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विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: विपक्ष को बदलने होंगे अपने तौर-तरीके

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 17, 2022 1:46 PM

सफल लोकतंत्र के लिए मजूबत विपक्ष की जरूरत होती है. इसलिए विपक्ष को इस रणनीति पर काम करना होगा कि वह भाजपा का मुकाबला कैसे करे और कैसे अपनी बात लोगों तक पहुंचाए.

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हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे सामने हैं. पंजाब को छोड़कर, जहां आम आदमी पार्टी को शानदार सफलता मिली है, बाकी चारों राज्यों में भाजपा मतदाता के पूर्ण समर्थन के साथ विजयी हुई है. ऐसे में देशभर में भाजपा का जश्न मनाना स्वाभाविक है.

नतीजों पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में मिली विजय को 2024 में होने वाले लोकसभा के चुनाव-परिणामों का पूर्वाभास भी कहा है. अनुमान लगाए जाने भी स्वाभाविक हैं और यह भी संभव है कि अगले आम चुनाव में भाजपा की मनोकामना पूरी भी हो जाए.

लेकिन यह समय हर पार्टी के लिए अपने भीतर झांकने का भी है. जो जीते हैं वे, और जो हारे हैं वे भी, चुनाव-परिणामों की समीक्षा कर रहे हैं. अपने-अपने ढंग से अपने अगले रास्तों, और अगली चालों के बारे में सब सोचेंगे. पर एक बात देश के मतदाता को भी सोचनी है- देश में जनतंत्र के भविष्य की बात. आज दक्षिण भारत के कुछ राज्यों, और पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि को छोड़कर भाजपा का शासन है!

यह पहली बार नहीं है जब देश में ऐसी स्थितियां बनी हैं. केंद्र में कांग्रेस के शासन-काल में भी अधिकांश राज्यों में एक दल का वर्चस्व था. तब भी यह बात अक्सर उठा करती थी कि इतना बड़ा जन-समर्थन किसी भी राजनीतिक दल को अजेय होने का भ्रम करा सकता है, और जनतंत्र की दृष्टि से शासक का यह भाव निश्चित रूप से खतरनाक है.

सत्ता में आने, और बने रहने, की आकांक्षा किसी भी दल की हो सकती है, पर सत्ता पर एकाधिकार की स्थिति तानाशाही के रास्ते पर ले जाने वाली बन सकती है. इसीलिए कहा गया है कि जनतंत्र की सफलता के लिए एक मजबूत प्रतिपक्ष का होना नितांत जरूरी है. पर विपक्ष के मजबूत होने का दायित्व मतदाता का नहीं, स्वयं विपक्ष का है.

यह सही है कि मतदाता ने महंगाई, बेरोजगारी, किसान-समस्या जैसे मुद्दों की गंभीरता को नहीं समझा, पर गलत यह भी नहीं है कि समूचा विपक्ष इस गंभीरता को समझाने में भी विफल रहा. इन चुनावों में, खासकर उत्तर प्रदेश में, कानून-व्यवस्था और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के मुद्दों का सत्तारूढ़ दल को पर्याप्त लाभ मिला, पर धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण का भी फायदा सत्तापक्ष ने भरपूर उठाया है.

विपक्ष को यह भी सोचना-समझना होगा कि इस तरह की रणनीति का मुकाबला कैसे हो. भाजपा तो अपनी वर्तमान कार्य-प्रणाली से संतुष्ट रह सकती है, पर विपक्ष को अपने तौर-तरीके बदलने होंगे, अपनी सोच बदलनी होगी, अपनी नई रणनीति बनानी होगी. भारत की भावी राजनीति का दारोमदार भाजपा पर नहीं, विपक्ष के समझे-किए पर निर्भर करेगा.

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