गलत कामों को कदापि नहीं मिलना चाहिए संरक्षण

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 6, 2024 11:26 AM2024-03-06T11:26:28+5:302024-03-06T11:47:42+5:30

रिश्वत लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देने वाले अपने ही आदेश को पलट कर सुप्रीम कोर्ट ने निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम उठाया है।

Wrong deeds should not be protected at all | गलत कामों को कदापि नहीं मिलना चाहिए संरक्षण

फाइल फोटो

Highlightsरिश्वत मामलों में सांसदों और विधायकों को मिले विशेषाधिकार छूट का खत्म होना बेहद महत्वपूर्ण हैसुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती हैविधायिका का सदस्य सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेकर बच नहीं सकता है

रिश्वत लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देने वाले अपने ही आदेश को पलट कर सुप्रीम कोर्ट ने निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अदालत ने बिल्कुल सही कहा कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1998 में ‘पी.वी. नरसिंह राव बनाम सीबीआई’ मामले में दिए गए अपने बहुमत के फैसले में कहा था कि सांसदों को संविधान के अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के लिए घूस के आपराधिक मुकदमे से छूट प्राप्त है।

अब सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सोमवार को कहा कि 1998 के बहुमत के फैसले का ‘सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव’ पड़ा है। विधायिका का कोई भी सदस्य सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोग से अनुच्छेद 105 और 194 के तहत छूट पाने के विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकता।

सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां ‘शानदार’ करार दिया है, वहीं कांग्रेस ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कानून को दुरुस्त करना जरूरी था और यह पहले ही किया जाना चाहिए था। जैसा कि सर्वोच्च अदालत ने भी कहा कि रिश्वत लेना ही अपने आप में अपराध होता है, चाहे वह जिस उद्देश्य से लिया गया हो। फिर किसी अपराध को संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त होने का दावा कैसे किया जा सकता है?

संविधान निर्माताओं ने शायद कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि जनप्रतिनिधियों को अपने कर्तव्यों के प्रभावी निर्वहन के लिए दिए जाने वाले विशेषाधिकारों का सहारा रिश्वत लेने जैसे आपराधिक उद्देश्यों के लिए भी लेने की कोशिश की जाएगी!

संसदीय विशेषाधिकार का मूल भाव संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और स्वायत्तता की सुरक्षा करना है, लेकिन संसद सदस्यों को यह अधिकार उनके नागरिक अधिकारों से मुक्त नहीं करता है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से देश में साफ-सुथरी राजनीति सुनिश्चित होगी तथा व्यवस्था में लोगों का विश्वास गहरा होगा।

Web Title: Wrong deeds should not be protected at all

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