पहलू उनके नाम ‘अटल’ को सार्थक करता था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पहले कुछ दशकों तक सिर्फ कांग्रेस का ही बोलबाला था। अटलजी ने एक विकल्प पैदा किया, जो पिछले दो दशकों में कांग्रेस से बड़ा हो गया है। आडवाणी जी के साथ, उन्होंने केंद्र और राज्यों में नेताओं की दूसरी पंक्ति तैयार की। संसद में, उन्हें पूरी तन्मयता से सुना जाता था। सार्वजनिक सभाओं में दर्शक उनके आगमन के घंटों पहले ही पहुंच जाते थे। उनके भाषणों में हमेशा हास्य का मिश्रण होता था। उनकी त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता बेजोड़ थी। उनका शब्दों का चयन, वाक्यांशों का प्रयोग, काव्य पंक्तियों के वक्तव्यों में उपयोग ने उन्हें अभिव्यक्ति की ऐसी क्षमता प्रदान कर दी थी कि वे जटिल मुद्दों की भी सरल शब्दों में व्याख्या करने में समर्थ थे।1998 में परमाणु परीक्षण उनकी सरकार का एक निर्णायक क्षण था।

पाकिस्तान के साथ शांति के लिए उन्होंने लीक से बाहर जाकर कार्य किया था। लेकिन जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने कारगिल में उसके खिलाफ कठोर जवाबी कार्रवाई भी की। पोखरण और कारगिल - दोनों उनके महत्वपूर्ण कार्य थे। आर्थिक मोर्चे पर वे उदारवादी थे। राष्ट्रीय  राजमार्ग, ग्रामीण सड़कों, बेहतर बुनियादी संरचना, एक नई दूरसंचार नीति पर उनके कार्य व्यावहारिक थे। बदले हुए वैश्विक वातावरण में उन्होंने विदेश नीति के असंतुलन को ठीक किया। अटल जी एक डेमोक्रेट थे। उनकी राजनीतिक शैली उदार थी। उन्होंने आलोचनाओं को स्वीकार किया। वे संसदीय लोकतंत्र की उपज थे, इसलिए आम सहमति को महत्व देते थे।  उनके भीतर कोई द्वेष भाव नहीं था। उन्होंने उन लोगों के साथ भी संवाद किया जो असहमत थे। चाहे वे विपक्ष में रहे या सरकार में, उनका रवैया कभी नहीं बदला। वे एक प्रतिष्ठित कम्युनिकेटर थे, जो हालिया इतिहास में अद्वितीय थे। इन सब बातों ने उनके करिश्मे को बढ़ाया। उनकी सबसे बड़ी पूंजी उनकी विश्वसनीयता थी, जिस पर कभी कोई विवाद नहीं हुआ।

एक ऐसे युग में, जिसमें नेहरूवियन कांग्रेस का प्रभुत्व था, उन्होंने एक राजनीतिक दल का निर्माण किया, जो कांग्रेस का एक वैचारिक विकल्प था, जो कांग्रेस के साथ विभिन्न मुद्दों पर असहमत था,  जिसने कांग्रेस का सामना किया, लगभग पांच दशकों तक संघर्ष किया और पिछले दो दशकों में न केवल कांग्रेस का विकल्प बना बल्कि उसे पीछे छोड़ दिया। अटलजी एक मैराथन दौड़े। वे एक धैर्यवान धावक थे। उनके, आडवाणीजी और उनके अन्य सहयोगियों के बगैर भारतीय लोकतंत्र अलग दिखता - जिसमें एक ही दल, एक ही परिवार का बोलबाला होता और बहुत सी छोटी-छोटी पार्टियां बिखरी हुई होतीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अटलजी और उनके सहयोगियों ने इसमें फर्क पैदा किया। अटलजी ने दुनिया से विदा ले ली। लेकिन जिस युग की उन्होंने आधारशिला रखी, वह और भी समृद्ध होता जाएगा। यही वाजपेयीजी की विरासत है।

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