सभ्यता वाहक और परिवर्तन का इंजन हैं किताबें, योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 23, 2021 05:55 PM2021-04-23T17:55:46+5:302021-04-23T17:57:46+5:30
193 सदस्य देशों और 6 सहयोगी सदस्यों की संस्था ‘यूनेस्को’ द्वारा ‘विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस’ का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को किया गया था.
योगेश कुमार गोयल
यूनेस्को और दुनियाभर के अन्य संबंधित संगठनों द्वारा लेखकों और पुस्तकों को वैश्विक सम्मान देने तथा पढ़ने की कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 23 अप्रैल को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया जाता है.
वैसे इस दिवस के आयोजन का अहम उद्देश्य लोगों को पुस्तकें पढ़ने, कॉपीराइट कानूनों तथा अन्य उपायों को समझने के लिए प्रोत्साहित करना है. इंग्लैंड तथा आयरलैंड को छोड़कर विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन दुनियाभर के करीब सौ देशों में होता है. दरअसल कुछ स्थानीय कारणों की वजह से इंग्लैंड और आयरलैंड में यह दिवस 23 अप्रैल के बजाय 3 मार्च को मनाया जाता है.
193 सदस्य देशों और 6 सहयोगी सदस्यों की संस्था ‘यूनेस्को’ द्वारा ‘विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस’ का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को किया गया था. हालांकि स्पेन में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा इस आयोजन की नींव वर्ष 1923 में सुप्रसिद्ध लेखक मिगुएल डे सरवेन्टीस को सम्मानित करने हेतु आयोजन के समय ही रख दी गई थी, जिनका निधन 23 अप्रैल के दिन ही हुआ था.
23 अप्रैल 1995 को पेरिस में आयोजित यूनेस्को जनरल कांफ्रेंस द्वारा विश्वभर में लेखकों तथा पुस्तकों को श्रद्धांजलि व सम्मान देने के लिए अंतिम रूप देते हुए इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में चुना गया. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 से इस दिन को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई.
साहित्यिक क्षेत्र में यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 23 अप्रैल की तारीख साहित्य क्षेत्र से जुड़ी अनेक विभूतियों के जन्म अथवा निधन का दिन है. यूनेस्को द्वारा विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल को ही मनाने का निर्णय इसीलिए लिया गया क्योंकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार विलियम शेक्सपियर, मिगुएल डे सरवेन्टीस, व्लादिमीर नबोकोव, मैन्युअल सेजिया वैलेजो, जोसेफ प्ला, इंका गारसीलासो डी ला वेगा, मॉरिस द्रुओन, हॉलडोर लैक्सनेस इत्यादि का जन्म अथवा निधन 23 अप्रैल को ही हुआ था. विलियम शेक्सपियर के तो जन्म तथा निधन की तारीख भी 23 अप्रैल ही थी.
आधुनिकता के दौर में भले ही बच्चों के साथ-साथ बड़ों का लगाव भी पुस्तकों के प्रति कम हो गया है किन्तु बुद्धिजीवियों का स्पष्ट मानना है कि हर समय यह संभव नहीं है कि पुस्तकों के स्थान पर मोबाइल या लैपटॉप आदि से पढ़ा जाए. दरअसल किताबें हर समय साथ निभाती हैं और वास्तविक संतुष्टि किताबें पढ़ने से ही मिलती है.
इस बात में कोई दो राय नहीं कि जिन लोगों की दिलचस्पी पुस्तकों में होती है, वे पुस्तक पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते, फिर भले ही उस पुस्तक में वर्णित बातें विभिन्न संचार माध्यमों से वे पहले ही जान चुके हों. कुछ विद्वानों का मत है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी, सोशल मीडिया इत्यादि वैचारिक युद्ध में हमें जानकारी तो अवश्य दे सकते हैैं किंतु संचार के ये माध्यम प्राय: निष्क्रिय स्वीकृति ही उपजाते हैं.
जबकि किताबें पढ़ने के लिए ध्यान, एकाग्रता और मेहनत की आवश्यकता होती है, जिससे विचारों और भावनाओं के लिए नई रोशनी व प्रोत्साहन मिलता है. कोरोना काल में इस साल फिर से अधिकांश स्कूल-कॉलेज बंद हो गए हैं और विभिन्न राज्यों में लगी अलग-अलग तरह की पाबंदियों के कारण बहुत से लोग अपना समय घर में ही व्यतीत रहे हैं.
ऐसे माहौल में जरूरी है कि टीवी या सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से चिपके रहने के बजाय पुस्तकों की दुनिया को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए ताकि रचनात्मकता का उपयोग करते हुए क्षितिज का विस्तार करने में पुस्तकों की शक्ति का बेहतर उपयोग किया जा सके.
बाल साहित्य और ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों के माध्यम से बच्चों के मानसिक विकास को बढ़ावा देने और साहित्य के प्रति उनमें आजीवन प्रेम उत्पन्न करने का भी प्रयास किया जाए. जिस समय हमारे आसपास कोई नहीं होता या हम अकेले अथवा उदास हों, परेशान हों, ऐसे समय में किताबें ही हमारी सच्ची दोस्त बनकर हमें सहारा देती हैं.
हमारे दिलोदिमाग में उमड़ते सवालों का जवाब पाने के लिए किताबों से बेहतर और कोई जरिया नहीं हो सकता. किताबें ज्ञान एवं नैतिकता की संदेशवाहक, भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति हेतु एक खिड़की तथा चर्चा हेतु एक औजार का काम करती हैं तथा भौतिक वैभव के रूप में देखी जाती हैं. अच्छी किताबें बच्चों और युवा पीढ़ी को ज्ञानवान, संस्कारित और चरित्रवान बनाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं.