विश्व गौरैया दिवसः शहरों में मुंडेर-खिड़की पर अब नहीं नजर आती गौरैया?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 20, 2025 05:16 IST2025-03-20T05:16:25+5:302025-03-20T05:16:25+5:30

World Sparrow Day: 20 मार्च का दिन घरेलू गौरैया और इससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए है.

World Sparrow Day live 20 march Are sparrows no longer seen parapets and windows in cities blog Dr Mahesh Parimal | विश्व गौरैया दिवसः शहरों में मुंडेर-खिड़की पर अब नहीं नजर आती गौरैया?

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Highlightsपुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है.संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.स्पैरो और कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया कार्यक्रम सहित कई परियोजनाएं शुरू कीं.

डॉ. महेश परिमल

वैसे तो हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, पर हमारे देश में यह भी अन्य दिनों की तरह एक औपचारिकता ही है. विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने की थी. उन्होंने जैव विविधता फोटो प्रतियोगिता, वार्षिक स्पैरो अवार्ड्स, प्रोजेक्ट सेव अवर स्पैरो और कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया कार्यक्रम सहित कई परियोजनाएं शुरू कीं. पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में आयोजित किया गया था. वर्ल्ड स्पैरो अवार्ड्स की स्थापना 2011 में की गई थी. यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 20 मार्च का दिन घरेलू गौरैया और इससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए है.

विश्व गौरैया दिवस का उद्देश्य पूरी दुनिया में जागरूकता बढ़ाना और पक्षियों की रक्षा करना है. कुछ साल पहले आम तौर पर लोगों के घरों में गौरैयों को देखा जाता था. बढ़ते ध्वनि प्रदूषण व अन्य कारणों से यह पक्षी अब शहरों में बहुत कम नजर आता है. गौरैया आज संकटग्रस्त पक्षी है, जो पूरे विश्व में तेजी से विलुप्त हो रही है.

खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफी कम रह गई है. ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहां तेजी से गिर रही है तो नीदरलैंड में तो इन्हें ‘दुर्लभ प्रजाति’ के वर्ग में रखा गया है. भोजन तलाशने के लिए गौरैया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है.

यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते हैं. शहरों में गौरैया की घटती संख्या का मुख्य कारण भोजन-जल की कमी, घोंसलों के लिए उचित स्थान का न मिलना और तेजी से कटते पेड़-पौधे हैं. गौरैया के बच्चों का भोजन शुरुआती दस-पंद्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते हैं, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं.

जिससे न तो पौधों को कीड़े लगते हैं और न ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है. इसके अलावा  मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी आज या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अंतिम सांसें गिन रहे हैं.

पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें.

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