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ब्लॉग: रणनीति बनाते-बनाते कहीं आत्मविश्वास तो कम नहीं हुआ!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 25, 2024 08:36 IST

इसलिए सारी चिंताएं भाजपा नीत गठबंधन की ओर हैं, जहां ऐसा तक लगने लगा है कि गठबंधन के सहयोगियों के साथ चुनाव की रणनीति बनाते-बनाते उसका अपना आत्मविश्वास ही घटने लगा है।

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मजबूत सरकार और मजबूत विपक्ष का दावा करने वाले राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही परेशान दिख रहे हैं। महाराष्ट्र में पांच चरण में होने जा रहे आम चुनावों के प्रत्याशी का नाम चुनना दलों के लिए आसान प्रतीत नहीं हो रहा है। एक तरफ जहां कथित रूप से टिकट मांगने वालों की कतार है, तो वहीं दूसरी ओर चुनाव से बचने में लगे नेताओं की संख्या कम नहीं है।

इसका कारण बहुत साफ है कि बिखरे हुए दलों में अपने-अपने मतदाता को पहचान पाना मुश्किल हो रहा है। यहां तक कि नेता-कार्यकर्ता की बात पर भी भरोसा नहीं हो रहा है। कुछ एजेंसियों से सर्वेक्षण करवाए जा रहे हैं, जो सोच के विपरीत परिणाम दे रहे हैं। शहरी-ग्रामीण भाग के सुर अलग-अलग हैं।

जातिगत विभाजन के फायदे, नुकसान अपने-अपने हैं। सहानुभूति के नाम पर मत पाने की कोशिश में लगे शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार के दौरों से पैदा हो रही परेशानियां अनदेखी करने जैसी नहीं हैं। इसी में किसी को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और किसी को वंचित बहुजन आघाड़ी से तालमेल कर नुकसान भरपाई की उम्मीद नजर आ रही है।

वर्तमान स्थिति में प्रश्न यही है कि कल तक चुनावों की प्रतीक्षा कर और एक-दूसरे को चुनाव मैदान में आमने-सामने आने की चुनौती देने वाले नेता अपने योद्धाओं को रणभूमि में क्यों नहीं उतार पा रहे हैं? यदि चुनाव से पहले तैयारी और जन समर्थन था, तो चुनाव आने पर आत्मविश्वास क्यों डगमगाया लगता है? स्पष्ट है कि बड़े लक्ष्य लेकर चुनाव में उतरने के लिए जमीनी आधार मजबूत होना चाहिए।

वर्ना उलझे राजनीतिक समीकरणों के बीच राज्य में देखो और इंतजार करो की नीति के अलावा कोई विकल्प रह नहीं जाता है। मगर यह भीतरी तैयारी का खोखलापन या मत बिखराव से तैयार हुई गंभीर चुनौती का परिणाम है। यूं देखा जाए तो चुनाव की घोषणा और नए गठबंधनों के बनने के पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी। किंतु मजबूर हालात में उसे भी अब रक्षात्मक खेलना पड़ रहा है।

निश्चित ही उसके समक्ष 45 सीटों का लक्ष्य बहुत बड़ा है। सब कुछ सकारात्मक होने के बावजूद महाराष्ट्र में भाजपा के लिए सर्वोच्च आंकड़ा पाना आसान नहीं है। बाकी दलों के पास कोई लक्ष्य नहीं है। कांग्रेस और राकांपा को पिछले चुनाव में अल्प सफलता मिली थी, शिवसेना गठबंधन में भाजपा के साथ थी और उसने ताजा चुनाव में कोई महत्वाकांक्षा नहीं पाली है। इसलिए सारी चिंताएं भाजपा नीत गठबंधन की ओर हैं, जहां ऐसा तक लगने लगा है कि गठबंधन के सहयोगियों के साथ चुनाव की रणनीति बनाते-बनाते उसका अपना आत्मविश्वास ही घटने लगा है।

यही वजह है कि चुनाव के प्रत्याशियों का ही इंतजार बढ़ता जा रहा है। हालांकि उम्मीदवारों के मैदान में उतरने के बाद असली तस्वीर तो वोटिंग मशीन से ही तैयार होगी, लेकिन मतदाता के मन की तस्वीर तो यह सब देख कर ही तैयार होगी।

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