ब्लॉग: अयोध्या के बाद भारत के लिए अब आगे क्या?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 26, 2024 11:16 AM2024-01-26T11:16:24+5:302024-01-26T11:16:29+5:30

इस आंदोलन के नायक मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने राम मंदिर से अपने भाषण में राजनीति को एक बिंदु से आगे नहीं खींचा, वरना बड़ा हंगामा मच सकता था।

What next for India after Ayodhya? | ब्लॉग: अयोध्या के बाद भारत के लिए अब आगे क्या?

ब्लॉग: अयोध्या के बाद भारत के लिए अब आगे क्या?

राम मंदिर का आखिरकार बहुत धूमधाम से उद्घाटन हो गया। इसने नरेंद्र मोदी की पहले से ही शानदार प्रतिष्ठा में एक और चमकदार उपलब्धि जोड़ दी है। यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के प्रधानमंत्री के लिए बहुत बड़ा गौरव था।

भाजपा की लोकप्रियता भी अकल्पनीय रूप से बढ़ गई है और इस तथ्य को देखते हुए कि अधिकांश भारतीय (हिंदू) बहुप्रतीक्षित प्राण प्रतिष्ठा से बेहद खुश हैं, विपक्षी आवाजें काफी मंद पड़ गई हैं। हालांकि मैं, एक निष्ठावान हिंदू के रूप में, राम को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में नहीं देखता, लेकिन व्यापक रूप से पूजनीय हिंदू देवता को जानबूझकर ऐसा बना दिया गया है।

इस आंदोलन के नायक मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने राम मंदिर से अपने भाषण में राजनीति को एक बिंदु से आगे नहीं खींचा, वरना बड़ा हंगामा मच सकता था।

टीवी पर दिखाए गए समारोह और देश के कोने-कोने में हुए आयोजनों को देखने के बाद किसी के मन में कोई संदेह नहीं रह गया कि चंद्रकांत सोमपुरा द्वारा डिजाइन किए गए प्रभावशाली मंदिर परिसर के अंदर अलंकृत भव्य बालमूर्ति निश्चित रूप से भारत में एक नए युग की शुरुआत करेगी।

यदि भारत को नहीं, तो कम से कम यह सत्तारूढ़ भाजपा को तो निश्चित रूप से ऐसे समय पर एक नई ऊंचाई पर ले गई है, जब महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव नजदीक है। यह अब एक आम धारणा है कि नई राम लहर पर सवार होकर भाजपा इस साल लोकसभा में अपनी उच्चतम संख्या तक पहुंच सकती है। और यह मुझे क्षण भर के लिए पूर्व भाजपा प्रमुख मुरली मनोहर जोशी के वर्षों पहले के बयान की याद दिलाता है कि राम मंदिर का उद्घाटन एक पार्टी का मामला नहीं होगा।

खुले तौर पर, यह नई भाजपा का मामला था, जिसे दिल्ली और लखनऊ में सरकार का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। लेकिन हकीकत यह है कि पुणे, दिल्ली, नासिक, चित्रकूट या हैदराबाद की सड़कों पर भक्तों को वास्तव में ऐसे ‘तुच्छ’ मुद्दों की परवाह नहीं थी कि आयोजक कौन था।

बड़े पैमाने पर मिठाइयां बांटा जाना, दीपक जलाना, मंदिरों की सफाई, रात भर पटाखे फोड़ना, भगवा झंडों की बढ़ती बिक्री, सार्वजनिक रूप से ‘राम धुन’ का जाप, सोशल मीडिया पर हिंदू धर्म का अतिरेक और अखबारों में भाजपा सरकारों द्वारा विज्ञापनों की भरमार आदि स्वतःस्फूर्त भी था और सुनियोजित भी।

सभी ने अयोध्या में ऐतिहासिक दिन का जश्न मनाया और ऐसा प्रतीत हुआ कि देश में दिवाली मनाई जा रही है। उम्मीद है कि नया युग, जिसके बारे में मोदी ने विस्तार से बात की, पूरी सकारात्मकता के साथ संचालित होगा। ‘राम-राज्य’ के बारे में मैं एक पखवाड़ा पहले ही लिख चुका हूं।

खैर, देशभर में और दुनिया के अन्य हिस्सों में सोमवार की घटनाओं ने साबित कर दिया कि 80 के दशक के अंत में विश्व हिंदू परिषद-आरएसएस गठबंधन द्वारा पुनर्जीवित की गई राम लहर जरा भी मंद नहीं पड़ी है। बल्कि मंदिर के मुख्य वास्तुकार और आरएसएस के पूर्व प्रचारक मोदी के कुशल नेतृत्व में यह भावनाएं वास्तव में कई गुना बढ़ गई हैं।

अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत झुकाव को एक ओर रखते हुए, प्रधानमंत्री के रूप में उस अवसर पर खड़े हुए तो लाखों भारतीय अभिभूत हो गए। उनके दृढ़निश्चय के बिना रामभक्तों के लिए मंदिर का निर्माण सिर्फ एक सपना बनकर रह जाता। सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी बाधाओं को दूर करने और मंदिर निर्माण की निगरानी से लेकर यह सुनिश्चित करने तक कि हिंदू-मुस्लिम तनाव न बढ़े, जटिल मामलों को उनके द्वारा दृढ़ और संवेदनशील तरीके से संभाला जाना प्रशंसनीय है।

22 जनवरी का दिन विवादास्पद ‘हिंदू राष्ट्र’- संविधान की धर्मनिरपेक्ष स्थापना के बावजूद, को साकार करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। 80 के दशक में विहिप और फिर भाजपा ने राम के जन्मस्थान को हासिल करने की दिशा में गंभीर प्रयास किए, जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी।

अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, राजमाता विजया राजे सिंधिया, उमा भारती, विनय कटियार, प्रवीण तोगड़िया और भगवान राम के हजारों अनाम अनुयायियों (कारसेवकों) ने गैर-भाजपा राजनीतिक दलों और भारतीय मुसलमानों को यह समझाने की बहुत कोशिश की थी कि बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं और पुरातात्विक और कानूनी साक्ष्यों का सम्मान करने की आवश्यकता है।

आखिरकार इस सबकी परिणति 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव मूकदर्शक बने रह गए। इस विध्वंस को अपराध माना गया और बड़ी संख्या में एफआईआर दर्ज की गईं; सीबीआई ने भी अपराध का संज्ञान लिया।

भाजपा नेताओं ने शुरू में जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन शिवसेना सुप्रीमो बालासाहब ठाकरे साहसपूर्वक मस्जिद गिराए जाने की जिम्मेदारी लेने के लिए सामने आए, हालांकि वह वहां मौजूद नहीं थे। खैर ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ का आंदोलन अब पूरा हो चुका है। पूरा देश खुशी से झूम रहा है।

अब हम यहां से कहां जाएंगे? क्या ‘हिंदू राष्ट्र’ आज के भारत से अलग होगा? क्या यह अधिक शक्तिशाली, अधिक अनुशासित होगा? अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त? इसका जवाब सिर्फ भाजपा ही दे सकती है। 

Web Title: What next for India after Ayodhya?

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