हिमाचल प्रदेश नहीं गुजरात पर है 'आप' का पूरा फोकस...आखिर क्या है इसकी वजह?

By अभय कुमार दुबे | Published: November 11, 2022 09:02 AM2022-11-11T09:02:54+5:302022-11-11T09:02:54+5:30

आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में भी उतरी है लेकिन जल्दी ही उसने अपना फोकस गुजरात पर कर लिया, क्योंकि गुजरात में हलचल पैदा करके वह अपने राष्ट्रीय मंसूबों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकती है.

Why AAP's full focus is on Gujarat election and not Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश नहीं गुजरात पर है 'आप' का पूरा फोकस...आखिर क्या है इसकी वजह?

हिमाचल प्रदेश नहीं गुजरात पर है 'आप' का पूरा फोकस...आखिर क्या है इसकी वजह?

अगर कोई पार्टी पंद्रह-बीस फीसदी के आसपास वोट प्राप्त कर रही हो तो उसे वोटकटवा न कह कर स्वतंत्र दावेदार समझा जाना चाहिए. गुजरात में आम आदमी पार्टी शुरू से ही पंद्रह फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने की संभावनाएं दिखा रही है. एक ताजे सर्वेक्षण (एबीपी-सी वोटर) के अनुसार वह बीस फीसदी का आंकड़ा पार करने की स्थिति में है. स्वयं आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का दावा है कि वे इस समय तीस फीसदी वोट पाने की संभावनाओं पर खड़े हैं. 

इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि आप को वोटकटवा कहना एक घटिया किस्म की शरारत के अलावा कुछ नहीं है. वह एक स्वतंत्र और विकासमान राजनीतिक ताकत है. एक ऐसी ताकत जिसने दिल्ली और पंजाब में किसी दूसरी पार्टी से गठजोड़ किए बिना प्रचंड बहुमत हासिल किया है.

भाजपा के प्रभुत्व के इस जमाने में आप एकमात्र राजनीतिक शक्ति है जिसका विस्तार हो रहा है. भाजपा और कांग्रेस के अलावा आप ही एक से ज्यादा प्रदेशों में सत्ता में है. इस पार्टी की एक और विशेषता है जो इसे अनूठा बना देती है. यह किसी एक  पार्टी या समुदाय के आधार पर नहीं खड़ी है. जहां भी यह सफल हुई है इसे सर्वसमाज के वोट मिले हैं. इसके ऊपर भाजपा जैसी हिंदू राजनीति करने का आरोप  लगाया जाता है. लेकिन, आरोप लगाने वाले यह नहीं बताते कि भाजपा मुसलमान-ईसाई विरोध की राजनीति करती है लेकिन आप को दिल्ली और पंजाब में मुसलमानों और सिखों के अल्पसंख्यक वोट बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं.

मेरा मानना है कि किसी भी प्रदेश में जब कोई नई  पार्टी हस्तक्षेप करती है तो पहले चरण में वह प्रमुख विपक्षी दल का स्पेस घेरती है. दूसरे चरण में वह सत्ताधारी पार्टी के स्पेस का अतिक्रमण करना शुरू करती है. इस लिहाज से देखा जाए तो गुजरात में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोटों को खींचकर अपनी जगह बना चुकी है और अब वह भाजपा के वोट खींचने की प्रक्रिया में है. कम से कम सर्वेक्षणों से तो यही लगता है. 

मोटे तौर पर कहें तो गुजरात के गांवों में कांग्रेस की उपस्थिति अच्छी है, और शहरों में भाजपा की. आप ने पहले दौर में गांवों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था, अब वह शहरों पर जोर दे रही है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के  पारंपरिक समर्थकों को उसने मोटे तौर पर यकीन दिला दिया है कि वह उनकी पसंदीदा से ज्यादा बड़ी खिलाड़ी बन चुकी है. अगर भाजपा को शिकस्त देनी है तो उन्हें अपनी पार्टी-निष्ठाएं बदलनी होंगी. 

यह करने के बाद उसकी योजना भाजपा के पारंपरिक समर्थकों से संवाद स्थापित करने की है कि अगर वे प्रदेश की राजनीति में कुछ परिवर्तन चाहते हैं तो वह बदलाव कांग्रेस नहीं ला सकती. वह कांग्रेस जो पिछले सत्ताइस साल से लगातार हार रही है. अगर वे भाजपा के शासन से ऊब चुके हैं, तो आप उनके लिए मैदान में हाजिर है.

देश की जनता कई प्रदेशों में पार्टी प्रणाली के वर्तमान स्वरूप से ऊब चुकी है. उसे नई शक्तियों की तलाश है. जरूरत इस बात की है कि पुराने दलों से मोहभंग के इस दौर में नई राजनीतिक शक्ति जनता को अपनी ताकत और संभावनाओं का भरोसा दिला सके. यह विश्वास दिलाने में अरविंद केजरीवाल निपुण हैं. जनता से संवाद स्थापित करने की उनकी शैली में आत्मीयता है. वे बहुसंख्यक समाज से बातचीत करते हुए भी अल्पसंख्यक समाज को खामोशी से संबोधित करते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने गुजराती में एक अपील जारी करके वोटरों के मन को स्पर्श करने की सराहनीय कोशिश की है. दूसरे, आप के पास सुशासन का एक स्थापित मॉडल है जिसे ‘दिल्ली मॉडल’ के नाम से जाना जाता है.

गुजरात में आम आदमी पार्टी जिस परिश्रम, बुद्धिमानी, तत्परता और योजना से चुनाव लड़ रही है, वह लाजवाब है. वह जीतती है, हारती है या दूसरे या तीसरे नंबर पर रहती है-यह भविष्य के गर्भ में है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उसके प्रति अनमना भाव रखने वाले लोग भी उसकी चुनावी संघर्ष-क्षमता की प्रशंसा कर रहे हैं. इस परिस्थिति में कांग्रेस की अजीब सी रणनीति ने भी उसकी मदद की है. चुनाव की तारीखों की घोषणा होने तक कांग्रेस नजारे से तकरीबन गायब ही थी. अब सुना जा रहा है कि राहुल गांधी तीन दिन तक चुनाव प्रचार करने गुजरात आएंगे.

लेकिन, अभी तक इन तीन तारीखों की घोषणा भी नहीं की गई है. आप पहले हिमाचल प्रदेश में भी उतरी थी. लेकिन जल्दी ही उसने अपना फोकस गुजरात पर कर लिया, क्योंकि गुजरात में हलचल पैदा करके वह अपने राष्ट्रीय मंसूबों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकती है. अगर उसने गुजरात में तीस फीसदी और उससे अधिक वोट प्राप्त किए तो वह कम तीस-चालीस सीटें जीत जाएगी. उस सूरत में आप की दावेदारियों को स्वीकार करना उसके विरोधियों की भी मजबूरी होगी

Web Title: Why AAP's full focus is on Gujarat election and not Himachal Pradesh

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे