ब्लॉग: सरकार के फैक्ट चेक यूनिट बनाने के मकसद पर क्यों उठ रहे सवाल?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 17, 2023 07:22 AM2023-05-17T07:22:05+5:302023-05-17T07:23:45+5:30

Why questions being raised on purpose of setting up a fact check unit by government | ब्लॉग: सरकार के फैक्ट चेक यूनिट बनाने के मकसद पर क्यों उठ रहे सवाल?

ब्लॉग: सरकार के फैक्ट चेक यूनिट बनाने के मकसद पर क्यों उठ रहे सवाल?

अरुण सिन्हा

इंडियन न्यूज पेपर सोसाइटी, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एवं डिजिटल एसोसिएशन तथा अन्य मीडिया संगठनों के विरोध को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार डिजिटल मीडिया में सरकार से संबंधित किसी भी फर्जी या गलत खबर का पता लगाने के लिए फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) स्थापित करने के अपने फैसले पर आगे बढ़ रही है.

हालांकि सरकार का निर्णय डिजिटल मीडिया की सामग्री के बारे में है, लेकिन इसका असर प्रिंट और टेलीविजन मीडिया पर भी पड़ेगा, क्योंकि इन तीनों क्षेत्रों में सामग्री निर्बाध बहती है. इसलिए एफसीयू का मुद्दा पूरे मीडिया के लिए गहरी चिंता का विषय है.

बुनियादी सवाल यह है : क्या हमें सरकार की गतिविधियों के बारे में गलत खबरों की पहचान के लिए एफसीयू की जरूरत है? मीडिया के सभी क्षेत्रों - प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल - में गलत खबरों की पहचान के लिए क्या पहले से कोई तंत्र नहीं है? 
हकीकत यह है कि यह तंत्र दो स्तरों पर मौजूद है. प्राथमिक स्तर पर, अखबारों में संपादक होते हैं, टीवी चैनलों के लिए प्रसारक होते हैं और डिजिटल मीडिया संस्थाओं के लिए होस्ट होते हैं. ऊपरी स्तर पर, अखबारों के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, समाचार प्रसारकों के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीडीएसए) है और डिजिटल प्रकाशकों के लिए द डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन या इसी तरह के निकाय हैं.

चूंकि भारत में मीडिया स्व-विनियमित है, यह दो स्तरीय तंत्र ही पेशेवर नैतिकता लागू करने के लिए जिम्मेदार है, न कि सरकार. पेशेवर नैतिकता  का पहला सिद्धांत है कि पत्रकार को जानकारी को सत्यापित करना चाहिए और उसे सार्वजनिक करने से पहले संतुष्ट होना चाहिए कि वह तथ्यात्मक रूप से सटीक हो. दो ही परिस्थितियों में जानकारी गलत हो सकती है. पहला, पत्रकार ने उसे पर्याप्त ढंग से क्राॅस-चेक नहीं किया हो और दूसरा, उसने जानबूझ कर किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए ऐसा किया हो. पहला मामला व्यावसायिक चूक है, जबकि दूसरा अनप्रोफेशनलिज्म है. दोनों ही पेशेवर नैतिकता का उल्लंघन हैं.

दोनों ही तरह के उल्लंघन का निवारण प्राथमिक स्तर पर शुरू होता है. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित पत्रकारिता आचरण के मानदंड कहते हैं, ‘‘जब किसी तरह की तथ्यात्मक त्रुटि या गलती का पता चले अथवा पुष्टि हो तो अखबार को स्वयं ही भूल सुधार को प्रकाशित करना चाहिए और गंभीर चूक के मामले में माफी या खेद प्रकट करना चाहिए. यदि अखबार त्रुटि को सुधारने से इंकार करे तो मामला ऊपरी स्तर पर जाता है जहां प्रेस काउंसिल ऐसा करवाती है. किसी अखबार द्वारा गंभीर या बारंबार उल्लंघन करने पर प्रेस काउंसिल के पास उसके सरकारी विज्ञापनों को रोकने की सिफारिश करने का भी
अधिकार है.

