Weather Update: भारत में ही नहीं, समूचे एशिया में तापमान आसमान को छू रहा है. राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश में पारा 43 से 47 डिग्री के बीच बना हुआ है. राजस्थान के बाड़मेर में दिन का तापमान 48 डिग्री और हिमालय की शीतल घाटी कश्मीर में गरम हवाओं के चलते तापमान 34 डिग्री तक पहुंच गया है. मौसम विभाग ने अगले कुछ और दिन यही तापमान बने रहने की घोषणा कर दी है. आमतौर से गरम हवाएं तीन से आठ दिन चलती हैं और एक-दो दिन में बारिश हो जाने से तीन-चार दिन राहत रहती थी, लेकिन इस बार गरम हवाएं चलने की निरंतरता बनी हुई है, जिसने कई शहरों को ऊष्मा-द्वीप में बदलकर रख दिया है. इसके प्रमुख कारणों में शहरीकरण का बढ़ना और हरियाली का क्षेत्र घटना माना जा रहा है.
अतएव हमें अपने महानगरों को जलवायु के अनुरूप बनाना होगा. उसके लिए बहुमंजिली इमारतों पर वर्टिकल स्थिति में खेती करनी होगी. इससे तात्कालिक छुटकारे के लिए कृत्रिम बारिश की भी जरूरत महसूस की जा रही है. कुछ समय पहले गर्मी से तपते दुबई में ड्रोन के जरिये बादलों को बिजली के झटके देकर बारिश कराई गई थी.
यह बारिश कराने की नई तकनीक है. इसके प्रभाव से बादलों में घर्षण होता है और बारिश होने लगती है. लेकिन दुबई में बिजली का झटका कुछ ज्यादा ही लग गया, नतीजतन दुबई और आसपास के शहरों में ऐसी जमकर बारिश हुई कि बाढ़ का सामना करना पड़ गया. अतएव कृत्रिम बारिश खतरनाक भी साबित हो सकती है, यह पहली बार पता चला.
कृत्रिम बारिश के अन्य तरीकों में पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं और फिर उनसे बारिश कराई जाती है. चीन ने इस तकनीक से बारिश करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर ली है. पांचवें दशक में वैज्ञानिकों ने प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कृत्रिम बारिश कराई थी. दिल्ली में इसी साल शीत ऋतु में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की तैयारी कर ली गई थी.
, लेकिन संभव नहीं हुई. भारत में कृत्रिम बारिश की शुरुआत 70 साल पहले हुई थी. तब कृत्रिम बारिश के अंतर्गत जाने-माने मौसम विज्ञानी एस.के. चटर्जी की अगुवाई में गैस के गुब्बारों से बारिश कराई गई थी. भारत में कृत्रिम बारिश करने में योगदान आईआईटी से संबद्ध ‘द रेन एंड क्लाउड फिजिक्स रिसर्च’ निरंतर दे रहा है.
टाटा फर्म ने 1951 में वेस्टर्न घाट में कई जगहों पर इस तरह की बारिश कराई थी. फिर पुणे के रेन एंड क्लाउड इंस्टीट्यूट ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में ऐसी कृत्रिम बारिश कराई थी. 1993-94 में सूखे से निपटने के लिए तमिलनाडु में कृत्रिम बारिश, 2003-04 में कर्नाटक में कृत्रिम बारिश और वर्ष 2008 में आंध्र प्रदेश के 12 जिलों में कृत्रिम बारिश कराई गई थी. लेकिन ये उपाय अत्यंत महंगे होने के साथ नैसर्गिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले हैं. इसलिए इनका प्रयोग जितना कम हो, उतना मानसून के लिए अच्छा है.