विजय दर्डा का ब्लॉग: क्यों करते हैं भावनाओं से खिलवाड़...?

By विजय दर्डा | Published: January 9, 2023 10:21 AM2023-01-09T10:21:06+5:302023-01-09T10:23:26+5:30

दुनिया भर से हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी यहां पूजन, दर्शन और परिक्रमा के लिए पूरी श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं। जिस तरह से हिंदू धर्मावलंबियों की तमन्ना होती है कि जिंदगी में एक बार सारे तीरथ कर लें उसी तरह से हर जैन धर्मावलंबी की उत्कट भावना रहती है कि वह सम्मेद शिखरजी, पावापुरी, पालिताना और राजगीर के दर्शन जरूर करे।

Why do you play with feelings in regard with religion | विजय दर्डा का ब्लॉग: क्यों करते हैं भावनाओं से खिलवाड़...?

(फोटो क्रेडिट- ANI)

Highlightsखबर यह भी आने लगी कि कुछ क्षेत्रों में शराब, मांस और मदिरा का विक्रय शुरू हो गया।ट्रैकिंग के नाम पर शिखरजी की नैसर्गिकता को क्षति पहुंचने लगी।जाहिर सी बात है कि इससे पूरे देश में रोष फैला और बड़े पैमाने पर प्रतिरोध शुरू हो गया।

जैन समाज के तीव्र प्रतिरोध के बाद केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखरजी पर्वत क्षेत्र में शराब और मांस की बिक्री तथा तेज संगीत बजाने पर प्रतिबंध तो लगा दिया है लेकिन इस पूरे पवित्र क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र की सूची से हटाने की अधिसूचना अभी तक राज्य सरकार ने जारी नहीं की है। हालांकि राज्य सरकार को हर हाल में सम्मेद शिखरजी को पर्यटन की सूची से हटाना ही पड़ेगा लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या झारखंड सरकार को इस स्थल की पवित्रता का ख्याल नहीं था? जैन समाज की भावनाओं का ख्याल नहीं था?...या जानबूझकर इस तरह की हरकत की गई?

दुनिया के हर जैन धर्मावलंबी के लिए झारखंड के गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित सम्मेद शिखरजी का अपार महत्व है। जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। इसीलिए इसे सिद्धक्षेत्र और तीर्थराज भी कहते हैं। दुनिया भर से हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी यहां पूजन, दर्शन और परिक्रमा के लिए पूरी श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं। जिस तरह से हिंदू धर्मावलंबियों की तमन्ना होती है कि जिंदगी में एक बार सारे तीरथ कर लें उसी तरह से हर जैन धर्मावलंबी की उत्कट भावना रहती है कि वह सम्मेद शिखरजी, पावापुरी, पालिताना और राजगीर के दर्शन जरूर करे। 

ऐसे पवित्र स्थल के साथ यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भावनाएं आहत होना स्वाभाविक है। 2019 में राज्य सरकार के आग्रह पर केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखरजी के पूरे क्षेत्र को ईको पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था। जैन समाज ने तत्काल आपत्ति जताई। केंद्र को राज्य की बात माननी ही नहीं चाहिए थी। पिछले साल फरवरी में राज्य सरकार ने शिखरजी को ईको पर्यटन स्थल बनाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी। आरोप तो यहां तक लगते हैं कि कुछ खास लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थल को पर्यटन क्षेत्र में तब्दील करने की नापाक कोशिश की गई। 

खबर यह भी आने लगी कि कुछ क्षेत्रों में शराब, मांस और मदिरा का विक्रय शुरू हो गया। ट्रैकिंग के नाम पर शिखरजी की नैसर्गिकता को क्षति पहुंचने लगी। जाहिर सी बात है कि इससे पूरे देश में रोष फैला और बड़े पैमाने पर प्रतिरोध शुरू हो गया। इसके बाद केंद्र सरकार जागी और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य को कुछ दिशा-निर्देश दिए। लेकिन यह कितना दुर्भाग्यजनक है कि इस बीच जैन साधुओं को शरीर त्यागना पड़ा। ...लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसी भी धर्म या समाज की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया ही क्यों जाता है? 