इसी तरह टीवी चैनलों के लिए गलती को सही करने की शुरुआत ब्रॉडकास्टर से होती है. तथ्यात्मक त्रुटि का पता चलने पर उनसे सुधार को प्रसारित करने, स्क्रीन पर माफी मांगने और इसे अपने डिजिटल अभिलेखागार से हटाने की अपेक्षा की जाती है. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो मामला ऊपरी स्तर पर एनबीडीएसए के पास जाता है जो प्रसारक पर जुर्माना लगा सकता है. जहां तक डिजिटल मीडिया का सवाल है, प्रेस काउंसिल या एनबीडीएसए की तरह अभी तक कोई एक स्व-नियामक प्राधिकरण नहीं है. 
प्रत्येक डिजिटल प्रकाशक को पेशेवर नैतिकता के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों का जवाब देने के लिए शिकायत अधिकारी के रूप में एक स्व-नियामक तंत्र स्थापित करना आवश्यक है. उनके ऊपर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन जैसे स्व-नियामक निकाय हैं.

अगर गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में पहले से ही संस्थागत स्व-नियमन मौजूद है, तो सरकार एफसीयू की स्थापना पर क्यों तुली हुई है? वह गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए हमेशा उन तंत्रों से संपर्क कर सकती है. प्रत्येक विभाग में पत्र सूचना कार्यालय का एक अधिकारी होता है. अगर मीडिया उनके विभाग के बारे में कुछ भी गलत करता है तो वे त्वरित खंडन जारी कर सकते हैं. यदि सरकार इतने पर भी एक सुपर-रेगुलेटर स्थापित करने का निर्णय लेती है, तो यह स्वाभाविक रूप से संदेह पैदा करता है. और जब आप एफसीयू को सौंपे गए विशाल क्षेत्र और निर्विवाद प्राधिकरण को देखते हैं तो संदेह गहरा जाता है.

एफसीयू ऑनलाइन स्पेस में सरकार के ‘किसी भी काम’ के बारे में गलत सूचना की पहचान करेगा. अब, ‘कोई भी काम’  एक बहुत व्यापक शब्द है और इसमें सरकार की सभी नीतियां, कार्यक्रम और गतिविधियां शामिल हैं. सरकार की सभी नीतियों, कार्यक्रमों और गतिविधियों की छानबीन करना मीडिया का स्वभाव है. और मीडिया में आने वाली प्रतिकूल खबरों को झूठा और भ्रामक करार देना सरकार की फितरत है.

एफसीयू के पीछे का विचार सरकारी गतिविधियों के बारे में गलत सूचनाओं को खत्म करना नहीं बल्कि उनके बारे में प्रतिकूल सूचनाओं को खत्म करना प्रतीत होता है. सरकार का इरादा मीडिया को सरकारी पक्ष को एकमात्र सत्य के रूप में पेश करने के लिए मजबूर करना है. सरकार डिजिटल मीडिया की ताकत को महसूस करती है क्योंकि अधिक से अधिक लोग ऑनलाइन समाचार प्राप्त कर रहे हैं. एफसीयू एक डिजिटल मीडिया इंटेलिजेंस एजेंसी के रूप में सरकार की सेवा करने जा रही है. इसका काम गलत सूचनाओं को दूर करने की आड़ में असहमति के स्वरों को हटाकर ऑनलाइन स्पेस को सुरक्षित करना होगा. 

यह अपना काम आसान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कर सकती है. ब्रिटेन सरकार ने दो साल पहले रैपिड रिस्पांस यूनिट (आरआरयू) नाम से एक एफसीयू की स्थापना की थी. स्वतंत्र जांच में पाया गया कि गलत सूचना का मुकाबला करने के नाम पर आरआरयू राजनेताओं, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और यहां तक कि जनता के सदस्यों की सामग्री की बड़े पैमाने पर निगरानी कर रहा था.

Web Title: Why questions being raised on purpose of setting up a fact check unit by government

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