रक्तदान को लेकर गलत धारणाओं को बदलने की जरूरत, योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 14, 2021 05:43 PM2021-06-14T17:43:27+5:302021-06-14T17:44:56+5:30

भारत में ही रक्त की कमी के चलते होने वाली ऐसी मौतों की संख्या करीब 20 लाख होती है क्योंकि देश में प्रतिवर्ष करीब 25 लाख यूनिट रक्त की कमी रह जाती है.

world blood donor day saves life needy number of deaths is about 20 lakhs Yogesh Kumar Goel's blog | रक्तदान को लेकर गलत धारणाओं को बदलने की जरूरत, योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग

वयस्क स्वेच्छा से कम से कम तीन माह के अंतराल पर साल में 3-4 बार रक्तदान कर सकता है.

Highlightsरक्तदान को लेकर कुछ गलत धारणाएं विद्यमान हैं.रक्तदान करने से संक्रमण का खतरा रहता है.शरीर में कमजोरी आती है, बीमारियां जकड़ सकती हैं या एचआईवी जैसी बीमारी हो सकती है.

रक्तदान को समस्त विश्व में सबसे बड़ा दान माना गया है क्योंकि यह किसी जरूरतमंद का जीवन बचाता है.

हालांकि एक समय था, जब चिकित्सा विज्ञान इतना विकसित नहीं था और किसी को पता ही नहीं था कि किसी दूसरे व्यक्ति का रक्त चढ़ाकर किसी मरीज का जीवन बचाया जा सकता है. उस समय रक्त के अभाव में असमय होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा था किंतु अब स्थिति बिल्कुल अलग है.

फिर भी यह विडंबना ही कही जाएगी कि रक्तदान के महत्व को जानते-समझते हुए भी रक्त के अभाव में आज भी दुनियाभर में हर साल करोड़ों लोग असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं, जिनमें अकेले भारत में ही रक्त की कमी के चलते होने वाली ऐसी मौतों की संख्या करीब 20 लाख होती है क्योंकि देश में प्रतिवर्ष करीब 25 लाख यूनिट रक्त की कमी रह जाती है.

दरअसल रक्तदान के महत्व को लेकर किए जाते रहे प्रचार-प्रसार के बावजूद आज भी कई लोगों के दिलोदिमाग में रक्तदान को लेकर कुछ गलत धारणाएं विद्यमान हैं, जैसे रक्तदान करने से संक्रमण का खतरा रहता है, शरीर में कमजोरी आती है, बीमारियां जकड़ सकती हैं या एचआईवी जैसी बीमारी हो सकती है.

इस तरह की भ्रांतियों को लेकर लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जाते रहे हैं किंतु अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार रक्तदान करने से शरीर को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता बल्कि रक्तदान से शरीर को कई फायदे ही होते हैं.

जहां तक रक्तदान से संक्र मण की बात है तो सभी स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा रक्त लेते समय विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक तरीके अपनाए जाते हैं, इसलिए संक्रमण का कोई खतरा नहीं होता. 18 साल से अधिक उम्र का शारीरिक रूप से स्वस्थ कम से कम 45 किलो से अधिक वजन का कोई भी वयस्क स्वेच्छा से कम से कम तीन माह के अंतराल पर साल में 3-4 बार रक्तदान कर सकता है.

कुछ लोगों को रक्तदान के समय हल्की कमजोरी का अहसास हो सकता है किंतु यह चंद घ्ांटों के लिए ही होता है. इसके उलट फायदों की चर्चा करें तो रक्तदान करते रहने से खून की प्राकृतिक रूप से सफाई होती है और रक्त कुछ पतला हो जाने से खून में थक्के नहीं जमते, जिससे हार्ट अटैक की आशंका बेहद कम हो जाती है.

रक्तदान के बाद शरीर में जो नए ब्लड सेल्स बनते हैं, उनमें किसी भी बीमारी से लड़ने की अपेक्षाकृत अधिक ताकत होती है और यह स्वच्छ व ताजा रक्त शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मददगार होता है, जिससे न सिर्फ कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप नियंत्रित रहता है बल्किकैंसर जैसी बड़ी बीमारियों से बचाव, कुछ हद तक मोटापे पर नियंत्नण तथा कई संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है.

रक्त में आयरन की मात्ना नियंत्रित हो जाने से लीवर की कार्यक्षमता बढ़ जाती है. जीवनदायी रक्त की महत्ता के मद्देनजर लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से 14 जून 1868 को जन्मे कार्ल लैंडस्टीनर के जन्मदिन पर 14 जून 2004 को रक्तदान दिवस की शुरुआत की गई थी और तब पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस तथा रेड क्रिसेंट सोसायटीज द्वारा ‘रक्तदान दिवस’ मनाया गया था, तभी से यह दिन ‘रक्तदान’ के नाम कर दिया गया.

विश्व रक्तदान दिवस की शुरुआत का उद्देश्य यही था कि चूंकि दुनियाभर में लाखों लोग समय पर रक्त न मिल पाने के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं, अत: लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक किया जाए. हमारे शरीर में कुल वजन का करीब सात फीसदी रक्त होता है और अगर हम उसमें से तीन फीसदी भी दान कर दें तो भी स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं होती.

वैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार एक बार में किसी भी व्यक्ति का एक यूनिट अर्थात 450 मिलीलीटर से अधिक रक्त नहीं लिया जा सकता और इस रक्त की पूर्ति हमारा शरीर  2-3 दिनों में ही कर लेता है.

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