हमने अपने संविधान में सभी अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा, प्रतिष्ठा और उनकी भावनाओं का आदर करने की सौगंध खाई है। यही हमारा कर्तव्य भी है। संविधान की नजर में सब बराबर हैं, न कोई बड़ा भाई है और न कोई छोटा भाई है। यह कहना भी उचित नहीं है कि सभी हिंदू हैं। सबकी अपनी मान्यताएं हैं। जैन समाज के बहुत से लोग अपनी मान्यता के साथ ही हिंदू देवी-देवताओं की पूजा भी करते हैं। ये वो समाज है जो भगवान महावीर के सिद्धांतों को मानता है। शांति, अहिंसा, क्षमा और सदाशयता जैन संप्रदाय का आभूषण है। 

संख्या की दृष्टि से ये भले ही कम हों लेकिन देश की आजादी से लेकर मौजूदा अर्थव्यवस्था और निर्माण कार्यों में जैनियों का बड़ा योगदान है। इनका आहत होना पूरे देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल हमारे समाज में भावनाओं को ठेस पहुंचाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। कोई भी नेता कहीं भी किसी भी समाज या धार्मिक मान्यता पर टिप्पणी कर देता है। कहीं धार्मिक स्थल को टार्गेट किया जाता है। कहीं भी किसी पर हमला हो जाता है। कोई खास उदाहरण देने की जरूरत नहीं है, आप सभी इस बात से वाकिफ हैं कि समाज में घृणा किस तेजी से फैल रही है। 

मुझे चिंता होती है कि सर्व धर्म समभाव, सहिष्णुता और विभिन्न विचारों की स्वीकारोक्ति की सीख देने वाला देश आखिर किस रास्ते पर जा रहा है?
मुझे हमेशा ही विवेकानंदजी की बातें याद आती हैं। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि धर्म वह नैतिक ताकत है जो न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे राष्ट्र को शक्ति प्रदान करता है। किसी भी धर्म में कोई दोष नहीं है बल्कि दोष धर्म की गलत व्याख्या में है। ये बातें वाकई आज भी सही हैं और हम तो ऐसे देश के वासी हैं जिसने अपनी धरती पर दुनिया के सभी धर्मों को जगह दी और सम्मान दिया। 

आज के दौर में लोगों को यह समझना चाहिए जिस तरह किसी बगीचे में विभिन्न तरह के फूलों से ही उसकी आभा बढ़ती है, खूबसूरती बढ़ती है उसी तरह इस देश की खूबसूरती भी विभिन्न वैचारिक मान्यताओं से ही है। मैं दुनिया के हर धर्म को हमेशा ही नजदीक से जानने और समझने की कोशिश करता रहा हूं। दुनिया भर में सभी धर्मों के लोग मेरे दोस्त हैं। मैं विभिन्न धार्मिक परंपराओं में शामिल होता रहा हूं और मैंने हमेशा यही महसूस किया है कि अपने मूल रूप में कोई भी धर्म वैमनस्य नहीं सिखाता। 

कोई भी धर्म दूसरे धर्म का अनादर नहीं करता है लेकिन मौजूदा समस्याएं धार्मिक कट्टरता के कारण पैदा हुई हैं। लोग एक बार भी नहीं सोचते कि उनकी मान्यता सही है तो दूसरे व्यक्ति की भी मान्यता सही हो सकती है। एकपक्षीय सोच समस्याएं पैदा करती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखें। खास तौर पर मैं धर्म और राजनीति के नेतृत्वकर्ताओं से कहना चाहूंगा कि वे अपने समर्थकों को संभालें। और हां, मैं स्पष्ट रूप से यह कहना चाहता हूं कि सम्मेद शिखरजी का ये विषय न धर्म का है, न आस्था का है। 

यह संस्कृति की रक्षा का विषय है। यदि संस्कृति बचेगी तो देश बहुत सुंदर और विकसित बनेगा। यही हमें पर्वतराज हिमालय सिखाता है। यही गंगा सिखाती है, यही हमें हमारे ऋषि-मुनियों ने सिखाया है। सम्मान और संस्कृति से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

Web Title: Why do you play with feelings in regard with religion

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