विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: सबको मिलकर लड़नी है अंधेरे के खिलाफ लड़ाई
By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 10, 2020 02:57 PM2020-04-10T14:57:29+5:302020-04-10T14:57:29+5:30
इस देश पर हर नागरिक का समान अधिकार है और देश के प्रति हर नागरिक का कर्तव्य भी समान है. हम सबको मिलकर हर अंधेरे के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई लड़नी है. जीतनी है. धर्म हमें बेहतर मनुष्य बनाने के लिए है और मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है.
प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश ने तालियां, थालियां बजाकर कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले अग्रिम पंक्ति के हमारे सिपाहियों का अभिनंदन किया था. 5 अप्रैल को फिर से प्रधानमंत्नी के ही आह्वान पर एक नए तरीके से कोरोना के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई के प्रतीक स्वरूप राष्ट्र की एकजुटता और साहस के संकल्प के रूप में, दीये जलाकर निराशा के अंधेरे को हराने के लिए नई पहल की गई. तालियां बजाना भी एक प्रतीक था और फिर दीये जलाना भी.
प्रतीकों की महत्ता और शक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता. स्वयं महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह को माध्यम बनाकर आजादी की लड़ाई को एक नया आयाम दिया था. मुट्ठी भर नमक बनाकर उन्होंने समूची ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी थी. पूरे देश ने उनका अनुसरण करके यह दिखा दिया था कि राष्ट्र महात्मा गांधी के साथ है.
पिछले 5 अप्रैल को रात के अंधेरे में दीये जलाकर मोमबत्तियां और मोबाइल फोन की रोशनी करके राष्ट्र ने अपने प्रधानमंत्री के आह्वान को न केवल स्वीकार किया बल्कि राष्ट्र की एकजुटता को भी एक तरह से साकार किया. भले ही पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को लगभग 38 प्रतिशत वोट ही मिले हों, पर प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है और राष्ट्र के जनमत को प्रभावित करने की उनकी क्षमता में भी संदेह नहीं किया जाना चाहिए. तालियां बजाने से लेकर दीये जलाने तक की उनकी पहल को भारी जनसमर्थन मिला है. यह उनमें जनता के विश्वास और उनसे जनता की अपेक्षा दोनों का उदाहरण है. लेकिन देश का एक तबका उनके ऐसे प्रतीकों, कार्यो में तमाशा भी देख रहा है. तमाशा इस अर्थ में कि रात को नौ बजे दीये जलाने की बात तो लोगों को सहज समझ आ गई पर नौ मिनट तक दीये जलाने वाली बात को समझना आसान नहीं था.
पता नहीं क्यों स्वयं प्रधानमंत्री ने अथवा उनके किसी सहयोगी ने यह बात समझाने की कोशिश भी नहीं की. हां कुछ लोगों ने व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में यह जरूर बताया कि ज्योतिष की दृष्टि में यह सही कदम था. इसी तरह यह बात तो समझ आती है कि जितना अधिक अंधेरा होगा उतनी ही अधिक दीयों की रोशनी झिलमिलाएगी लेकिन दीये जलाने से पहले सारी बत्तियां बुझाने का विशेष आग्रह दृश्य की भव्यता के अलावा और क्या मायने रखता है?
सच बात तो यह है कि आज रोशनी और उसका महत्व समझाने के लिए पहले अंधेरा करने की कोई आवश्यकता नहीं है. वैसे ही जीवन में बहुत अंधेरा पसर रहा है. कोरोना जैसी महामारी का अंधेरा भी अपने आप में कम खतरनाक नहीं है. आज सारी दुनिया इस अंधेरे से लड़ रही है. हम भी लड़ रहे हैं और इस संकल्प के साथ लड़ रहे हैं कि हम यह लड़ाई जीतेंगे. पर यही एक लड़ाई का मोर्चा नहीं है हमारे सामने. वस्तुत: इस लड़ाई ने और भी कई अंधेरों को हमारे सामने लाकर खड़ा कर दिया है. सबसे गहरा अंधेरा उस सांप्रदायिकता का है, जिसने कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई को, हिंदू-मुसलमान में बांट दिया है.
देश के अलग-अलग हिस्सों में इस आशय की खबरें आ रही हैं कि मुसलमान स्वास्थ्य कर्मियों को काम नहीं करने दे रहे. वे कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में सहयोग नहीं कर रहे. यदि इन खबरों में सच्चाई है तो यह निश्चित रूप से भर्त्सना के योग्य है. यह सब करने वाले भी अपराधी ही हैं. सजा इन्हें मिलनी चाहिए. लेकिन इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि यदि कुछ लोग ऐसा कर भी रहे हैं तो वे देश के करोड़ों मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
दो बातें हर भारतीय को समझनी होंगी- पहली तो यह कि महामारी किसी का धर्म देखकर नहीं आती और दूसरी यह कि मुट्ठी भर लोगों के अपराध की सजा सारे समुदाय को नहीं दी जा सकती. यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले एक अरसे से देश में धर्म और जाति के नाम पर जहर फैलाने की कोशिशें हो रही हैं. सवाल यह नहीं है कि जहर कौन फैला रहा है, हकीकत यह है कि ऐसा जहर फैलाने वाला हर व्यक्ति पूरे देश का अपराधी है, पूरी मानवता का अपराधी है. ऐसा हर अपराधी सजा का भागीदार है.
हर विवेकशील नागरिक का कर्तव्य है कि वह ऐसे हर अपराध के प्रति जागरूक रहे. सांप्रदायिकता का यह अंधेरा हमारी उन राहों को आंखों से ओझल करता है जिन पर चलकर हम एक नए भारत के लक्ष्य तक पहुंचने का सपना देख रहे हैं. यह नया भारत हमारे संविधान में दी गई हमारी उस प्रतिज्ञा को चरितार्थ करने वाला होगा, जिसमें धर्म, जाति, वर्ग के नाम पर किसी भी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. इस देश पर हर नागरिक का समान अधिकार है और देश के प्रति हर नागरिक का कर्तव्य भी समान है. हम सबको मिलकर हर अंधेरे के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई लड़नी है. जीतनी है.
दीया जलाना जरूरी होता है अंधेरा मिटाने के लिए. लेकिन दीये की रोशनी को आकर्षक बनाने के लिए पहले किसी अंधेरे की सर्जना जरूरी नहीं है. धर्म अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए होता है. यह बात सबको याद रखनी है- अल्पसंख्यकों को भी और बहुसंख्यकों को भी. और यह भी याद रखना जरूरी है कि धर्म का बिल्ला किसी को सही या गलत साबित नहीं करता. धर्म हमें बेहतर मनुष्य बनाने के लिए है और मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है.